सोशल मीडिया ब्रेनवॉश कर जनमत को कर रहा प्रभावित

Sunday, May 05, 2019 - 11:48 AM (IST)

इलेक्शन डेस्क: जीत के लिए सियासी दल हर तरह के हथकंडे ‘साम-दाम, दंड-भेद’ अपना रहे हैं और सोशल मीडिया इसमें अहम भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडिया का असर इतना है कि वह वोटर्स का ब्रेनवॉश कर जनमत को प्रभावित करने का काम बखूबी निभा रहा है। 2014 के आम चुनाव दौरान पहली बार सोशल मीडिया का इस्तेमाल हुआ। तब देश में कुल 7262 राजनीतिक पेज बने थे जिन पर लगभग 10 करोड़ संवाद हुए थे। अब 2019 के इस चुनाव में सोशल मीडिया और ज्यादा प्रभावी हो गया है। एक अनुमान के अनुसार अब तक करीब 1 लाख राजनीतिक पेज बने हैं। नई रिसर्च के अनुसार देश में करीब 300 ऐसी सीटें हैं जहां सोशल मीडिया पर मौजूद लोग उस सीट के नतीजों को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं। व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषक सोशल मीडिया के राजनीति पर पड़ते प्रभाव को लेकर खासे  चिंतित हैं। सोशल मीडिया मतदाताओं के मन में नेताओं की तरह-तरह की छवियां गढऩे में भी सक्षम है। पिछले आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी की छवि कांग्रेस को ले डूबी थी। राहुल के लिए भाजपा समर्थक ट्विटरबाजों ने हैशटैग पप्पू का इस्तेमाल किया तो जवाब में कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने नरेंद्र मोदी के लिए हैशटैग फेकू को प्रचलित करने की कोशिश की।
   

अमरीका और यूरोप में भी उठा विवाद
सोशल मीडिया से न केवल भारतीय चुनाव प्रभावित हो रहा है बल्कि इससे पहले अमरीका से लेकर यूरोप तक के चुनाव में भी इसका असर दिखा है। आरोप लगा कि चुनाव एजैंसियों ने सोशल मीडिया खासकर फेसबुक के डाटा का उपयोग चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया। इससे जुड़ा केस भी इंगलैंड की संसद में चल रहा है। ट्रम्प के चुनाव में भी इस तरह के आरोप लगे हैं। एक चुनावी एजैंसी के अनुसार फेसबुक प्रोफाइल को डिकोड करने का एक फॉर्मैट है। इसके तहत किसी खास शख्स का प्रोफाइल लेने के बाद उसके 10 पोस्ट शेयर, 100 पोस्ट लाइक और 20 पोस्ट का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है। साथ ही उसके नैटवर्क और ग्रुप का विश्लेषण किया जाता है। राजनीति से जुड़े पेज इन्हीं प्रोफाइल को देखकर बनाए जाते हैं और उन पर पोस्ट भी उसी अनुरूप में दिए जाते हैं। जैसे कि अगर कोई राष्ट्रवाद से प्रभावित होता है तो उसका इससे जुड़े पोस्ट से ही सामना ज्यादा से ज्यादा हो, यह तय किया जाता है। 

यदि कोई खास नेता से प्रभावित है तो उस नेता से जुड़ी हर बात उसके टाइम लाइन तक पहुंचे, इसका भी ध्यान रखा जाता है। देश की राजनीति में प्रोफाइल विश्लेषण के लिए लगभग 500 कैचवर्ड बनाए गए हैं और उसी अनुरूप विश्लेषण किया जाता है। एक विशेषज्ञ ने बताया कि इसमें बड़ी कंपनियों से लेकर छोटी-छोटी एजैंसियां भी अपने स्तर पर काम करती हैं। हकीकत यह है कि शख्स की अनुमति के बिना किसी के प्रोफाइल की डिटेल्स लेकर उसे किसी दूसरी पार्टी को देना प्राइवेसी का उल्लंघन है और देश में इस मुद्दे पर बहस हो रही है।  भाजपा के एक कार्यकर्ता ने कहा कि वह अपने स्तर पर व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पेज बनाते हैं। फिर उसे सब-सैक्शन में बदल देते हैं। यह शहर, क्षेत्र या समुदाय के अनुसार होते हैं। इसके बाद इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ते हैं ताकि वे पार्टी से जुड़ी बातों को समझ सकें। पार्टी की सपोर्ट में एक फेसबुक पेज चलाने वाले व्यक्ति ने कहा कि वह हर दिन 10 लाख लोगों तक अपनी पोस्ट के साथ पहुंचते हैं। इसमें कम से कम आधे सक्रिय होते हैं। शुरू में पिछडऩे के बाद हाल के दिनों में कांग्रेस ने भी अपनी ओर से डाटा का इस्तेमाल करने की परम्परा शुरू की। पहली बार पार्टी के अंदर डाटा-रिसर्च विंग बनाया गया है। चुनाव विश्लेषकों के अनुसार पहले भी डाटा के रिसर्च की जरूरत होती थी लेकिन इतने साधन नहीं थे।

प्राइवेसी पर हमला
सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के दौरान आम लोगों की प्राइवेसी पर भी हमला हो रहा है। हालांकि चुनाव आयोग ने इस बार अपनी ओर से सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के कई तरीके अपनाए हैं। जानकारों का मानना है कि चुनाव आयोग की इस पहल के बाद भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण कर पाना नामुमकिन है। कुछ समय पहले एक पार्टी के कहने पर चुनाव में एक मीडिया मैनेजमैंट कंपनी ने एक खास इलाके में सिर्फ 5 महीनों में ही लगभग 90 फीसदी लोगों के विचार बदल दिए।

ये हुई कार्रवाई

  • 628  कंटैंट चुनाव आयोग के निर्देश पर सोशल मीडिया से हटाए हैं।
  • 574 फेसबुक पेज हैं इनमें सबसे ज्यादा।
  • 700 से ज्यादा पेज फेसबुक ने खुद हटाए।


चुनाव आयोग ने ये बनाए हैं नियम 

  • गूगल अपने प्लेटफार्म पर राजनीतिक दलों की ओर से किए गए प्रचार की लिस्ट बनाएगा और चुनाव आयोग को हर दिन उसकी रिपोर्ट देगा। गूगल चुनाव के दौरान इसके लिए अलग सिस्टम बनाएगा।
  • सोशल मीडिया पर होने वाले हर खर्च के बारे में राजनीतिक दलों को बताना होगा। इसके लिए पूरी जानकारी फॉर्म में भरनी होगी।
  • चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद वोटिंग से 48 घंटे पहले सोशल मीडिया का उपयोग प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता। इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियां अपने स्तर पर भी मॉनीटरिंग करेंगी।
  • सोशल मीडिया पर अगर कोई उम्मीदवार या नेता ‘हेट स्पीच’ पोस्ट करता है तो वह भी कार्रवाई के दायरे में आएगा।

vasudha

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