रास्ते और घरों से गायब हो रही लड़कियां...दुधमुंही से लेकर 45 साल की औरत तक कोई भी नहीं रही बच; पुलिस रिकॉर्ड में कोई जिक्र तक नहीं

punjabkesari.in Friday, Apr 25, 2025 - 12:00 PM (IST)

नेशनल डेस्क. सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल का एक ऐसा शहर है, जो कभी नहीं सोता, हमेशा चहल-पहल भरा रहता है। लेकिन इस भागती-दौड़ती ज़िंदगी के बीच एक स्याह सच्चाई छिपी है। यह शहर पूर्वोत्तर के आठ राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। अब लड़कियों की तस्करी का एक केंद्र बनता जा रहा है।

तस्करी के मुख्य कारण

सिलीगुड़ी कॉरिडोर कई देशों से घिरा हुआ एक संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र है। यहाँ की खुली और असुरक्षित सीमाएँ मानव तस्करों के लिए स्वर्ग साबित हो रही हैं। नेपाल और बांग्लादेश से लड़कियों को आसानी से भारत में लाया जाता है। इसके अलावा क्षेत्र में बंद होते चाय बागान और बढ़ती गरीबी भी लोगों को पलायन करने पर मजबूर कर रही है, जिससे वे तस्करों के आसान शिकार बन जाते हैं। दिल्ली से दूरी होने के कारण भी यहाँ कानून व्यवस्था की पकड़ कमजोर दिखाई देती है।

देह व्यापार और घरेलू काम

यहाँ मुख्य रूप से दो तरह की तस्करी देह व्यापार के लिए और घरेलू काम के लिए होती है। नेपाल और पूर्वोत्तर की लड़कियों को अक्सर देह व्यापार में धकेल दिया जाता है, जबकि बंगाल की आदिवासी लड़कियों को घरेलू नौकरानी के तौर पर बेचा जाता है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर में जहाँ हवाई अड्डा, सड़क और रेल मार्ग सभी मौजूद हैं, इन लड़कियों के लिए एक ट्रांजिट पॉइंट यानी गुजरने का अड्डा बन जाता है।

डिजिटल जाल

तस्कर अब नए और आधुनिक तरीके अपना रहे हैं। वे सोशल मीडिया के माध्यम से नाबालिग लड़कियों से दोस्ती करते हैं, उन्हें प्यार या अच्छे काम का लालच देते हैं और फिर ऑनलाइन टिकट बुक करके उन्हें बुला लेते हैं। लड़कियाँ खुद ही ट्रेन या बस से बताई हुई जगह पर पहुँच जाती हैं, जहाँ से उन्हें अगवा कर लिया जाता है। माता-पिता को पता भी नहीं चलता कि उनकी बेटी कहाँ गायब हो गई।

पीड़ितों की आपबीती: दर्द और निराशा

लेख में मुर्शिदाबाद की एक महिला का उदाहरण दिया गया है, जिसे कई साल पहले बांग्लादेश से जबरन लाया गया था और अब वह देह व्यापार में फँसी हुई है। वह बताती है कि अब उसकी घर वापसी मुमकिन नहीं है। जलपाईगुड़ी के बागराकोट गाँव में एक और दर्दनाक कहानी सामने आती है। अरुणिमा नाम की एक लड़की स्कूल जाते समय गायब हो गई और 12 साल बाद भी उसके छोटे सफेद जूते घर के छज्जे पर रखे हुए हैं, जो परिवार की अटूट उम्मीद और गहरे दुख को दर्शाते हैं।

पानीघाटा चाय बागान के बंद होने से कई परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यहाँ की औरतें और लड़कियाँ काम की तलाश में बाहर जाने को मजबूर हो गईं, और कई तो कभी वापस नहीं लौटीं। एक बुजुर्ग दंपति अपनी बेटी के बारे में बताते हैं जो सालों पहले दिल्ली या गुड़गांव गई थी और अब तक उनका कोई संपर्क नहीं हो पाया है। उन्होंने पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं की क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि वह लौट आएगी और फिर डर गए।

एनजीओ की भूमिका: पीड़ितों की मदद और जागरूकता

सिलीगुड़ी में काम कर रहे 'टाइनी हैंड्स' जैसे कई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) मानव तस्करी के पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। रेशमा दर्जी नामक एक कार्यकर्ता बताती हैं कि उन्हें हर महीने तस्करी के कम से कम 23 मामले मिलते हैं। वे नाबालिग लड़कियों को फँसाने के नए तरीकों और तस्करों के नेटवर्क के बारे में भी जानकारी देती हैं।

'डुआर्स एक्सप्रेस मेल' एनजीओ के राजू नेपाली का कहना है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर की भौगोलिक स्थिति लड़कियों को तस्करी के लिए बहुत संवेदनशील बना देती है। नेपाल और बांग्लादेश से भी लड़कियों को लाया जाता है और अब बागडोगरा हवाई अड्डे से उन्हें चेन्नई, दिल्ली या बेंगलुरु होते हुए अरब देशों में भी बेचा जा रहा है।

पुलिस का दावा और जमीनी हकीकत

सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नरेट के सहायक पुलिस आयुक्त फारूख मोहम्मद चौधरी दावा करते हैं कि शहर में तस्करी के मामले कम हो गए हैं। हालांकि, एनजीओ कार्यकर्ताओं का कहना है कि स्थिति बहुत गंभीर है और हर रोज लड़कियाँ गायब हो रही हैं, जिनकी रिपोर्ट भी दर्ज नहीं होती। पुलिस प्लेसमेंट एजेंसियों पर नजर रखने का दावा करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है।


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Content Editor

Parminder Kaur

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