Shraddha Murder Case: एक्सपर्ट्स ने कहा- आफताब के ''कबूलनामे'' की नहीं है कोई कानूनी वैधता

punjabkesari.in Thursday, Dec 01, 2022 - 11:39 AM (IST)

नेशनल डेस्क: श्रद्धा वालकर हत्याकांड के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला के एक मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए बयान समेत कथित ‘‘कबूलनामों'' की कोई निर्णायक कानूनी वैधता नहीं है। विशेषज्ञों ने यह बात कही है। पुलिस और अन्य आधिकारिक सूत्रों ने हालांकि, यह दावा किया है कि पूनावाला ने अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वालकर की हत्या करने तथा उसके शव के टुकड़े-टुकड़े करने की बात कबूल कर ली है लेकिन उसके वकील ने कहा कि पूनावाला ने इससे इनकार किया कि उसने जुर्म कबूला है। कानूनी विशेषज्ञों ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए एक मजिस्ट्रेट के समक्ष किए गए पूनावाला के कबूलनामे पर भी सवाल उठाया और इसे आपत्तिजनक तथा अभूतपूर्व बताया। दिल्ली पुलिस में सूत्रों के हवाले से खबरों में कई बार दावा किया गया कि पूनावाला ने वालकर की हत्या करने, उसके शव के 35 टुकड़े करने और उन्हें शहर के अलग-अलग हिस्सों में फेंकने का जुर्म कबूल कर लिया है। 

बुधवार को ऐसा बताया गया कि उसने रोहिणी की फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) में हुई पॉलिग्राफी जांच में अपना जुर्म स्वीकार कर लिया है। इससे पहले 22 नवंबर को दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने दावा किया था कि पूनावाला ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मजिस्ट्रेट को बताया कि उसने आवेश में आकर वालकर की हत्या की और यह जानबूझकर नहीं किया। इसके तुरंत बाद पूनावाला के वकील अविनाश कुमार ने कहा कि उनके मुवक्किल ने कभी मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसा कोई कबूलनामा नहीं दिया। वीडियो कांफ्रेंस के जरिए कबूलनामे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर एस सोढी ने कहा, ‘‘यह पेश करने का आपत्तिजनक तरीका है। आप नहीं जानते कि वह किस तरह के दबाव में है। उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष शारीरिक रूप से पेश किया जाना चाहिए था।'' 

दिल्ली पुलिस ने दावा कि उसे सुरक्षा के मुद्दे के कारण वीडियो कांफ्रेंस के जरिए पेश किया गया। सेवानिवृत्त न्यायाधीश सोढी का मानना है कि ऐसे कबूलनामे का कोई मतलब नहीं है और दिल्ली पुलिस ‘‘समय बर्बाद कर रही है और मीडिया को ऐसी सूचना लीक करके प्रचार कर रही है।'' विशेषज्ञों का कहना है कि कानून के अनुसार, मजिस्ट्रेट के समक्ष कबूलनामा स्वीकार्य साक्ष्य है और इससे पुलिस को मामले को सुलझाने में मदद मिलती है लेकिन वीडियो कांफ्रेंस के जरिए किए गए कबूलनामे से जांच एजेंसी का पक्ष मजबूत नहीं होता है क्योंकि इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती है। 

न्यायाधीश सोढी ने कहा, ‘‘कानूनी रूप से वैध कबूलनामे के लिए मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी ने अपनी मर्जी से ऐसा किया है। आरोपी को सोचने का वक्त दिया जाना चाहिए।'' अपराध मामलों के जाने-माने वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि पुलिस हिरासत में कबूलनामे को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब कोई मजिस्ट्रेट आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 का पालन करता है जो कहती है कि यह सुनिश्चित करना मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि कबूलनामा मर्जी से किया गया है।'' फिल्म प्रोड्यूसर नीरज ग्रोवर के मामले में अभियोजन पक्ष की पैरवी करने वाले आपराधिक मामलों के वकील आर वी किनी ने आरोपी को मजिस्ट्रेट के समक्ष शारीरिक रूप से पेश करने पर जोर दिया। ग्रोवर की 2008 में हत्या कर दी गयी और उनके शव के टुकड़े-टुकड़े किए गए थे। 


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Content Writer

Anil dev

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