अगर चलती "लौह पुरुष" सरदार पटेल की मर्जी, तो सुलझ जाता कश्मीर मुद्दा

Friday, Dec 15, 2017 - 01:05 PM (IST)

नेशनल डेस्कः स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारत की आजादी के बाद प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 67वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल को श्रद्धांजलि दी। मोदी ने कहा कि सरदार पटेल ने देश के लिए जो महत्वपूर्ण सेवाएं दी हैं उसके लिए प्रत्येक भारतीय उनका ऋणी है। बारडोली सत्याग्रह का सफल नेतृत्व करने पर पटेल को वहां की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि प्रदान की थी। उन्होंने पूरे देश को एक सूत्र में बांधने की कोशिश की। वहीं अगर उस समय पटेल की चलती तो आज कश्मीर का मुद्दा होना ही नहीं था। कश्मीर कब का भारत का हिस्सा बन जाता।

तो सुलझ जाता कश्मीर मुद्दा
कश्मीर का मुद्दा आज भी चिंता का ही विषय हैं, हालांकि अब मोदी सरकार ने इस पर बातचीत के दरवाजे खोल दिए हैं लेकिन एक समय ऐसा था जब यह समस्या सुलझने की कगार पर थी लेकिन उस समय पटेल की मर्जी चलने नहीं दी गई। गृहमंत्री के पद पर रहते हुए पटेल ने इसे सुलझाने का भरपूर प्रयास किया। कश्मीर पर अपनी बेबसी पटेल ने कभी नहीं छुपाई। पटेल कहते थे कि, "यदि नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और उसे गृहमंत्रालय से अलग न करते तो हैदराबाद की तरह इस मुद्दे को भी आसानी से देशहित में सुलझा लेते।"

दरअसल भारत के एकीकरण के दौरान सिर्फ हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिए पटेल को सेना भेजनी पड़ी ती जिसके बाद वह भी बारत का हिस्सा बन गया। पटेल ठीक वैसे ही कश्मीर को भी भारत में मिलाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पूरा जोर लगाया लेकिन नेहरू नहीं माने और पटेल को अपनी सामा के अंदर रहकर ही काम करना पड़ा। लेकिन उनकी यहीं सीमाएं कश्मीर मुद्दा नहीं सुलझा पाई और आज ये समस्या काफी विकट हो गई है। पटेल पूरी तरह से आश्वस्त थे कि अगर उन्हें छूट दी जाती तो कश्मीर भी भारत में होता। पटेल ने मायूस होकर इस समस्या से खुद को अलग कर लिया और पाकिस्तान ने इसका फायदा उठाया।

हालांकि कुछ समय बाद फिर ऐसी परिस्थितियां बनी कि महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर का विलय भारत में करने की पटेल की मांग को मान लिया। उस समय कबाइलियों ने आक्रमण किया तो महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी, इस पर पटेल ने महाराजा को विलय का प्रस्ताव भेजा। बात पक्की हो गई और कश्मीर के भारत में सर्शत विलय पर मुहर लग गई। इसके बाद पटेल ने भारतीय सेना को महाराजा की मदद के लिए भेजा। सेना ने श्रीनगर पहुंचकर कबाइलियों को खदेड़ना शुरू कर दिया, इसी बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई और भारतीय सेना को अपना अभियान रोकना पड़ा। इसी बीच नेहरू की कश्मीर पर निजी दिलचस्पी के बाद पटेल को अपने हाथ खींचने पड़े। नेहरू ने कश्मीर का मुद्दा अपने हाथ में ले लिया और गृहमंत्रालय को इससे दूर रहने को कहा गया। पटेल कश्मीर को किसी भी तरह के विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे कई देशों से सीमाओं के जुड़ाव के कारण कश्मीर का विशेष सामरिक महत्व था इस बात को पटेल बखूबी समझते थे इसीलिए वे कश्मीर को भारत में मिलाना चाहते थे।

नेहरू के लिए नहीं बने पीएम
भारत की आजादी के बाद सभी की पीएम के लिए पटेल पहली पंसद थे। यहां तक कि कांग्रेस की कई समितियां भी इसकी पक्षधर थीं लेकिन महात्मा गांधी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल ने प्रधानमंत्री पद की दौड से खुद को अलग कर लिया और उन्होंने इस पद के लिए नेहरू का समर्थन किया। पटेल को उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री का कार्य सौंपा गया। हालांकि नेहरू और पटेल के बीच संबंध कभी सामान्य नहीं रहे और कई ऐसे अवसर आए जब दोनों ने अपने पदों से त्यागपत्र तक देने की धमकी दे डाली। गृहमंत्रायल संभालते ही उन्होंने सबसी बड़ी जिम्मेदारी निभाई देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाने की और वो भी बिना किसी खून-खराबे के। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान को आज भी सराहा जाता है।

आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। उनका भारत की एकता और अखंडता में सराहनीय सहयोग रहा। पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा गुर्जर कृषक परिवार में हुआ था। वे महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे, और उन्हीं विचारों के चलते उन्होंने भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लिया।

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