भारतीय सेना के जज्बे को सलाम

Monday, Aug 14, 2017 - 10:23 AM (IST)

श्रीनगर : फिल्मी पर्दे पर तो आपने हीरो को एक साथ 10-10 गुंडों की पिटाई करते देखा होगा लेकिन अगर आपको असल जिंदगी में हीरो देखने है तो सीमाओं पर तैनात उन जवानों को देखना चाहिए जो खून जमा देने वाली ठंड में भी दुश्मनों से हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं। सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित रणक्षेत्र है, जो समुद्र तल से 5000 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पर तापमान 40-50 डिग्री से नीचे चला जाता है और इतने कठिन वातावरण में भारतीय सेना हर पल सीमा की सुरक्षा करती है। अगर बहादुरी के सर्वोच्च शिखर को महसूस करना हो तो जैसलमेर जैसी गर्म जगह पर ऊंट पर बैठकर हमारी सीमाओं की पहरेदारी करने वाले सैनिकों से मिलना चाहिए जो जला देने वाली गर्मी में भी बिना अपनी परवाह किए देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। 

 

भारतीय सेना की कार्यकुशलता
भारतीय सेना न सिर्फ हमारी रक्षा के लिए सीमाओं पर प्रहरी का किरदार निभाती है बल्कि यही सेना हमारे लिए आंतरिक समस्याओं में भी सहायक सिद्ध होती है। कहीं बाढ़ आ जाए तो सेना, आंतकियों से लडऩा हो तो सेना, कहीं पुल टूट जाए तो सेना, कहीं चुनाव कराने हो तो भी सेना और तीर्थ यात्राओं की सुरक्षा भी सेना के ही हवाले है। सीमाओं पर हमारे जवान जागते हैं तो ही हम अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं। भारतीय सेना चीन और अमरीका के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना है। भारत की पूरी सेना में 13 लाख 25 हजार सक्रिय सैनिक और 21 लाख 43 हजार से भी अधिक रिजर्व सैनिक हैं। यूं तो भारतीय सेना के कारनामे असंख्य हैं लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं जब सेना ने अपने पराक्रम से दुनिया को सोचने पर विवश कर दिया है। इन्हीं कुछ विशेष घटनाओं को आज हम रेखांकित कर रहे हैं।

 

प्रथम कश्मीर युद्ध
जिस समय भारत अपनी आजादी का जश्न मना रहा था, उसी समय पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने भारत पर आक्रमण शुरू कर दिया। यह युद्ध थोड़े-थोड़े अंतराल पर लगभग एक साल तक चला। इस लड़ाई की सबसे खास बात यह थी कि यह लड़ाई भारतीय थल सेना ने अपने उन साथियों के खिलाफ लड़ी थी जिनसे कुछ साल पहले वह कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे। 

 

1965 का भारत-पाक युद्ध
अगस्त 1965 से लेकर सितम्बर 1965 तक भारत और पाकिस्तान के मध्य दूसरा कश्मीर युद्ध हुआ। इस युद्ध में भारतीय सेना ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी सेना को हराया था। कहा तो यह भी जाता है कि इस युद्ध में भारतीय सेना ने लाहौर तक पहुंच गई थी। 

 

1971 में पाकिस्तान के जनरल ने सैनिकों सहित किया था आत्मसमर्पण
1971 का भारत-पाक युद्ध कौन भूल सकता है। यह एक ऐसा युद्ध है जिसने इतिहास बदल दिया। इस युद्ध में पाकिस्तान के जनरल ए.के. नियाजी ने 90 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया था। इस आत्मसमर्पण के बाद ही पूर्वी पाकिस्तान बंगलादेश नाम का एक स्वतंत्र राष्ट्र बना था। भारतीय सेना का यह गौरव देशवासियों के मस्तक का तिलक है। 

 

कारगिल युद्ध का इतिहास सदैव रहेगा याद
मई 1999 में पाकिस्तानी सेना ने कारगिल जिले के द्रास सैक्टर में भारतीय सीमाओं में घुसपैठ कर दी थी। भारतीय सेना ने पाकिस्तान की इस नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया। करीब 2 महीने तक चले इस युद्ध के अंत में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और जीत भारत की हुई। इस युद्ध में दुश्मन सेना के 80 प्रतिशत तक जवानों को मौत के घाट उतार दिया गया था। कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है जो भारतीय सैनिकों की वीरता के लिए सदैव याद रखा जाएगा।भारतीय सेना विश्व की श्रेष्ठतम सेनाओं में से एक है और इस श्रेष्ठता को हमें बताने की आवश्यकता नहीं है। सेना ने संसाधनों की कमी या आधुनिक हथियारों की कमी अथवा वेतन की कमी का रोना रोए बिना अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है जो इस बात को प्रमाणित करती है कि भारतीय सेना विपरीत परिस्थितियों में भी जंग जीतने में सक्षम है। 

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