रिसर्चः केरल बानगी, ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया तो होंगे भयानक हालात

Saturday, Aug 25, 2018 - 01:25 PM (IST)

नेशनल डेस्कः केरल में सदी की सबसे भयंकर बाढ़ ने राज्य के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। इसके चलते 13 लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े और वे राहत कैंपों में रहने को मजबूर हैं। मौसम वैज्ञानिकों ने इस तरह की आपदा की पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया तो और भयानक हालत देखने पड़ सकते हैं। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक केरल में पिछले एक सप्ताह में सामान्य से दो-तिहाई अधिक बारिश हुई है।



इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटियोरॉलॉजी के मौसम वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कौल का कहना है कि केरल जैसी बाढ़ के लिए बदलती जलवायु को दोष देना मुश्किल है। उन्होंने कहा, हमारी रिसर्च बताती है कि 1950 से 2017 के बीच व्यापक स्तर पर जबरदस्त बारिश हुई है, जिसके चलते बाढ़ आई है। पिछले साल विज्ञान पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन में छपा था कि पिछले 68 साल में मानसून के दौरान भारी बारिश की वजह से आई बाढ़ में 69 हजार लोग मारे गए हैं और 1.70 करोड़ लोग बेघर हो गए।



केरल में 10 अगस्त तक राज्य के सभी बांध पानी से लबालब हो गए हैं। इसके चलते उनके गेट खोलने पड़े, इनमें इडुक्की गेट के दरवाजे 26 साल में पहली बार खोले गए थे। कोल ने बताया कि अरब सागर और इसके पास में तेजी से बढ़ती गर्मी के चलते मानसूनी गर्म हवाओं में तीन-चार दिन के लिए उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। इस दौरान अरब सागर की नमी पानी के रूप में जमीन पर बरसती है।



मॉनसून विशेषज्ञ एलेना सुरोव्यात्किना ने बताया कि पिछले 10 सालों में जलवायु परिवर्तन की वजह से जमीन पर गर्मी बढ़ी है, जिससे कि मध्य व दक्षिण भारत में मॉनसूनी बारिश में बढ़ोत्तरी हुई है। अभी तक धरती के औसत तामपान में ऑद्योगिक क्रांति के बाद से 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट ‘साउथ एशिया हॉटस्पॉट’ में कहा गया है कि वर्तमान हालात जारी रहे तो भारत का औसत वार्षिक तामपान डेढ़ से तीन डिग्री तक बढ़ सकता है।



इस रिपोर्ट के मुताबिक, यदि सही कदम नहीं उठाए गए तो बारिश के बदलते तरीके और बढ़ते तापमान से भारत की जीडीपी को 2.8 प्रतिशत क3 नुकसान होगा और 2050 तक देश की आधी जनसंख्या पर बुरा असर पड़ेगा। भारत के लिए केवल बाढ़ ही समस्या नहीं है। देश की जनसंख्या को वैश्विक तापमान का दंश झेलना होगा। इसके तहत जानकारों का कहना है कि भारत में गर्मी के वक्त ज्यादा गर्मी होगी और बारिश में ज्यादा वर्षा होगी।



हालिया रिसर्च में कहा गया है कि यदि कार्बन उत्सर्जन पर काबू नहीं पाया गया तो गर्मी और नमी के चलते उत्तरपूर्वी भारत के कुछ हिस्से इस शताब्दी के अंत तक रहने लायक नहीं बचेंगे। वहीं तटीय शहर समंदर के बढ़ते स्तर की चपेट में आ जाएंगे।    

 

Yaspal

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