26/11 की बरसी: इन महानायकों का बलिदान रहेगा याद

Monday, Nov 26, 2018 - 11:15 AM (IST)

नेशनल डेस्क: मुंबई हमले को 10  साल हो गए हैं। इस हमले की दु:खात्मकता कई कारणों से बढ़ जाती है। एक तो ये देश के सबसे हाईप्रोफाइल इलाकों में से एक पर किया गया हमला था। दूसरा आतंकी इन जगहों से ऐसे वाकिफ थे कि जैसे वो यहीं रहते हों। हमले के दौरान सुरक्षा एजेंसियों की हड़बड़ाहट खुलकर समाने आई तो मीडिया की लापरवाही भरी कवरेज से भी आतंकियों को मदद मिली। लेकिन इन सब के बावजूद हमें उन महानायकों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने अपनी जीवन का बलिदान देकर मुंबई को आपात स्थिति से बाहर निकाली।



मुंबई पुलिस को सलाम
हवल्दार तुकाराम ओम्बले। इनकी वजह से कसाब को जिंदा पकड़ा जा सका था लेकिन तुकाराम को कसाब के साथ हुई मुठभेड़ में अपनी जान देनी पड़ी। इसी तरह एन्काउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर, एसीपी अशोक कामटे, एटीएस चीफ हेमंत करकरे भी इस हमले में शहीद हो गए थे। इन लोगों के साथ ही मुंबई पुलिस के वो लोग भी इतने ही सम्मान के हकदार हैं जो उस समय मोर्चे पर नहीं थे मगर कंट्रोल रूम और बाकी जगहों पर काम करते हुए शहर की स्थिति नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहे थे।


एनएसजी का शुक्रिया
26 नवंबर 2008 के हमले के दूसरे दिन ताज होटल में एनएसजी ने मोर्चा संभाला था। आतंकवादी बंधकों को मारते जा रहे थे और होटल में ग्रेनेड का इस्तेमाल कर रहे थे। एनएसजी कमांडो गजेंद्र सिंह बिष्ट और मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को इन आंतकियों से सीधे इनकाउंटर में शहीद होना पड़ा लेकिन इन जांबाजों की बदौलत ताज होटल को हमलावरों से छुड़वाया जा सका।


कैप्टन रवि धर्निधिरका
इनके नाम से बहुत कम लोग परिचित हैं। भारतीय मूल के कैप्टन रवि धर्निधिरका गिनती उन वीरों में से हैं, जिन्होंने ताज होटल में 157 लोगों की जान बचाई थी। यूएस मरीन में कैप्टन रहे धर्निधिरका हमले के वक्त ताज के अंदर एक रेस्टोरेंट में थे। पहले कैप्टन खुद हमलावरों से मुकाबला करना चाहते थे लेकिन आतंकियों के हथियारों के खतरे को देखते हूए उन्होंने बंधकों को सुरक्षित बाहर निकालने का फैसला किया। जलते हुए होटल की 20वीं मंजिल से 157 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना अपने आप में एक बड़ा मिशन था जिसे कैप्टन ने बखूबी अंजाम दिया। इस काम में उनकी मदद दक्षिण अफ्रीका के दो पूर्व कमांडो ने भी की। 

vasudha

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