जम्मू-पुंछ लोकसभा सीट : पीओके रिफ्यूजियों और गोलीबारी प्रभावित सीमावर्ती ग्रामीणों का रूख काफी अहम

Monday, Apr 08, 2019 - 07:23 PM (IST)

साम्बा (संजीव चौधरी): जम्मू-पुंछ लोकसभा सीट भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही काफी महत्वपूर्ण है। हालांकि इस सीट से कुल 24 प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के ही बीच माना जा रहा है। सनद रहे कि नैकां ने सीट शेयरिंग के तहत इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं दिया है तो वहीं पीडीपी ने भी सेक्युलर वोट को बंटने से बचाने के अपना उम्मीदवार नहीं दिया है। पैंथर्स सुप्रीमो प्रो. भीम सिंह के साथ ही डोगरा स्वाभिमान संगठन के लाल सिंह भी मैदान में हैं। 
    


चार जिलों में फैली इस सीट से यहां वर्तमान भाजपा सांसद जुगल किशोर की प्रतिष्ठा दांव पर है तो वहीं कांग्रेस के दिज्गज रमन भल्ला मैदान में हैं। साम्बा, जम्मू, राजौरी और पुंछ जिलों के 20 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों वाली इस लोकसभा सीट में 20 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें 1947, 65 व 1971 में पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर से बेघर होकर आए लोगों की अच्छी खासी तादाद है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार विस्थापन के वर्ष के आधार पर राज्य में आए ऐसे परिवारों की संख्या लगभग 40000 हजार है, ऐसे में इन विस्थापित वोटर्स की संख्या लगभग 3-4 लाख बताई जाती है जिनका रूख इस चुनाव में अहम माना जा रहा है। वहीं पाक गोलीबारी प्रभावित ग्रामीणों की भी बड़ी संख्या है। सीमांत इलाकों पाक गोलीबारी शुरू से एक बड़ा मुद्दा रहा है। लाखों की तादाद में लोग पाक गोलीबारी से प्रभावित हैं जिनका पुर्नवास और मदद बड़ा मुद्दा रहा है। ऐसे में भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे सैंकड़ों सरहदी गांवों में रहने वाले ग्रामीण व रिफ्यूजी किस पार्टी का समर्थन करेंगे, यह भी काफी महत्वपूर्ण है। 

 

पीओके रिफ्यूजी परिवारों को मिली आर्थिक मद्द
2014 में की गई घोषणा को अमली जामा पहनाते हुए यद्यपि केन्द्र सरकार ने पीओके विस्थापितों के लिए 2000 करोड़ रूपए का बजट पास किया है और प्रत्येक विस्थापित परिवार को 5.5 लाख रूपए दिए हैं लेकिन विस्थापित इसे काफी कम मानते हंै और वनटाईम सेटलमेंट के तहत कम से 25 लाख रूपए दिए जाने की मांग कर रहे हैं। दस्तावेजी कमियों के चलते कई परिवारों को आज तक 5.5 लाख की राशि भी नहीं मिल पाई है। वेस्ट पाक रिफ्यूजियों को राज्य में स्थायी नागरिकता अधिकार का मुद्दा भी अधर में लटका है।


इंटरनेशनल बार्डर पर रहने वालों को मिला 3 प्रतिशत आरक्षण
मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर रहने वाले लोगों की पुरानी मांग को पूरा करते हुए उन्हें आरक्षण देने का काम किया है। हालांकि नियंत्रण रेखा और इंटरनेशनल बॉर्डर पर रहने वालों की परिस्थितियां एक सी हैं लेकिन इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वालों को आरक्षण नहीं मिलता था व जम्मू-कश्मीर रिज़र्वेशन एक्ट-2004 के तहत केवल नियंत्रण रेखा पर रहने वाले लोगों को ही यह लाभ मिल रहा था। केन्द्र ने एक ऑर्डिनेंस के माध्यम से इस अधिनियम में संशोधन किया व जिसके चलते अब अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वाले लोगों को भी आरक्षण मिलेगा। 


सीमावर्ती गांवों में व्यक्तिगत व सामुदायिक बंकरों का निमार्ण कार्य शुरू
लोगों को पाक गोलीबारी के दौरान सुरक्षित रखने के लिए सीमा से सटे गांवों में बंकर बनाने का काम तो चल रहा है। समूचे आईबी पर व्यक्तिगत एवं सामुदायिक बंकर बनाए जा रहे हैं लेकिन फिलहाल आधे-अधूरे बंकर ही बन पाए हैं। ग्रामीण सरकार को 5-5 मरले के प्लॉट्स का वादा भी याद दिला रहे हैं। सीमावर्ती इलाकों में युवाओं के लिए विशेष भर्तियों की मांग पर भी कोई खास कदम नहीं उठ पाएं हैं। पाक गोलीबारी में मरने वाले लोगों के लिए दी जाने वाली अनुग्रह राशि भी एक लाख से बढ़ा कर 5 लाख की गई है लेकिन प्रभावितों को बढ़ी हुई आर्थिक मदद का इंतजार है। 
 

Monika Jamwal

Advertising