Video - पॉलीथिन में आंत लपेटे जी रहे जवान को राजनाथ सिंह से सहायता का इंतजार
punjabkesari.in Sunday, Mar 25, 2018 - 04:39 AM (IST)
नेशनल डेस्क(आशीष पाण्डेय): देश की सुरक्षा में सर्वस्व बलिदार करने को जवान हमेशा तैयार रहते हैं। जब सरकारें इनके प्रति उदासीनता भरा रवैया अपनाती है तो जवान यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि आखिर किसके लिए वो अपनी जान हथेली पर रखकर नौकरी कर रहे हैं। सरकार की इसी तरह की उदासीनता का एक उदाहरण चम्बल में खूब चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां का एक जवान जो साल 2014 में सुकमा हमले में 8 गोलियां खाकर घायल हुआ था। वो इलाज व अन्य सुविधाओं के लिये मंत्रियों व अस्पतालों के दरवाजों पर चक्कर लगा रहा है। इस जवान के 17 साथी शहीद हो गए थे, नक्सली हमले में सिर्फ यही जिंदा बच सका था।
16 साल तक सेना में रहकर की देश सेवा
16 साल तक सेना में रहकर देश सेवा करने वाले मनोज सिंह तोमर अब बहुत दुखी हैं, क्योकि नक्सली हमले में घायल होने के बाद सरकार उनकी ओर कोई ध्यान दे रही है। हमले में उनको 8 गोलियां लगी थी जिसके बाद उनकी आंते बाहर आ गई और इनकी एक आँख भी खराब हो गई। जवान का कहना है कि वह अपने इलाज के लिए प्रदेश सरकार से लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और नरेंद्र सिंह तोमर से मिले थे। उन्होंने हरसंभव मदद का भरोसा भी दिया था, लेकिन इस बात को दो साल से अधिक हो गया लेकिन अब तक कोई जबाब नहीं आया। सरकार के इस उदासीन रवैया से सेना के जवानों का मनोबल टूटता है। शहीद के परिवारों को तो सरकार एक करोड़ रुपये दे रही है लेकिन उन्ही हमलों में पूरी तरह से शारीरिक असक्षमता वाले सैनिकों को सरकार पूछ तक नहीं रही है। साथ ही वो कहते है कि सरकारों से उनको कोई उम्मीद नहीं रही है।
सुकमा में हुआ नक्सली हमला
मुरैना जिले तरसमा गांव के रहने वाले मनोज सिंह तोमर नबम्बर 2014 में सुकमा जिले के तोंगपाल थाना में पदस्थ थे। सुबह 8 बजे जब वह अपनी टीम के साथ झीरम घाटी की ओर जा रहे थे, तभी घात लगाए बैठे 350-400 नक्सलियों ने अचानक हमला बोल दिया। जिसमे 11 सीआरपीएफ के जवान और 6 छत्तीसगढ़ पुलिस के जवान शहीद हो गए थे। इस हमले में केवल मनोज तोमर ही जिन्दा बचे थे। मनोज 8 साल तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुरक्षा टीम में एसपीजी कमांडो भी रहे हैं।
मनोज तोमर की जुबानी-नहीं मिला आज तक राजनाथ सिंह का चेक
आज से दो वर्ष पूर्व सुकुमा जिले के तोंगपाल थाने में पदस्थ थे, घटना वाले दिन सुबह 7.30 बजे जीरम घाटी की तरफ जाना था, जहां कांग्रेस नेता महेन्द्र कर्मा आदि की घटना नक्सलियों ने की थी। हम सुबह 7 बजे निकले रास्ते में 350 से 400 नक्सली घात लगाये बैठे थे। हमारे 36 जवान तथा 12 जवान छत्तीसगढ़ पुलिस के थे, इनमें से आगे की ओर 12 जवान हमारे और 6 छत्तीसगढ़ पुलिस के थे। जैसे ही हम टेंटवाडा स्थान पर पहुंचे, वैसे ही नक्सलियों ने घात लगाकर फायरिंग शुरू कर दी। हम 18 लोग फस चुके थे। जब तक जान रही तब तक लड़े । सभी 17 लोग शहीद हो चुके थे। अकेला मैं ही घायल हुआ। साथी लोग मुझे रायपुर इलाज के लिये ले गये, जहां सीआरपीएफ तथा सरकार ने इलाज कराया। देश के शहीदों के लिये सरकार जो मदृद करती है। हम भी मरे जैसे ही हैं, अधमरे बैठे हैं। सरकार ज्यादती कर रही है। सरकार के नुमाइंदें शहीद व घायल होने पर सहानुभूति दिखाकर चले जाते हैं, कोई भी सहायता नहीं करता। हमने केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर तथा गृहमंत्री राजनाथ सिंह व मध्यप्रदेश की मंत्री मायासिंह से मुलाकात की। इसमें माया सिंह ने ही हमारी मदृद की, नरेन्द्र सिंह तोमर व राजनाथ सिंह ने कोई मदृद नहीं की। नरेन्द्र सिंह तोमर तो राजनाथ सिंह के पास भी नहीं ले गये, मैं स्वयं राजनाथ सिंह के पास गया, उन्होंने अपने अधिकारियों से कहा कि मेरी निधि से 5 लाख की राशि घायल जवान को दी जाए। लेकिन उस राशि का चेक आज तक नहीं मिला है। मैं वर्ष 2004 से वर्ष 2012 तक पीएमओ में रहा हूुं। इतने के बावजूद भी मंत्रियों व अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।