नरसिम्हा राव पर लिखी किताब में राजीव गांधी को लेकर बड़ा खुलासा

Thursday, Oct 13, 2016 - 10:49 AM (IST)

रामनगर (उत्तराखंड): राजीव गांधी के पास उदारीकरण का खाका तो था लेकिन वह बोफोर्स कांड के बाद अपनी छवि दागदार हो जाने के चलते इसे लागू नहीं कर सकें। साथ ही, यदि वह ज्यादा समय तक जीवित भी रहते तो भी आर्थिक सुधार शुरू करने की संभावना कम थी क्योंकि कांग्रेस एेसा नहीं चाहती थी। ‘हाफ लायन: हाउ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांस्फॉर्म्ड इंडिया’ के लेखक ने यहां चल रहे कुमाउं साहित्य सम्मेलन में आज यहां ये टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस के 1985 के बंबई सत्र में राजीव गांधी के पास औद्योगीकरण का दो पैरा था जिसे पार्टी ने उन्हें उससे हटाने को मजबूर कर दिया। 1985 के राजीव गांधी उदारीकरण समर्थक थे लेकिन 1987 के राजीव गांधी बोफोर्स से दागदार होने के कारण बदलाव लाने में सक्षम नहीं थे।

सीतापति ने कहा , ‘‘यदि 1989 और 1991 के कांग्रेस घोषणापत्र पर गौर करें तो यह लाइसेंस प्रणाली खत्म किए जाने और उदारीकरण की बात नहीं करता। मेरा मानना है कि यह काल्पनिक है कि यदि राजीव गांधी जीवित रहते और हादसा नहीं होता तो हमने उदारीकरण नहीं देखा होता।’’ हालांकि, कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंहवी ने खारिज करते हुए इसे अटकलबाजी और काल्पनिक बताया।  गौरतलब है कि चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी हत्या 21 मई 1991 लिट्टे ने कर दी थी। सीतापति के मुताबिक उदारीकरण लागू करने का खाका राव से पहले आए प्रधानमंत्रियों के पास मौजूद था लेकिन विपक्ष से निपटने में अक्षम रहने के चलते उस पर आगे नहीं बढ़ा जा सका।

उन्होंने कहा कि 1991 में आर्थिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय पाने वाले राव विश्व इतिहास में सबसे कमजोर सुधारक थे।  उन्होंने बताया कि राव खुद कहते रहे, ‘‘मैंने कुछ नहीं किया, आप सरदार जी (तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह) से पूछिए, आईएमएफ से पूछिए।’’ इसका खाका इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के पास मौजूदा था। पर इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि संभवत: राव भारत के सबसे ‘बोरिंग’ प्रधानमंत्री रहे हैं। उनकी पार्टी उनसे नफरत करती थी और वह संसद में अल्पमत में थे।

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