अलवर और अजमेर के उपचुनाव तय करेंगे राजस्थान का सियासी भविष्य

Friday, Dec 29, 2017 - 05:12 PM (IST)

नेशनल डेस्कः राजस्थान की अलवर और अजमेर लोकसभा सीट तथा भीलवाड़ा जिले के माण्डलगढ़ विधानसभा सीट के उप-चुनाव के लिए 29 जनवरी को मतदान होगा। मतों की गणना एक फरवरी को होगी। यानि एक फरवरी को राजस्थान का सियासी भविष्य तय हो जाएगा। पंजाब केसरी के संवाददाता नरेश कुमार बता रहे हैं कि राज्य के विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा की अलवर व अजमेर सीटों पर होने वाले उपचुनाव का विधानसभा चुनावों पर क्या असर होगा।


2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात के बाद राजस्थान ऐसा दूसरा राज्य था जहां भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ करते हुए राज्य की सारी 25 लोकसभा सीटों पर कब्जा कर लिया था लेकिन पिछले कुछ समय के दौरान राज्य से भाजपा के दो सांसदों की मौत हो गई है। अलवर के सांसद चांदनाथ और अजमेर के सांसद सांवर लाल जाट की मृत्यु के बाद दोनों सीटें खाली हो गई हैं और इन दोनों सीटों पर जल्द ही लोकसभा का उपचुनाव करवाए जाने की उम्मीद है। इन दोनों सीटों का उपचुनाव राज्य के विधानसभा चुनाव का सैमीफाइनल माना जा रहा है। इन सीटों पर आने वाला फैसला निश्चित रूप से राजस्थान के चुनाव को प्रभावित करेगा।

पिछली बार अलवर में भाजपा के चांदनाथ ने कांग्रेस के भंवर सिंह जितेंद्र को 2,83,925 मतों के अंतर से हराया था। इस उपचुनाव में अलवर राज घराने से संबंधित भंवर सिंह को मैदान में नहीं उतारा जा रहा। अलवर से डाक्टर करण सिंह को मैदान में उतारा गया है। भाजपा के साथ सीधे मुकाबले वाले इस राज्य में कांग्रेस के हारे हुए उम्मीदवार को इस तरीके से बदलने के कारण नकारात्मक संदेश जा रहा है। इसी तरह अजमेर सीट पर पार्टी के हैवी वेट सचिन पायलट सांवर लाल जाट के हाथों 1,71,983 मतों से हार गए थे। उनकी जगह पर भी अजमेर में नया उम्मीदवार ढूंढा जा रहा है। हालांकि भाजपा ने इन सीटों पर कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है लेकिन पार्टी की रणनीति आक्रामक होने की बजाय रक्षात्मक लग रही है।

हर बार बदलती है सरकार
कांग्रेस और भाजपा के सीधे मुकाबले वाले इस राज्य में पिछले 5 चुनावों के दौरान हर बार सरकार बदलती रही है। 1993 में भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी तो 1998 में कांग्रेस ने इतिहास बनाते हुए राज्य की 153 सीटें जीत लीं। 2003 में भाजपा ने राज्य की सत्ता पलट दी और 120 सीटों पर कब्जा कर लिया। इसी प्रकार 2008 में कांग्रेस एक बार फिर 96 सीटें हासिल कर सत्ता में आ गई। 2013 में भाजपा ने अपने सारे पुराने रिकार्ड तोड़ते हुए 163 सीटों पर कब्जा कर लिया। 

5 प्रतिशत वोट से पलट जाती है बाजी
इस राज्य में कांग्रेस और भाजपा के मध्य 5 फीसदी से कम वोट शेयर का अंतर रहता है। 5 प्रतिशत वोटों का झुकाव जिस तरफ ज्यादा होता है वह बाजी मार लेता है। हालांकि 2013 और 1998 का चुनाव इस मामले में अपवाद रहा और भाजपा की जीत का अंतर इस दौरान 12 फीसदी को भी पार कर गया जबकि 1998 में कांग्रेस और भाजपा की जीत का अंतर 11 फीसदी रहा था। लेकिन इससे पहले 3 चुनावों में दोनों पार्टियों के मध्य 5 फीसदी से कम का अंतर रहा है।

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