भारत-पाकिस्तान तनाव: सरहद पार जाती है बारात, पर दुल्हन नहीं आती साथ

Tuesday, Jul 09, 2019 - 02:47 PM (IST)

नई दिल्ली: दुनियाभर में शादी को किसी भी व्यक्ति के जीवन का सबसे अहम पड़ाव माना जाता है। किसी भी लड़की के लिए यह उसके जीवन का सबसे बड़ा दिन होता है। हर लड़की का सपना होता है कि वो भी दुल्हन बने, सजे संवरे, उसका दूल्हा भी दरवाजे पर बारात लेकर आए और शादी कर उसे अपने साथ ले जाए। आपको हैरानी होगी कि राजस्थान में जैसलमेर के बैया गांव से बारात सरहद पार पाकिस्तान जाती है, लेकिन दुल्हन इस पार नहीं आ पाती। 



धूमधाम से हुई थी विक्रम सिंह की शादी
जानकारी मुताबिक 23 साल के विक्रम सिंह भाटी की मई में सरहद पार पाकिस्तान के सिनोई गांव में धूमधाम से शादी हुई थी। यह गांव पाकिस्तान के उमरकोट जिले में पड़ता है। शादी के बाद विक्रम ने कई दिन ससुराल में अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ हंस खेलकर गुजारे। लेकिन वापसी के समय उसे बिना दुल्हन के ही वहां से आना पड़ा। इसके बाद न तो कभी उसकी अपनी पत्नी के साथ फोन पर बात हुई और न ही उसके पास कोई फोटो है जिसे वो देख सके। उन्होंने अपनी दुल्हन के वीजा के लिए कई बार अप्लाई किया पर कुछ भी हाथ न लगा। विक्रम और उनका परिवार सोधा राजपूत हैं और कहा जाता है कि वहां के घर-घर की यही कहानी है। 



महेंद्र सिंह की भी कुछ ऐसी ही है कहानी 
वहीं बाड़मेर में खेजड़ का पार गांव के महेंद्र सिंह की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। महेंद्र सिंह की शादी 8 मार्च को पाकिस्तान के उसी सिनोई गांव में तय थी लेकिन इसी दौरान 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमला हुआ, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए। थार एक्सप्रेस का आना-जाना रुक गया। महेंद्र ने पाकिस्तान के लिए जितनी टिकटें बुक कराई थीं, सारी कैंसल करानी पड़ी। समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए महेंद्र सिंह ने कहा, हमें वीजा पाने के लिए बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।  इसके बाद अप्रैल में वह बारात लेकर शादी करने पाकिस्तान गए। महेंद्र अभी पिछले हफ्ते ही शादी करके पाकिस्तान से लौटे हैं लेकिन बिना दुल्हन के। दुल्हन को वीजा नहीं मिला और उसे पाकिस्तान में छोड़कर आना पड़ा। महेंद्र सिंह अब दुल्हन को वापस लाने के लिए काफी कोशिश कर रहे हैं। 



सीमा पर तनाव की भेंट चढ़ गई शादियां
जैसलमेर के अलावा बाड़मेर, जोधपुर में भी कई ऐसे लोग हैं जिनकी शादियां पाकिस्तान में होती हैं, जहां से दुल्हन बड़ी मुश्किल से भारत आ पाती है। हालांकि, 1965 तक इनकी शादियों में बॉर्डर भी बाधा नहीं था। यह लोग और उधर के लोग भी बेरोकटोक बॉर्डर पार करके शादियां करते थे लेकिन अब तो शादियां, अंतिम संस्कार, सालगिरह सब सीमा पर तनाव की भेंट चढ़ गए हैं। 

Anil dev

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