कट्टरपंथ के दबाव में है बांग्लादेश की सरकार !

Saturday, Apr 30, 2016 - 06:09 PM (IST)

बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता की बातें करने वाले ब्लॉगर और बुद्धिजीवी सुरक्षित नहीं हैं। इनमें से कई की हत्या कर दी गई है। वहां स्वतंत्र लेखक, प्रोफ़ेसर और पत्रकार किसी को नहीं छोड़ा जा रहा। हाल में तीन हत्याएं की गई हैं। राजशाही विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रेज़ाउल करीम सिद्दीक़ी की 23 अप्रैल को मार डाला गया। इसके ठीक दो दिन बाद 25 अप्रैल को ढाका में समलैंगिकों की पहली पत्रिका ''रूपाबन'' के संपादक और उनके एक मित्र का शव मिला था। बांग्लादेश में फ़रवरी 2013 से अब तक कई ब्लॉगर और धर्मनिरपेक्ष लोगों को बेरहमी से मार डाला गया। इन घटनाओं के बाद बांग्लादेश के स्वतंत्र विचारक अपनी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं। 

इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि उनके बारे में तय हो जाता है कि कब, किसे, कहां और कैसे मारा जाना है। पिछले साल मार्च में वशीकुर रहमान की ढाका में हत्या की गई थी। वह ब्लॉग लिखने में छद्म नाम का इस्तेमाल करते थे। कहीं भी अपनी तस्वीर तक नहीं लगाते थे। उनके गुप्त रहने के प्रयास भी उन्हें बचा नहीं सके। हमलावर साये की तरह उनके पीछे लगे रहे और उनका लिखना बंद कर दिया गया। रहमान की हत्या के आरोप में जिन दो लोगों को पकड़कर अधिकारियों को सौंपा गया, वे मदरसा के छात्र थे।

बांग्लादेश में ऐसी ही परिस्थितियां 45 साल पहले यानि 1971 में बन गई थीं। उस समय पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मुक्ति संग्राम लड़ा जा रहा था। दिसंबर में 200 से अधिक प्रोफ़ेसरों, कवियों और अन्य धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों को पहले उनके घर से अगवा किया गया,फिर बेरहमी से उनकी हत्या कर दी गई। इस काम को धर्मांध इस्लामिक संगठन अल बदर ने किया था। मारने का वही तरीका अपनाया गया जिसे आजकल आईएसआईएस अपनाता है। आंखों पर पट्टी और हाथ पीछे बांध कर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया। अल बदर संगठन कौन था? इसका भी जवाब सामने आ गया। आरोप लगाया गया कि मुक्ति संग्राम के दिनों में बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी के नेताओं ने पाकिस्तान सेना के साथ मिलकर इसे बनाया था। 

इनमें से एक संगठन हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम ने 84 ब्लॉगरों की एक लिस्ट छापकर उन पर ईशनिंदा के आरोप लगाए और उन्हें सज़ा देने की मांग की थी। शेख हसीना सरकार ने हिफ़ाज़त के साथ समझौता करने की पहल की। इससे वह मदरसों तक सीमित हो गया। कार्रवाई के नाम पर सरकार ने मुसलमानों की भावनाएं भड़काने के आरोप में पांच ब्लॉगरों को जेल में बंद कर दिया। बांग्लादेश में जिस प्रकार प्रकाशक, लेखक, ब्लॉगर आदि की हत्याएं की जा रही हैं,वह साबित करती हैं कि वहां कानून-व्यवस्था की स्थिति बहुत बुरी है। इन घटनाओं से वहां कट्टरपंथ को बढ़ावा मिलने का प्रमाण भी सामने आता है। हाल में जिस प्रकाशक को मौत के घाट उतारा गया उन्होंने बांग्लादेश के मशहूर ब्लॉगर अविजित रॉय की पुस्तक प्रकाशित की थी। फरवरी 2016 में अविजित ने अभिव्यक्ति की आजादी की कीमत अपनी जान देकर चुकाई थी। ढाका में दिनदहाड़े उन्हें मार दिया गया था। वह अपनी पत्नी के साथ पुस्तक मेले से घर लौट रहे थे।

बांग्लादेश में ऐसी घटनाएं 2013 से तेजी बढ़ी हैं। हाल में हुई दो हत्याओं से पहले चार ब्लागरों को हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया था। हत्याओं की जिम्मेदारी या तो अंसारुल्लाह बांग्ला टीम ने ली है या किसी और कट्टरपंथी संगठन ने। इसमें संदेह नहीं कि इनके तार अल कायदा और जमात-ए-इस्लामी से भी जुड़े हैं। संवैधानिक रूप से बांग्लादेश धर्मनिरेपक्ष राष्ट्र है, मगर कट्टरपंथी इसे इस्लामी देश बनाना चाहते हैं। जान गंवाने वालों को पहले धमकाया गया था। ये सभी मुखर सेक्युलर थे। सभी सेक्युलर बुद्धिजीवी, लेखक-पत्रकार और समाजकर्मियों का जीवन वहां अनिश्चित हो गया है।  

एक तथ्य और गौर करने लायक है कि वर्ष 1971 के युद्ध अपराधों पर सुनवाई के लिए न्यायाधिकरण के गठन के बाद उदारवादियों और लोकतंत्रवादियों पर हमले और तेज हो गए हैं। कारण,जमात-ए-इस्लामी के कई प्रमुख लोगों के खिलाफ न्यायाधिकरण ने सजा सुनाई थी। कहने को बांग्लादेश की सरकार धर्मनिरपेक्षता की पक्षधर है, लेकिन कट्टरपंथी गुटों से निपटने में सख्ती नहीं बरती जा रही है। अविजित राय की हत्या के बाद बांग्लादेश में विरोध-प्रदर्शनों से काफी हंगामा हो चुका है। ढाका के साथ कई शहरों में हजारों लोगों ने कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज बुलंद की। उनका कहना था कि सरकार को मजबूती से इस लड़ाई का साथ देना चाहिए। सरकार इन हत्याओं के बाद कितना सचेत होती है,जल्द पता चल जाएगा। यदि इसी प्रकार वहां अभिव्यक्ति का गला घोंटा जाता रहा तो आम जनता के संघर्ष को शुरू होते देर नहीं लगेगी।

Advertising