पंजाब मुख्यमंत्री ने नीति आयोग में उठाई आवाज
punjabkesari.in Saturday, May 24, 2025 - 08:02 PM (IST)

चंडीगढ़ 24 मई (अर्चना सेठी) केंद्र सरकार की ओर से पंजाब के साथ सौतेले व्यवहार से संबंधित मुद्दों को उठाते हुए मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज कहा कि राज्य के साथ इस तरह का पक्षपातपूर्ण और भेदभावपूर्ण व्यवहार अनुचित है। यहां नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल की बैठक में हिस्सा लेते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए और दोहराया कि पंजाब के पास किसी अन्य राज्य के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है।
राज्य में पानी की गंभीर स्थिति को देखते हुए सतलुज-यमुना लिंक (एस.वाई.एल.) नहर के बजाय यमुना-सतलुज-लिंक (वाई.एस.एल.) नहर के निर्माण के विचार पर जोर देते हुए भगवंत सिंह मान ने कहा कि रावी, ब्यास और सतलुज नदियों में पहले ही पानी कम है और अतिरिक्त पानी को कमी वाले बेसिनों की ओर मोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंजाब ने बार-बार यमुना के पानी के बंटवारे के लिए बातचीत में शामिल होने की मांग की है क्योंकि यमुना-सतलुज-लिंक परियोजना के लिए 12 मार्च, 1954 को पुराने पंजाब और उत्तर प्रदेश के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें पुराने पंजाब को यमुना के पानी का दो-तिहाई हिस्सा हासिल करने का हकदार बनाया गया था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस समझौते में यमुना के पानी से सिंचाई के लिए किसी विशेष क्षेत्र को निर्दिष्ट नहीं किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि पुनर्गठन से पहले रावी और ब्यास नदियों की तरह यमुना नदी भी पुराने पंजाब राज्य से होकर बहती थी। उन्होंने दुख जताया कि पंजाब और हरियाणा के बीच नदी के पानी के बंटवारे के दौरान यमुना के पानी पर विचार नहीं किया गया, जबकि रावी और ब्यास के पानी को ठीक तरह से ध्यान में रखा गया था। भारत सरकार द्वारा गठित इरिगेशन कमीशन की 1972 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए भगवंत सिंह मान ने कहा कि इस रिपोर्ट के अनुसार पंजाब (1966 में पुनर्गठन के बाद) यमुना नदी बेसिन में आता है।
इसलिए मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर हरियाणा का रावी और ब्यास नदियों के पानी पर दावा है, तो पंजाब का भी यमुना के पानी पर समान दावा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन मांगों को नजरअंदाज किया गया है और यमुना नदी पर भंडारण ढांचे के निर्माण न होने के कारण पानी बर्बाद हो रहा है। इसलिए भगवंत सिंह मान ने अनुरोध किया कि इस समझौते की समीक्षा के दौरान पंजाब के दावे पर विचार किया जाए और पंजाब को यमुना के पानी पर उसका हक दिया जाए।
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बी.बी.एम.बी.) के पक्षपातपूर्ण रवैये का मुद्दा उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बोर्ड का गठन पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधानों के तहत किया गया था, जिसका अधिकार भाखड़ा, नंगल और ब्यास परियोजनाओं से भागीदार राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ को पानी और बिजली की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए है। उन्होंने कहा कि पंजाब ने पिछले समय में अपने पीने के पानी और अन्य आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए भागीदार राज्यों के साथ पानी साझा करने में बहुत उदारता दिखाई है क्योंकि पंजाब अपनी पानी की मांग को पूरा करने के लिए अपने भूजल भंडारों पर निर्भर करता था, खासकर धान की फसल के लिए। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है, यहां तक कि पंजाब के 153 ब्लॉकों में से 115 ब्लॉक (76.10 प्रतिशत) अत्यधिक भूजल दोहन कर रहे हैं, जो देश के सभी राज्यों में सबसे अधिक है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अब नहरी ढांचे को अपग्रेड करने के बाद भी पंजाब को अपनी पानी की जरूरत से कम पानी मिल रहा है और नदी के पानी में उसका हिस्सा भी इन जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी बार-बार की मांग के बावजूद बी.बी.एम.बी. ने हरियाणा को पानी छोड़ने को नियंत्रित करने के लिए अन्य भागीदार राज्यों को सलाह देने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की और परिणामस्वरूप इसने 30 मार्च, 2025 तक अपने हिस्से का पूरा पानी उपयोग कर लिया। भगवंत सिंह मान ने कहा कि हरियाणा सरकार की मांग पर मानवीय आधार पर विचार करते हुए पीने के पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए पंजाब के हिस्से से 4000 क्यूसेक पानी छोड़ने का फैसला किया गया था, हालांकि हरियाणा को वास्तव में केवल 1700 क्यूसेक पानी की जरूरत थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बी.बी.एम.बी. ने पंजाब के हितों को नजरअंदाज किया और पंजाब द्वारा उठाए गए गंभीर आपत्तियों के बावजूद हरियाणा को 8500 क्यूसेक पानी छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि यह कानून की भावना और प्रस्तावों के खिलाफ है क्योंकि बी.बी.एम.बी. ने पंजाब की सहमति के बिना पंजाब का पानी लेने का यह फैसला लिया है। साथ ही, बी.बी.एम.बी. को सलाह दी जानी चाहिए कि वह संयम बरते और कानून के प्रस्तावों के अनुसार काम करे। भगवंत सिंह मान ने नीति आयोग को सूचित किया कि पंजाब अपने कार्यों में वित्तीय कुशलता लाने के लिए बी.बी.एम.बी. से बार-बार अनुरोध कर रहा है, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ और बी.बी.एम.बी. द्वारा संसाधनों के उपयोग में भी लापरवाही बरती गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बी.बी.एम.बी. को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी जानी चाहिए कि वित्तीय संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग हो ताकि भागीदार राज्यों पर वित्तीय बोझ कम हो सके। उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में बी.बी.एम.बी. प्रशासनिक गतिविधियों में शामिल रहा है, जो पक्षपातपूर्ण और पंजाब के हितों के खिलाफ प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि बी.बी.एम.बी. में पंजाब के अधिकारियों को हाशिए पर धकेला जा रहा है और अनदेखा किया जा रहा है। इस पर गंभीर आपत्ति जताते हुए भगवंत सिंह मान ने कहा कि बी.बी.एम.बी. को दोनों राज्यों के साथ अपने व्यवहार में पारदर्शी और निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देना उचित होगा।
भाखड़ा नंगल बांध पर सी.आई.एस.एफ. की तैनाती के मुद्दे को उजागर करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भाखड़ा और नंगल बांधों की सुरक्षा उनके निर्माण से ही संबंधित राज्यों की जिम्मेदारी रही है। उन्होंने कहा कि बिजली मंत्रालय ने भाखड़ा नंगल बांधों की सुरक्षा के लिए सी.आई.एस.एफ. को तैनात करने का फैसला लिया है, जो एक अनावश्यक कदम है क्योंकि एक अच्छी तरह से स्थापित संचालन प्रबंधन को बिगाड़ने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह इन बांधों के संबंध में पंजाब के अधिकार को और कमजोर करता है। इसे देखते हुए भगवंत सिंह मान ने अनुरोध किया कि सी.आई.एस.एफ. को तैनात करने के फैसले को तुरंत रद्द किया जाए।
चंडीगढ़ प्रशासन में पंजाब के अधिकारियों को 60:40 के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व की मांग करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है और 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद एक स्थापित व्यवस्था रही है, जिसमें चंडीगढ़ प्रशासन में सभी सिविल पदों को पंजाब और हरियाणा से लिए गए कर्मचारियों से 60:40 के अनुपात में भरा जाना तय किया गया था। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में ए.जी.एम.यू.टी. और डी.ए.एन.आई.सी.एस. कैडर से डेपुटेशन में योजनाबद्ध वृद्धि के कारण यह संतुलन बुरी तरह बिगड़ गया है। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ प्रशासन में अब तक पंजाब के अधिकारियों द्वारा संचालित प्रमुख विभाग अब ए.जी.एम.यू.टी. कैडर के बहुत जूनियर अधिकारियों को आवंटित कर दिए गए हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि यह बढ़ता केंद्रीकरण और अपनी राजधानी के प्रशासन में पंजाब की घटती भागीदारी सहकारी संघवाद की भावना के विपरीत है। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ प्रशासन के सेवा नियमों में सभी संशोधनों/प्रस्तावित संशोधनों को तुरंत रद्द/वापस लिया जाए।
अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए शैक्षणिक सत्र 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के लिए पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम के तहत बकाया राशि तुरंत जारी करने का मुद्दा उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब में देश भर में अनुसूचित जाति की आबादी का सबसे अधिक प्रतिशत (31.94 प्रतिशत) है और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम को 100 प्रतिशत केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया गया था। उन्होंने कहा कि 60.79 करोड़ रुपए की राज्य की 'प्रतिबद्ध देनदारी' वाली यह योजना पंजाब में अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए बहुत लाभकारी साबित हुई है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने 2018 में 'प्रतिबद्ध देनदारी' के मानदंडों को बदल दिया और इसे पिछली योजना अवधि/वित्त आयोग की अवधि में राज्य और केंद्र की हिस्सेदारी को बराबर कर दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नए मानदंडों के अनुसार 2017-18, 2018-19 और 2019-20 की अवधि के लिए राज्य सरकार की 'प्रतिबद्ध देनदारी' अचानक बढ़कर 800.31 करोड़ रुपके4 हो गई, जो 2016-2017 के 60.09 करोड़ रुपए से 13 गुना अधिक है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय द्वारा मानदंडों में अचानक बदलाव के परिणामस्वरूप एकत्रित हुई सारी देनदारी बहुत बड़ी है, जिसे अकेले राज्य सरकार नहीं भर सकती। इसलिए भगवंत सिंह मान ने भारत सरकार से अनुरोध किया कि इस बैकलाॅग राशि 938.26 करोड़ रुपए (देनदारी का 60 प्रतिशत) को केंद्र द्वारा जारी किया जाए ताकि इस मामले को हल किया जा सके। उन्होंने कहा कि इससे कमजोर और पिछड़े वर्गों के छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने और अपनी किस्मत बदलने में मदद मिलेगी।
हरीके हेडवर्क्स की डी-सिल्टिंग के मुद्दे पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सतलुज और ब्यास नदियों के संगम बिंदु पर स्थित है और दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, राजस्थान को पानी की आपूर्ति और पाकिस्तान में प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए मुख्य नियंत्रण बिंदु है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्षों में जल भंडार में गाद/रेत के तलछट ने जल भंडार की क्षमता को बहुत कम कर दिया है और नहरों के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक पानी का प्रतिकूल प्रभाव अब कपूरथला जिले तक महसूस किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सतलुज और ब्यास नदियों के साथ लगती कृषि भूमि का बड़ा हिस्सा बाढ़ के लिए संवेदनशील हो रहा है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि लगभग 600 करोड़ रुपए की लागत से जल भंडार की डी-सिल्टिंग की तत्काल जरूरत है। उन्होंने कहा कि चूंकि जल भंडार क्षेत्र को रामसर कन्वेंशन साइट घोषित किया गया है और यह राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा है, इसलिए केंद्र सरकार और राजस्थान को इस परियोजना की लागत साझा करनी चाहिए।
विकसित भारत@2047 के दृष्टिकोण के साथ पंजाब की एकजुटता को दृढ़ता से व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब भी रंगीन पंजाब - एक गतिशील, सर्वांगीण और प्रगतिशील राज्य के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि पंजाब ने विजन दस्तावेज-2047 तैयार किया है, जिसे हमने 2023 में लॉन्च किया था, जो विकसित भारत के उद्देश्य के साथ काफी मेल खाता है। उन्होंने कहा कि विकसित पंजाब के दृष्टिकोण को हासिल करने के लिए 8% या इससे अधिक वार्षिक जी.डी.पी. वृद्धि का लक्ष्य है, जो औद्योगिक विकास और विभिन्न सेवाओं को ध्यान में रखते हुए कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित रहेगा। उन्होंने कहा कि व्यापारिक माहौल में सुधार, बुनियादी ढांचे में निवेश और प्रमुख क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए संरचनात्मक सुधार जारी हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि हेल्पलाइन नंबर 1076 के माध्यम से नागरिकों को 406 नागरिक-केंद्रित सेवाएं उनके दरवाजे पर ही उपलब्ध कराई जा रही हैं और इस सुविधा से भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं बचती, जिससे नागरिक इन सेवाओं को अधिक आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में अग्रणी राज्य बनकर उभरा है। उन्होंने कहा कि आम आदमी क्लीनिकों/आयुष्मान आरोग्य केंद्रों के माध्यम से नागरिकों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं दी जा रही हैं और इन केंद्रों के माध्यम से 3.34 करोड़ से अधिक मरीजों ने इलाज सेवाएं प्राप्त की हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार की मुख्य प्राथमिकता बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना है ताकि लोगों के लिए सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं सुनिश्चित की जा सकें। उन्होंने कहा कि 1.5 लाख लोग "सीएम दी योगशाला" पहल का लाभ उठा रहे हैं, जो स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती की दिशा में राज्य सरकार की एक बड़ी छलांग है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सड़क हादसों में कीमती मानव जीवन बचाने के लिए 2024 में सड़क सुरक्षा बल (एस.एस.एफ.) का गठन किया गया है। उन्होंने कहा कि इस बल को 144 नए वाहन उपलब्ध कराए गए हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इस पहल की शुरुआत के बाद मृत्यु दर में 10 प्रतिशत की कमी आई है और विभिन्न घटनाओं का शिकार हुए 30,000 से अधिक लोगों को इस बल द्वारा समय पर सहायता प्रदान की गई।
मुख्यमंत्री ने भारत माला प्रोजेक्ट कॉरिडोर के साथ ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब (जी.एम.एच.) की भी मांग की, जो संगरूर को दिल्ली से जोड़ता है और व्यवसायों को आकर्षित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा, सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करेगा। इसी तरह, उन्होंने मोहाली में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया के विस्तार की भी मांग की। मुख्यमंत्री ने पंजाब में समर्पित सेक्टर-विशिष्ट निर्यात क्षेत्र स्थापित करने की भी मांग की, जिसमें जालंधर के लिए खेल सामान, अमृतसर के लिए फूड प्रोसेसिंग, लुधियाना के लिए टेक्सटाइल और मोहाली के लिए ऑटोमोबाइल पार्क शामिल हैं। भगवंत सिंह मान ने भारत सरकार से पावरकॉम की पछवाड़ा खान से पंजाब को 100 प्रतिशत बिजली आपूर्ति करने वाले आई.पी.पी. को रॉयल्टी-मुक्त कोयला आपूर्ति की अनुमति देने की भी अपील की।
कृषि को लाभकारी पेशा बनाने के लिए फसल विविधीकरण की जोरदार वकालत करते हुए मुख्यमंत्री ने धान के स्थान पर मक्का के लिए 17,500 रुपए प्रति हेक्टेयर नकद प्रोत्साहन की मांग की। इसी तरह, बी.टी.-III कपास, मेटिंग डिसरप्शन तकनीकों पर सब्सिडी और एग्रो-प्रोसेसिंग यूनिट की सहायता के लिए स्वीकृति की मांग की। भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्य के किसानों को उनकी आय बढ़ाकर मौजूदा कृषि संकट से बाहर निकालना समय की जरूरत है। उन्होंने स्टॉक लिफ्टिंग, गोदामों की क्षमता विस्तार और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के आवंटन को 5 किलोग्राम से बढ़ाकर 7 किलोग्राम करने की मांग की। मुख्यमंत्री ने आगे कहा, “हम सहकारी संघवाद के प्रति पंजाब के समर्पण और आपसी सहयोग के माध्यम से 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के लिए दृढ़ता का प्रदर्शन करते हैं।”