सिंधिया का इस्तीफा बना प्रियंका का सिरदर्द

punjabkesari.in Thursday, Jul 11, 2019 - 08:36 AM (IST)

 

नई दिल्ली: राहुल गांधी के बाद कांग्रेस में उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, इस संकट का हल निकल भी नहीं पाया है कि अब प्रियंका गांधी वाड्रा के महासचिव पद पर बने रहने को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी देने के बाद भी कांग्रेस का प्रदर्शन वहां 2014 से भी खराब रहा इसलिए सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब कांग्रेस की करारी हार की जिम्मेदारी लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया महासचिव का पद छोड़ सकते हैं, तो प्रियंका कैसे बच सकती हैं?

खास बात यह है कि जब राहुल गांधी ने यही संकेत देकर अध्यक्ष पद छोड़ा है कि अब संगठन पर उनके परिवार का कोई दबदबा नहीं रहेगा, तो क्या प्रियंका के लिए अब अपना पद बचाए रखना आसान होगा? सबसे बड़ी बात यह है कि खुद उन्होंने ही राहुल गांधी के फैसले को बहुत ही साहसी कदम बताया था, तब वह ऐसा करने से स्वयं को कैसे बचा सकती हैं? प्रियंका को जवाब देना मुश्किल होगा। सिंधिया के इस्तीफे के चलते प्रियंका पर दबाव बढऩा इसलिए भी लाजिमी है कि दोनों पार्टी दफ्तर में एक ही कमरे में एक साथ ही रणनीतियां बनाते रहे हैं। सिंधिया को संसद में राहुल की मदद करते देखा जाता था, तो प्रियंका के लिए भी फैसलों में उनकी राय की अहमियत होती थी।

यू.पी. में चुनाव अभियान की शुरूआत भी दोनों नेताओं ने एक साथ ही की थी इसलिए अगर सिंधिया ने पश्चिमी यू.पी. के प्रभारी के तौर पर अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अपना पद छोडऩे का फैसला किया है, तो पूर्वी यू.पी. की प्रभारी प्रियंका को किस दलील से बचाया जा सकता है? वैसे, प्रियंका महासचिव पद को टाटा कहेंगी कि नहीं, यह उन पर निर्भर है लेकिन वह अब कांग्रेस सर्कल से बाहर कहीं भी जाएंगी, तो उनसे इस सवाल पर जवाब मांगा जाना तो तय ही लग रहा है। एक बात यह भी है कि हो सकता है कि सिंधिया ने इस्तीफा देने से पहले इस बात पर विचार नहीं किया कि उनके बाद प्रियंका की ही उलझन बढ़ने वाली है। क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा सोचा होता, तो शायद इस पर गौर फरमाना भी नहीं भूलते।


दोनों को मिली थी एक जैसी जिम्मेदारी दोनों को एक तरह की जिम्मेदारी मिली थी। लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक साथ उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्हें उम्मीद थी कि दोनों युवा चेहरे वहां पार्टी के संगठन को जगाएंगे और उनके कारण कार्यकत्र्ताओं में नया जोश पैदा होगा।


38 सीटों का जिम्मा था सिंधिया के पास
सिंधिया के पास 38 सीटों की जिम्मेदारी थी लेकिन सिंधिया की देखरेख में कांग्रेस सिर्फ सहारनपुर में विवादित नेता इमरान मसूद की लोकसभा सीट में ही जमानत बचा सकी, बाकी सभी 37 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई इसलिए चुनाव नतीजे आने के लगभग डेढ़ महीने बाद ही सही, सिंधिया ने पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए महासचिव पद छोड़ दिया है। ऐसे में प्रियंका पर भी इस्तीफे का नैतिक दबाव बढऩा स्वाभाविक है।

42 सीटों का जिम्मा था प्रियंका के पास था
प्रियंका गांधी वाड्रा के कंधों पर पूर्वी उत्तर प्रदेश और सिंधिया पर पश्चिमी यू.पी. की जिम्मेदारी थी। इस तरह से प्रियंका के पास यू.पी. की 80 में से 42 सीटों की जिम्मेदारी थी। चुनाव के दौरान उन्होंने उम्मीदवारों को उतारने की एक रणनीति (वोट कटवा) का भी जिक्र किया था, जिसके चलते उनकी बड़ी फजीहत भी हुई थी। कांग्रेस को सिर्फ रायबरेली में जीत मिली और पार्टी किसी तरह से महज अमेठी और कानपुर में श्रीप्रकाश जायसवाल वाली सीट पर अपनी जमानत बचा पाई। अमेठी को वह एक तरह से 2004 से ही संभाल रही थीं।


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Seema Sharma

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