प्रियंका के आने से त्रिकोणीय संघर्ष में BJP देख रही संभावनाएं

Friday, Feb 22, 2019 - 10:24 AM (IST)

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): राजनीति में प्रियंका गांधी के औपचारिक प्रवेश से यूपी के मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटी कांग्रेस का खुद कितना भला होगा यह भविष्य के गर्त में है पर भाजपा को कम से कम इसमें एक आस जरूर दिख रही है। सपा-बसपा और आरएलडी के गठबंधन के बाद मेहनत से खड़ा किए गए अपने गैर जाटव दलित, गैर यादव पिछड़ा व अगड़ा समीकरण को ध्वस्त होते देख भाजपा के माथे पर आई चिंता की लकीरों को प्रियंका गांधी की यूपी में बढ़ती सक्रियता ने कुछ हल्का किया है। भगवा खेमे का मानना है कि देश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति आखिरकार उसी के लिए मुफीद साबित होगी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उत्तर प्रदेश को लेकर परेशान है तो उत्तरप्रदेश में उसके कार्यकर्ता और समर्थक इस उम्मीद में है कि पुलवामा अटैक का बड़ा बदला भारत जरूर लेगा और एक बार फिर 2014 की तरह राष्ट्रवाद की लहर उसके काम आएगी। 


 

बदले हालात में भाजपा ने एक बार फिर अपने दरकिनार कर दिए गए पिछड़ों के पोस्टर ब्वाय केशव प्रसाद मौर्य को तरजीह देना शुरू कर दिया है। केशव मौर्य के कार्यक्रम देश व प्रदेश में बड़े पैमाने पर लगने लगे हैं। हालांकि पिछले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में पार्टी से पिछड़ों को जोडऩे वाले मौर्य प्रदेश में सरकार बनने के बाद उपमुख्यमंत्री तो बनाए गए थे पर ज्यादातर हाशिए पर ही नजर आते थे। पिछले दिनों केशव मौर्या को कर्नाटक और हरियाणा के दौरे पर एक कद्दावर पिछड़े नेता के तौर पर भेजा गया है। भाजपा नेतृत्व महसूस कर रहा है कि जिस तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कट्टर हिंदुत्व के पोस्टर बॉय की तरह देश के अलग अलग हिस्सों में भेजा गया है। उसी तरह केशव का चेहरा आगे रखकर ओबीसी वोटों पर पकड़ बनाई और बचाई जा सकती। दरअसल उत्तर प्रदेश में भाजपा को ओबीसी वोटों की सख्त जरूरत है।

 



फिलहाल भाजपा नेताओं का मानना है कि सूबे में कांग्रेस के मजबूत होने और शिवपाल यादव व महान दल जैसे छोटे दलों के उसके साथ आने से सपा-बसपा गठबंधन को ही नुकसान होगा। ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस का गठबंधन वोटकटवा बन भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगा। वास्तव में कांग्रेस के प्रति मुस्लिम समुदाय के बढ़ रहे रुझान को देखते हुए भाजपा का मानना है कि इससे सपा-बसपा गठबंधन कमजोर होगा और अब तक जातीय गणित में पीछे चल रही भाजपा मुकाबले को त्रिकोणीय बनने की स्थिति का फायदा उठाकर बेतहर प्रदर्शन करेगी। 


करीब 30 सालों से उत्तर प्रदेश की राजनीति पूरी तरह से जातियों के खेमे में बंटी हुई है। तभी से प्रदेश में कांग्रेस की हालत पस्त है, लेकिन जातियों के पुराने खेमे टूटते भी हैं और नए खेमे बनते भी हैं। अस्सी-नब्बे के दशक की तीन घटनाओं के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस हाशिये पर चली गई और तब से बैकफुट पर ही है। भाजपा नेताओं का मानता है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बहुत कुछ कर पाने की स्थिति में तो नहीं है पर थोड़ा मजबूत दिखकर सपा-बसपा के यादव मुस्लिम वोटों में सेंधमारी जरुर कर देगी। भाजपा की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती वर्तमान सांसदों के खिलाफ क्षेत्र में पनपी नाराजगी से पार पाना है। माना जा रहा है कि पार्टी इसे दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर सांसदों के टिकट काटेगी।



लखनऊ में अमित शाह कि योजना के मुताबिक लगातार बैठकों का दौर जारी है। यह काम मोदी और शाह के करीबी जेपी नड्डा, खास तौर पर गुजरात से बुलाए गए गोरधन झड़ापिया और सुनील बंसल कर रहे हैं। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक भाजपा के मौजूदा 68 लोकसभा सदस्यों में करीब 40 के टिकट काटने की तैयरी है। टिकट कटने से कोई असंतोष न हो और उसका असर न पड़े इसके लिए यह सब आखिरी मौके पर किया जाएगा। भाजपा नेतृत्व ने उन सांसदों की सूची तैयार कर ली है, जिन्हें मैदान में नहीं उतारा जाएगा। इस सारी स्थियों का आकलन साफ इशारा कर रहा है कि भाजपा को अगर 2019 में 2014 जैसी सफलता दोहरानी है तो उसे अपने एजेंडे की हवा तेज करनी पड़ेगी। पुलवामा हमले के बाद उठे राष्ट्रवाद के ज्वार को भुनाने में सारे दल लग गए हैं। राहुल, प्रियंका और अखिलेश न सिर्फ शहीदों के परिजनों से मिल रहे हैं, बल्कि मोदी की असफलताओं पर भी तीखे प्रहार कर रहे हैं। पहले राम मंदिर आंदोलन को तेज करने में असफल रही भाजपा अगर इस ज्वार को भी अपने पक्ष में नहीं कर पाई तो उसके लिए यूपी की लड़ाई और मुश्किल होने वाली है।

Anil dev

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