मोदी के पॉवर गेम में उलझा चीन !

Monday, Sep 18, 2017 - 01:35 PM (IST)

बीजिंगः भारत की कूटनीति के सामने चीन की सैन्य और आर्थिक शक्ति को लेकर सवाल उठने लगे हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति ने चीन की नींद हराम कर दी है। मोदी की कूटनीतिक ताकत को पहचानते हुए ही चीनी सेना के मेजर जनरल क्याव लिंयाग ने ग्लोबल टाइम्स में लिखा कि हर विवाद को सुलझाने के लिए सैन्य शक्ति की ही जरूरत नहीं पड़ती है, बातचीत से भी हल निकाला जा सकता है। भारत से युद्ध की बात करने वाले रणनीतिकार चीन की रणनीतिक स्थिति भूल जाते हैं। उनके उसी लेख का एक महत्वपूर्ण अंश चीन की रणनीति में कूटनीति की जरूरत को समझने के लिए काफी है।

यह कहना भी गलत नहीं इस समय विश्व की निगाहें  भारत और चीन पर टिकी हुई हैं, क्योंकि इन दोनों देशों में जो देश एशिया में अपने प्रभुत्व को स्थापित कर सकेगा उसी देश की 21 वीं सदी में तूती बोलेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से एशिया ही नहीं विश्व के सभी देशों के हितों को भारत के हित के साथ जोड़कर आगे बढ़ने की नीति अपनाई  उसकी ताकत का आभास चीन को डोकलाम विवाद तक नहीं था। इस विवाद के दौरान भारत की कूटनीति की ताकत को देखकर चीन भौंचक्का रह गया। जब सभी  प्रचार वार के बावजूद दुनिया के किसी देश ने भारत पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया, बल्कि अमरीका और जापान खुलकर समर्थन में खड़े हो गए। इस झटके से चीन ने सबक सीखने का प्रयास शुरू कर दिया है और अपनी रणनीति में कूटनीति को प्रमुखता देने का काम कर रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में देशों के बीच एक तरह का पावर गेम चलता है, इस पावर गेम में कौन सा देश किस देश के हितों को सबसे अधिक पूरा कर सकता है, उसी के आधार पर रिश्तों की प्रगाढ़ता निर्भर करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस पावर गेम में चीन को उलझा कर रख दिया। 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने से ही उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी थी। उनकी हर विदेशी यात्रा और विश्व नेताओं से मुलाकात का मकसद था दुनिया को यह समझाना  कि भारत के पास दुनिया को देने के लिए सब कुछ है। उन्होंने सभी देशों को अपनी ओर आकर्षित किया। जापान और अमरीका से रिश्तों को प्रगाढ़ किया। एक्ट ईस्ट नीति के तहत आशियान देशों से व्यापारिक ,सामरिक और सांस्कृतिक समझौते किए इसी कड़ी में देश के इतिहास में पहली बार होगा कि 2018 के गणतंत्र दिवस पर आशियान के दसों शासनाध्यक्षों को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है।

विश्व के देशों ने भारत के साथ रिश्तों को मजबूत करने में अपना भी फायदा देखा, इस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने मजबूत रिश्तों की एक श्रृखंला खड़ी कर दी।चीन ने रणनीति बदल दी है लेकिन उसने उद्धेश्य नहीं बदला है। वह एशिया में और विश्व में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए लालयित है। अपनी बदली हुई रणनीति के तहत ही वह हर समस्या को भारत के साथ बातचीत करके सुलझाने का प्रस्ताव देने के साथ-साथ यह भी कह रहा है कि उसका भारत, जापान और अमरीका के प्रगाढ़ होते रिश्तों से तब तक कोई दिक्कत नहीं है जब तक चीन के हितों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। चीन, भारत से रिश्तों को रणनीतिक तौर पर बेहतर करके भारत-जापान-अमरीका के त्रिदेव की शक्ति में सेंध लगाना चाहता है, ताकि उसके हितों के खिलाफ अमरीका और जापान एक साथ न आ सके।

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