भारत की नीति से पस्त पाक को आशंका है, कहीं छिन ना जाए POK

Tuesday, Sep 17, 2019 - 02:22 PM (IST)

नेशनल डेस्क (रवि प्रताप सिंह) : धरती का स्वर्ग कहे जाने वाली ऋषि कश्यप की भूमि कश्मीर भारत-पाक के बीच विवाद का प्रमुख कारण है। 5 अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया था। इसके बाद से ही पाकिस्तान दुनिया के हर बड़े मंच पर जम्मू-कश्मीर का राग अलाप रहा है। लेकिन चीन को छोड़ कर किसी भी मुल्क ने कश्मीर पर इस बार पाक का साथ नहीं दिया। यहां तक की मुस्लिम मुल्कों ने भी इमरान सरकार को नसीहत दे डाली की वह भारत के प्रति बेवजह की बयानबाजी से बचे और विवाद को मिल-बैठकर सुलझाए।

चीन की अपनी महत्वाकांक्षा है। वह एशिया का सिरमौर बनना चाहता है। इस राह में चीन भारत को रोड़ा मानता है इसलिए वह पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। वह पाकिस्तान को भारत के खिलाफ हथियार समेत आर्थिक सहायता भी दे रहा है। इस वित्तीय मदद का प्रयोग पाकिस्तान आतंकियों को ट्रेनिंग देने में करता है। घास की रोटी खा कर भी भारत को हजार घाव देने की नीति पर चलने वाले पाक की हालात आज घास की रोटी खाने की हो चुकी है। खस्ता हाल अर्थ व्यवस्था होने के बाद पाक अब भी आतंकियों को पालने में लगा हुआ है।

कश्मीर को हथियाने के लिए भारत पर चार युद्ध थोप चुके पाक का आज कोई अंतरराष्ट्रीय वजूद नहीं बचा है। इसके पीछे गत सालों में भारत की सक्रिय विदेश नीति का हाथ है। पाकिस्तान मौजूदा समय में दुनिया में अलग-थलग हो चुका है। पिछले 70 सालों का इतिहास देखे तो हमनें युद्ध के मैदान में पाक को धूल चटाई है लेकिन मेज पर हम पाक से हार गए हैं। 1948 में जब कबाइलियों के वेश में पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू-कश्मीर में तबाई मचाई तो जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने The Instrument of Accession पर साइन कर अपने राज्य का विलय भारत में कर लिया था। बता दूं कि उन्होंने अनुच्छेद-370 की कोई शर्त नहीं रखी थी। इसे बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मित्र शेख अब्दुल्ला के कहने पर भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के आदेश से जोड़ा गया था। इसी विशेषाधिकार के चलते पाकिस्तान कश्मीरियों को बरगलाने में सफल रहा। धारा-370 के चलते ही कश्मीरी खुद को बाकी भारत से अलग समझने लगें। वहीं, शेख अब्दुल्ला के कहने पर नेहरू ने कबाइलियों को पीछे धकेलती भारतीय फौज को रोक दिया। इसका यह परिणाम हुआ कि जम्मू-कश्मीर के 35 फीसद हिस्से (POK) पर आज पाकिस्तान कब्जा है।

22 फरवरी, 1994 को भारतीय संसद ने धव्निमत से पीओके लेने का प्रस्ताव पास किया गया था। लेकिन इसके बाद किसी भी भारतीय सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। पर मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटा कर अलगाववाद की भावना पर गहरी चोट की है। साथ ही प्रदेश को बांट कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने का निर्णय भी सराहनीय है। इससे विकास कार्यों में तेजी आएगी।

वर्ष 1963 में लद्दाख के एक हिस्से को पाकिस्तान ने चीन को दे दिया था जो आज भी उसके कब्जे में है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में खड़े होकर चीन को भी यह स्पष्ट कर दिया था कि जो लद्दाख का हिस्सा वह कब्जाए बैठा है वह भी भारत का है। चीन ने इस पर बड़ी ही सधी प्रतिक्रिया दी थी। भारत की बदली नीति का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि आज खुद पाकिस्तान भी जम्मू-कश्मीर को लेने के स्थान पर भारत से गुलाम कश्मीर कैसे बचाए, इस पर विचार कर रहा है। इमरान खान ने पाक में एक सभा के दौरान आशंका जताई कि भारत बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद आजाद कश्मीर (गुलाम कश्मीर) में कुछ बड़ा कर सकता है। भारत की नीति का ही परिणाम है कि पाक आज पस्त और कंफ्यूज नजर आता है।

Ravi Pratap Singh

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