लाखों लोगों में किसी एक को होती है ऐसी बीमारी, इलाज के लिए तरस रहा है मासूम

Thursday, Oct 25, 2018 - 05:12 PM (IST)

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): एक लाख में किसी-किसी को होने वाली गोचर बीमारी से पीड़ित डेढ़ वर्षीय मासूम इलाज के लिए तरस रहा है। बच्चे का पिता अस्पतालों की खाक छान रहा है। पिता के मुताबिक वह पीएमओ से लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय तक से गुहार लगा चुका है, लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। प्रति माह महज आठ हजार रुपए कमाने वाले पिता के सामने अपने जिगर के टुकड़े की जान बचाने की चुनौती है। क्योंकि, इलाज में लाखों का खर्च है। इस जद्दोजहद में वह नौकरी तक नहीं कर पा रहा है और लोकनायक अस्पताल (एलएनजेपी) में भर्ती बच्चे की सेवा में दिनरात लगा है। 

एम्स ने भी बैरंग लौटाया 
 ओखला निवासी मकसूद आलम के बेटे एहसान को यह बीमारी जन्म से ही है। वह बच्चे को लेकर एम्स गए तो वहां भी निराशा हाथ लगी। मकसूद के मुताबिक एम्स ने बीमारी के लिए एक साल का खर्च 38,74,080 रुपए बताते हुए उपचार देने से मना कर दिया। साथ ही बच्चे को लोकनायक (एलएनजेपी) अस्पताल ले जाने की सलाह दे दी। बच्चा पिछले कुछ दिनों से लोकनायक अस्पताल में भर्ती है, लेकिन वहां भी उसे समुचित उपचार नहीं मिल पा रहा है। 

अधिकारियों से भी लगाई थी उपचार की मदद
मकसूद आलम ने बताया कि उन्होंने एहसान को जब एम्स में भर्ती कराया था तब स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों से भी उपचार में मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन आश्वासन देने के बाद भी बच्चे को मदद नहीं मिली। अधिकारियों ने उन्हें ग्रांट कमिशन जाने की सलाह दी। वहां जाने पर उन्हें स्पष्ट तौर पर कह दिया गया कि बीमारी के लिए सरकारी स्तर पर किसी तरह का खर्च तय ही नहीं किया गया है। वहां पर पीएमओ से संपर्क करने के लिए कहा गया। मकसूद पीएमओ पहुंचे तो अधिकारियों ने उन्हें प्रार्थना पत्र लिखकर देने के लिए कहा। फिर कहा गया कि वह जहां रहते हैं, वहां के सांसद से पत्र लिखवाकर दें। मकसूद आलम अब सांसद की चिट्ठी के लिए चक्कर काट रहे हैं। 

क्या है गोचर
एलएनजेपी के डॉ. विकास धिकव के अनुसार, इस रोग में पीड़ित के शरीर में खून की कमी होने लगती है। प्लेटलेट्स कम होने के साथ लीवर और स्प्लीन का आकार भी बड़ा होने लगता है। मरीज की हड्डियां और फेफड़े कमजोर होने लगते हैं। बीमारी दिमाग को भी प्रभावित करती है। मरीज को दौरे पडऩे लगते हैं। बीमारी को नियंत्रित करने के लिए एन्जाइम रिप्लेस करना ही विकल्प है, जिसका खर्च आम लोगोंं के बस से बाहर की बात है। जब शरीर वसा (फैट) का निस्तारण नहीं कर पाता तो यह यह बीमारी होती है। 

Anil dev

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