डिजीटल पेमैंट: हैकिंग और सेंधमारी के खतरे

Thursday, Dec 22, 2016 - 08:57 AM (IST)

नई दिल्ली: दुनिया जैसे-जैसे अपने कामकाज के लिए कम्प्यूटर-मोबाइल के जरिए साइबर स्पेस पर निर्भर हो रही है, वैसे-वैसे उसमें हैकिंग कर सेंधमारी का खतरा भी बढ़ रहा है। असल में मामला ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ वाला बन गया है। यानी एक तरह कम्प्यूटर-इंटरनैट से संबंधित तमाम तरह की ट्रांजैक्शन्ज, ई-मेल, वैबसाइटों और इंटरनैट से संचालित होने वाली सेवाएं हैं तो दूसरी तरफ उन सेवाओं की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले बेहद चतुर हैकर हैं, जो सुरक्षा के हर प्रबंध को धत्ता बताने के लिए तैयार बैठे हैं। हाल ही में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और खुद कांग्रेस पार्टी का ट्विटर हैंडल (अकाऊंट) हैक कर लिया गया। इसके बाद कई जाने-माने पत्रकारों के अकाऊंट भी हैक हुए। इन घटनाओं के पीछे मौजूद हैकर छिपा नहीं रहा। 

 हैकर समूह ‘लीजन’ ने ली जिम्मेदारी
वहीं 5 देशों में मौजूद हैकर समूह ‘लीजन’ ने इसकी जिम्मेदारी ली और दावा किया कि भारतीय संसद और भारतीय बैंकिंग सिस्टम उसके निशाने पर है। हैकिंग की इन घटनाओं को कम्प्यूटर वायरस जैसी समस्या मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और न ही उन प्रबंधों के भरोसे बैठा जा सकता है, जो फिलहाल देश के साइबर सुरक्षा के लिए तैयार है। यह सिस्टम अगर इतना ही मजबूत होता तो कुछ ही समय पहले एक बड़े सरकारी बैंक के करीब 6 लाख डैबिट कार्ड की हैकिंग न होती और नेताओं-पत्रकारों के ट्विटर हैंडल भी हैक न हुए होते। आंकड़ा है कि देश में इस वर्ष अक्तूबर तक लगभग 15,000 सरकारी वैबसाइटों को हैक किया जा चुका है।

धोखाधड़ी में फंसी राशि 21.84 अरब डॉलर पर
इधर, जब सरकार कोशिश कर रही है कि देश में डिजीटल लेन-देन का माहौल बने, तो सूचना यह भी आ चुकी है कि विगत कुछ ही महीनों में साइबर अपराधी ए.टी.एम्स-डैबिट कार्ड का डाटा हैक करके 19 बैंकों के ग्राहकों को करोड़ों का चूना लगा चुके हैं। हालांकि, वैश्विक पैमानों पर यह घटना छोटी कही जाएगी क्योंकि अमरीका से प्रकाशित ‘द निल्सन रिपोर्ट’ के अक्तूूबर 2016 के अंक के मुताबिक ए.टी.एम्स-डैबिट, क्रैडिट एवं प्री-पेड भुगतान कार्डों से जुड़ी धोखाधड़ी की वारदात में फंसी राशि 21.84 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच चुकी है लेकिन यह देखते हुए कि इस समय सरकार का पूरा फोकस देश में डिजीटल लेन-देन की व्यवस्था बनाने पर है, छोटी घटनाएं भी उपभोक्ता का इस सिस्टम से भरोसा डिगा सकती हैं।

 एंड्रॉयड मोबाइल हैकिंग सबसे आसान 
खास तौर से यह तथ्य बेचैन करने वाला है कि अब लोगों को मोबाइल के जरिए भुगतान के लिए प्रेरित किया जा रहा है, पर एंड्रॉयड आधारित मोबाइल हैकिंग के सबसे आसान शिकार हो सकते हैं। सिक्योरिटी कंपनी ‘चैक प्वाइंट सॉफ्टवेयर टैक्नोलॉजी’ के शोधकत्र्ताओं ने दुनिया भर के 90 करोड़ एंड्रॉयड आधारित स्मार्ट फोनधारकों को चेताया है कि हो सकता है कि वे किसी हैकिंग के शिकार हो जाएं, क्योंकि हैकर किसी भी फोन को अपने कब्जे में ले सकते हैं और फोन के सारे डाटा को निकाल सकते हैं। ऐसी स्थिति में उनके निजी आंकड़ों, फोटो के अलावा वित्तीय, खास तौर से बैंकिंग कामकाज प्रभावित हो सकता है। यहां तक कि उनके बैंक खातों में जमा पैसा भी अनजान खातों में ट्रांसफर हो सकता है।

ए.टी.एम्स पर साइबर अटैक  में भारत भी शामिल
गिरावट संभवत: इसीलिए आई, क्योंकि इन कार्डों की सुरक्षा लोगों की ङ्क्षचता बनने लगी। इस बात की तस्दीक अमरीकी सिक्योरिटी फर्म ‘फायर आई’ की साइबर अटैक से संबंधित रिपोर्ट से भी होती है जिसके निष्कर्ष अपने देश के लिए महत्वपूर्ण हैं। फायर आई ने ‘सिक्योरिटी लैंडस्केप एशिया पैसिफिक एडीशन-2017’ कि रिपोर्ट में कहा, ‘‘एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के देशों में हमने ए.टी.एम्स पर साइबर अटैक पर ज्यादा फोकस देखा है, जिसमें भारत भी शामिल है। भारत में साइबर सुरक्षा के जानकारों का मानना है कि भारत का आई.टी. एक्ट ऑनलाइन फ्रॉड से निपटने के लिए काफी नहीं है। उनके मुताबिक आई.टी. एक्ट की धारा 66,66,66(सी.) और 66(डी.) फिशिंंग, फर्जी ई-मेल ङ्क्षलक और फ्रॉड से निपटने के लिए हैं लेकिन इसके तहत पुलिस दोषी को हिरासत में नहीं ले सकती। डाटा प्रोटैक्शन के लिए भी कोई ठोस कानून नहीं है, इसलिए ग्राहकों को इस बात का डर होना लाजमी है कि उनका डाटा कोई चुरा न ले। इसके अलावा कोई प्राइवेसी कानून भी नहीं है।
 

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