जस्टिस यशवंत वर्मा मामलें में संसदीय समिति की बैठक, सदस्यों ने कहा - ''मामला गंभीर तो FIR क्यों नहीं''
punjabkesari.in Tuesday, Jun 24, 2025 - 05:13 PM (IST)

National Desk : बुधवार को राज्यसभा की कार्मिक, विधि और न्याय पर बनी स्थायी संसदीय समिति की अहम बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में विधि मंत्रालय के सचिव भी मौजूद रहे और सदस्यों के सवालों का जवाब दिया। चर्चा का केंद्र बिंदु न्यायपालिका से जुड़ी आचार संहिता, जजों की कार्यप्रणाली, और सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों जैसे अहम मुद्दे रहे।
जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला उठा
बैठक के दौरान कई सदस्यों ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से जुड़ी परिस्थितियों पर सवाल उठाए। कुछ प्रमुख प्रश्न इस प्रकार थे:
अगर मामला गंभीर था, तो एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई?
जब न्यायाधीश को सस्पेंड करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, तो मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने उनके मामलों को क्यों वापस लिया?
न्यायमूर्ति वर्मा को अब भी कार और स्टाफ जैसी सुविधाएं क्यों मिल रही हैं, जबकि वह सक्रिय सेवा में नहीं हैं?
जजों की आचार संहिता पर चिंता
समिति में यह बात जोर से उठी कि न्यायाधीशों के लिए तय की गई आचार संहिता केवल औपचारिक दस्तावेज बनकर रह गई है, जिसका पालन व्यावहारिक रूप से नहीं हो रहा। सदस्यों ने यह भी सवाल उठाया कि जब दूसरे सरकारी अधिकारी अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करते हैं, तो न्यायाधीश ऐसा क्यों नहीं करते? इससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।
राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी पर सवाल
कुछ सदस्यों ने राजनीतिक संगठनों से जुड़ी गतिविधियों में जजों की अप्रत्यक्ष भागीदारी को लेकर आपत्ति जताई। उन्होंने हाल के कुछ उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
यह भी पढ़े : ईरान से लौटे भारतीयों ने की पीएम मोदी की सराहना, बोले- वापिस लाने के लिए धन्यवाद
राजनीतिक लाभ के लिए नियुक्तियों का आरोप
बैठक में यह आरोप भी लगाया गया कि कुछ न्यायाधीश राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाकर बाद में लाभकारी पदों (Plum Postings) पर नियुक्त हो जाते हैं। यह न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता पर गहरा प्रश्न खड़ा करता है।
परिवारजनों की वकालत पर चिंता
समिति में कई सदस्यों ने जजों के रिश्तेदारों द्वारा उन्हीं न्यायालय परिसरों में वकालत करने को लेकर चिंता जताई। उनका कहना था कि सिर्फ यह कहना कि कोई वकील अपने रिश्तेदार जज की अदालत में पेश नहीं होता, पर्याप्त नहीं है। पूरे न्यायिक परिसर में रिश्तेदारी के प्रभाव और उपस्थिति की समीक्षा होनी चाहिए।