नजरिया: कहीं CAA का साइड इफेक्ट तो नहीं ननकाना साहिब की घटना ?

Saturday, Jan 04, 2020 - 04:20 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ):  क्या ननकाना साहब की घटना भारत में हाल ही में लागू हुए सीएए और प्रस्तावित एनआरसी का प्रतिकार है ? क्या  पाकिस्तान इस बहाने अपने यहां बचे हुए अल्पसंख़्यकोओं जिनमे अब ले-दे कर सिख ही प्रभावी  हैं, को खदेड़ने  की रणनीति के तहत काम कर रहा है ? जो बात मोदी-शाह और उनका दल कह रहा है कि  भारत में सीएए के विरोध को पाकिस्तान हवा दे रहा है, वह बात सही है ? क्या  सीएए  की आड़ में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का धार्मिक उत्पीड़न फिर से तेज़ हो गया है ? क्या सीएए ये कुछ सवाल अब हवा में तैरने शुरू हो गए हैं।  आधिकारिक तौर पर कुछ कहना अभी शायद जल्दबाजी होगी लेकिन फिर भी ननकाना साहब की घटना को सीएए और एनआरसी के साइड इफेक्ट के साथ जोड़कर देखा जाना  जरूरी हो गया है।  



खास तौर से तब जब पाकिस्तान की सरकार और आवाम ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर खुलने के समय सिखों के स्वागत में अपने साफे तक  बिछाए हों। तो अब वही मुसलमान उन्हीं गुरु साहब की जन्मस्थली को क्यों मुस्लिम नगरी बनाने का ऐलान कर रहे हैं- यह सोच में तो डालता ही है।  आखिर दो महीने के बीच ऐसा क्या बदला जिसने मुसलमानों की सिखों के प्रति सोच को इतना बदल दिया कि  गुरु नानक देव जी के जन्मस्थान पर हमला हो गया।  क्यों गुरु की जन्मस्थली  में गुरुघर को तोड़कर  मस्जिद बनाने कीबातें हो रही हैं ? ज्यादा दिन तो हुए नहीं अभी नौ नवंबर को ही तो करतारपुर साहब का कॉरिडोर खुला था।  सिखों का अपने  गुरुधाम का दर्शन करने का दशकों का स्वप्न पूरा हुआ था।  नरेंद्र मोदी करतारपुर साहब में नतमस्तक हुए थे। दोनों तरफ की सरकारों ने इस कदम  पर खूब यश लूटा था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तो सारा समय वहां डटे रहे और  मुस्लिम -सिख समुदायों  को  दो जिस्म एक जान बताते नहीं थक रहे थे।  तो फिर इन दो माह में आखिर ऐसा  क्या बदला  जिसने ननकाना साहब में इतनी जघन्य हरकत की इबारत लिखी।  बारीकी से देखें तो इस बीच दोनों देशों के बीच धर्म आधारित एक ही बड़ी घटना हुई है और वह है भारत में सीएए का संशोधित कानून बनना।



 इसके तहत तीन राष्ट्रों  के छह अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक तौर पर सताये  लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इन राष्ट्रों में प्रमुख है पाकिस्तान औरपाकिस्तान में इस समय सिख ही सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है जिसका वर्णन सीएए में सूचीबद्ध है।पाकिस्तान में कितने सिख हैं इसे लेकर अलग अलग  आंकड़े हैं। पाकिस्तान की ही सरकार के मुताबिक वहां 2012 में छह हज़ार सिख थे।  अमरीका के मुताबिक  पाकिस्तान में इस समय बीस हज़ार  से कम सिख हैं।  कुलमिलाकर यह संख्या पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं और बौद्ध,पारसी, जैन के मुकाबले अधिक है।  तो क्या भारत में सीएए आने के बाद  पाकिस्तान में सबसे बड़े अल्पसंख्यक तबके सिखों को अब  जबर से देश से बाहर धकियाने का काम शुरू हो गया है ? उन सिखों को जिनके साम्राज्य की राजधानी ही कभी लाहौर थी ? सोचना तो बनता है।  क्या पाकिस्तान मोदी सरकार की अल्पसंख्यक हितैषी नीति को  ढाल बनाकर अपने यहां से अल्पसंख्यकों का सफाया करने में जुट गया है ? ननकाना साहब की घटना पर अब पाकिस्तानी सरकार  के रुख पर तो नज़र रखनी ही होगी यह भी देखना होगा कि कहीं अफगानिस्तान के सिखों के साथ भी ऐसी कोई हरकत तो नहीं होती।  उधर बांग्लादेश में भी प्रथम गुरु श्री नानकदेव जी से सम्बंधित सिल्हट गुरुघर है जहां गुरु तेग बहादुर जी भी ने भी दो बार  प्रवास किया था। वहां भी कुछ सिख परिवार हैं उनकी सुरक्षा भी तय करनी होगी।  

(नोट यह लेखक के निजी विचार हैं ) 

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