यूरोपीय संघ की एकता खतरे में क्यों है ?

punjabkesari.in Saturday, Apr 23, 2016 - 06:07 PM (IST)

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ब्रिटेन से यूरोपीय संघ (ईयू) में बने रहने की अपील की है। वे इस पक्ष में हैं कि ब्रिटेन संघ की सदस्य है इसलिए से दुनिया में उसकी प्रतिष्ठा बढी है और यह मजबूत बना है। यदि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर निकलेगा तो उसके पश्चिम के कमजोर होने की आशंका उत्पन्न हो जाएगी। अमरीका का मानना है कि ब्रिटेन के संघ में बने रहने से आतंकवाद, आव्रजन और आर्थिक संकट जैसी चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटा जा सकेगा। ब्रिटेन यूरोपीय संघ में रहेगा या नहीं यह जनमत संग्रह द्वारा अंतिम फैसला वहां के मतदाताओं को ही करना होगा। यह संग्रह 23 जून को होगा। ओपिनियन पोल के दौरान यह संकेत मिले हैं कि देश के ज्यादातर नागरिक ब्रिटेन के यूरोपीय संघ का सदस्य बने रहने के पक्ष में हैं। कई लोग अभी फैसला नहीं कर पाए हैं।  

यूरोपीय संघ पर टूटने का खतरा क्यों मंडराने लगा है। इसका मुख्य कारण शरणार्थी संकट माना जाता है? यदि लगातार गंभीर हो रही इस समस्या का समय रहते, आपसी समझदारी से समाधान नहीं ​निकाला गया तो अन्य देश भी इसकी सदस्यता छोड़  सकते हैं। शरणार्थियों के प्रवेश ने मंदी से जूझ रहे यूरोपीय देशों, ग्रीस, तुर्की, जर्मनी, साइप्रस, इटली और स्पेन पर न सिर्फ आर्थिक संकट पैदा कर दिया है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सामुदायिकता से संबंधित समस्याएं सिर उठाने लगी हैं। लगातार आ रहे शरणार्थियों के बीच आतंकवादियों के छिपकर प्रवेश करने का खतरा बढ़ गया है।

शरणार्थियों को आश्रय देने वाले ही प्रभावित नहीं हुए हैं, बल्कि मार्ग में पड़ने वाले देश जैसे तुर्की और लेबनान पर भी दबाव है। इस संकट ने यूरोपीय संघ (ईयू) की एकता को खतरे में डाल दिया है। कारण, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच शरणार्थियों के पुनर्वास जैसे मुद्दों पर मतभेद की स्थिति बन गई है। जर्मनी में दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के नॉर्थ राइने वेस्टफालिया के स्टेट चेयरमैन ने यहां तक कह दिया है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो हम अपने देश की सीमाओं की रक्षा की करेंगे। सवाल है संघ के सदस्य देशों में यह नाराजगी क्यों पैदा हुई? इसकी वजह यह रही कि जर्मनी सहित अनेक यूरोपीय देशों में शरणार्थियों के प्रति नरम रुख अपनाया लिया और उनकी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी कि उसे संभालना मुश्किल हो गया। इससे इन देशों में कई समस्याएं उत्पन्न हो गईंं। 

बार-बार यह आशंका जताई जाने लगी कि यदि यूरोप में शरणार्थियों को शरण देने की प्रक्रिया, उनकी तादाद का बंटवारा और सामूहिक शरणार्थी शिविरों की स्थापना जैसे मुद्दों पर सभी सदस्य एकमत नहीं होते हैं तो यूरोपीय संघ समाप्त हो जएगा। कई साल पहले जब विभिन्न देशों के बीच कई संकट पैदा हो जाते थे तब उनके बीच बाड़ लगा दी जाती थी अथवा दीवारें खड़ी कर दी जाती। स्मरण रहे कभी जर्मनी के भी दो भाग हो गए थे। ईस्ट जर्मनी और वेस्ट जर्मनी। इनके बीच खड़ी की गई दीवार को कई सालों के बाद आपसी सहमति से ढहा दिया गया था और जर्मनी एकीकृत हो गया था। 

पिछले साल यूरोपीय संघ की बैठक में 160,000 शरणार्थियों को सदस्य देशों के बीच बांटे जाने के मुद्दे पर बात हुई थी। तब इस समस्या के जटिल होने की चेतावनी दी गई थी। उस समय भी संदेह जताया गया था कि शरणार्थी संकट पर कहीं यूरोपीय संघ विभाजित न हो जाए। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) ने पिछले साल कहा था कि अगले दो वर्षों में भूमध्य सागर से होते हुए 850,000 शरणार्थियों के यूरोप पहुंचने की उम्मीद है। शरणार्थियों की बाढ़ आने से स्थानीय निवासियों ने शिकायत की थी कि इनसे अपराध में बढ़ोतरी, आम उपयोग की वस्तुओं की कीमत में उछाल जैसी समस्याएं आ रही हैं। 

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बना रहेगा या नहीं इस पर होने वाले जनमत संग्रह के लिए आधिकारिक प्रचार अभियान भी शुरू हो गया है। इन दोनों पक्षों पर लोगों में जनमत संग्रह होगा। इसका प्रचार अभियान शुरू होने के साथ दोनों पक्षों के लिए बकायदा कुछ नियम भी बनाए गए है। इस बीच स्वीडन,ब्रिटेन,जर्मनी आदि देशों में शरणार्थियों पर हमले होने की खबरें भी आईं,फिर इन्हें रोकने के लिए सुरक्षा बल तैनात किए गए। स्थानीय स्तर पर लोगों में उनके प्रति घृणा और हिंसा की भावना देखी गई।


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