2015 में शुरु हुई थी नमामि गंगे परियोजना, साढ़े 4 साल में सिर्फ 35 फीसदी राशि खर्च
punjabkesari.in Monday, Dec 30, 2019 - 06:29 AM (IST)

नेशनल डेस्कः नमामि गंगे परियोजना में पिछले साढ़े 4 साल में मात्र 7000 करोड़ रुपए ही खर्च हुए जबकि साल 2015 में योजना शुरू होने के बाद पहले 2 वर्ष में कोई धन राशि खर्च नहीं हुई। जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग के सचिव ने संसद की स्थायी समिति को यह जानकारी दी। मंत्रिमंडल ने 13 मई, 2015 को एक व्यापक कार्यक्रम के तहत गंगा नदी और इसकी सहायक नदियों के संरक्षण के लिए नमामि गंगे परियोजना को मंजूरी दी थी। इस परियोजना को अगले 5 वर्ष में पूरा करने के लिए कुल 20,000 करोड़ रुपए आबंटित किए थे।
अनुदान की मांग 2019-20 पर विचार करने वाली जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक विभाग के सचिव ने 23 अक्तूबर, 2019 को मौखिक साक्ष्य के दौरान बताया कि मैं इस बात से सहमत हूं कि अब तक लगभग 7000 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। आरंभिक 2 वर्षों में हमने धन राशि जारी की लेकिन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एन.एम.सी.जी.) इसे खर्च नहीं कर पाया। ऐसा इसलिए है क्योंकि मूलत: गंगा और उसकी सहायक नदियों की पहली मुख्यधारा पर बसे कस्बों की सूची बनाने, उसकी स्थिति, मूल्यांकन एवं व्यवहार्यता अध्ययन, जल मल की मात्रा, जल मल शोधन की वर्तमान क्षमता, जल मल शोधन संयंत्र की स्थिति आदि का आकलन करने एवं योजना बनाने में काफी समय लगता है। रिपोर्ट में कहा कि अक्तूबर, 2019 तक योजना को मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद साढ़े 4 साल में खर्च की गई राशि कुल राशि का 35 प्रतिशत है।
सचिव ने समिति को बताया कि 2 वर्ष बाद कार्य की गति बढ़ी है और अगले 2 वर्ष में दिसम्बर, 2022 तक सभी जल मल आधारभूत परियोजनाएं पूरी होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के अनुसार नमामि गंगे के प्रमुख कार्यक्रम के तहत कुल 299 परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं व केवल 42 परियोजनाएं ही पूरी हुई हैं। इसके अलावा 3729 एम.एल.डी. की जल मल शोधन क्षमता की योजना के संबंध में केवल 575 एम.एल.डी. की जल मल शोधन संयंत्र (एस.टी.पी.) की क्षमता ही सृजित की गई।