राजस्थान ही नहीं बल्कि समूचे देश में घट रही ऊंटों की संख्या, नागालैंड-मेघालय जैसे राज्यों में एक भी ऊंट नहीं बचा

punjabkesari.in Sunday, Feb 27, 2022 - 01:13 PM (IST)

नेशनल डेस्क: राजस्थान सरकार ने 'ऊंट संरक्षण व विकास नीति' लागू करने की घोषणा की है। यह घोषणा ऐसे समय में की गई है जबकि राजस्थान ही नहीं बल्कि समूचे देश में ऊंटों की संख्या लगातार कम हो रही है और नागालैंड, मेघालय जैसे राज्यों में आधिकारिक रूप से अब एक भी ऊंट नहीं बचा है। ऊंट राजस्थान का राज्य पशु है और थार रेगिस्तान वाले राजस्थान को ऊंट का घर भी कहा जाता है। लेकिन इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में अब दो लाख से भी कम ऊंट बचे हैं जबकि पूरे देश की बात की जाए तो 2012 से 2019 के बीच ऊंटों की संख्या लगभग डेढ़ लाख घटकर 2.52 लाख रह गई। भले ही ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता हो लेकिन असम से लेकर केरल कर्नाटक तक और गुजरात से लेकर हरियाणा पंजाब तक देश के अनेक राज्यों में ऊंट पाए जाते हैं।

85 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं
भारत सरकार द्वारा दिसंबर महीने में संसद में दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में इनकी कुल संख्या 2012 की पशुधन गणना में 1.17 लाख घटकर चार लाख थी जो 2019 की गणना में 1.48 लाख और घटकर 2.52 लाख रह गई। साल 2019 की पशुगणना में अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, मेघालय व नागालैंड में ऊंट की संख्या आधिकारिक रूप से शून्य हो गई जबकि पांच साल पहले यानी 2012 में इन राज्यों में क्रमश: 45, 03, 07 व 92 ऊंट थे। देश के लगभग 85 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं। इसके बाद गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश का नंबर आता है। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार राजस्थान में 2012 में ऊंटों की संख्या 3,25,713 थी जो 2019 में 1,12,974 घटकर 2,12,739 रह गई। राज्य में ऊंट संरक्षण की मांग लंबे समय से उठ रही है।

'ऊंट संरक्षण व विकास नीति लागू' करने का प्रस्ताव
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले सप्ताह पेश सालाना बजट 2022-23 में राज्य में 'ऊंट संरक्षण व विकास नीति लागू' करने का प्रस्ताव किया। उन्होंने कहा कि राज्य पशु ऊंट के पालन, संरक्षण तथा समग्र विकास के लिए इस नीति के तहत अगले साल 10 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाएगा। पशुपालकों व गैर सरकारी संगठनों ने इसका स्वागत किया है लेकिन उनकी ऊंटों संबंधी कानून में बदलाव की मांग लंबित है। लोकहित पशुपालक संस्थान के निदेशक हनवंत सिंह राठौड़ ने कहा कि सरकार की बजटीय घोषणा अच्छी है लेकिन देखना होगा कि इसे जमीनी स्तर पर कितना व कैसे लागू किया जाता है। सम्बद्ध कानून में संशोधन को लेकर सरकार के रुख का भी इंतजार रहेगा। पिछले कई दशकों से राजस्थान के पाली में रहकर ऊंट संरक्षण के लिए काम कर रही जर्मन अध्येता डॉ. इल्से कोहलर रोल्फसन ने 'पीटीआई भाषा' से कहा कि ऊंटों की घटती संख्या के कई कारणों में राज्य सरकार का मौजूदा कानून सबसे बड़ा कारक है।

पूरा उंट बाजार ही तहस नहस हो गया
इससे पूरा उंट बाजार ही तहस नहस हो गया और लोगों उंट पालन से विमुख हो गए। उन्होंने कहा कि ऊंट संरक्षण व ऊंट पालकों को प्रोत्साहित करने के लिए इस कानून में संशोधन जरूरी है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान सरकार ने ऊंट को वर्ष 2014 में राज्य पशु घोषित किया गया जबकि 2015 में में ऊंटों के वध को रोकने तथा राज्‍य से बाहर निकासी/अस्थाई प्रव्रजन पर रोक के लिए 'राजस्‍थान ऊंट (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियम) अधिनियम लागू किया गया। पशुपालकों का कहना है कि इस कानून के आने से राज्य के ऊंट पालन घाटे का सौदा हो गया और पशुपालकों के मुंह मोड़ लेने के कारण इनकी संख्या घट रही है।

हालांकि राज्य सरकार ने विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में हर पांच साल होने वाली पशुगणना का हवाला देते हुए कहा कि बीते 30 वर्षों से ऊँटों की संख्या में नियमित तौर पर गिरावट का मुख्य कारण निरंतर यांत्रिक संसाधनों का विकास व ग्रामीण स्‍तर तक उच्‍च स्‍तर की परिवहन सुविधा का उपलब्‍ध होना है। राठौड़ ने कहा कि राज्य में लागू कानून ऊंट पालकों के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। बिना अनुमति के ऊंट बाहर ले जाने पर रोक लग गई साथ ही कई और पाबंदियों से पशुपालक हतोत्साहित हुए। जो ऊंट पहले 10 से 70000 रुपये बिकता था उसकी कीमत घटकर 3 से 8 हजार रुपये रह गई। यानी ऊंट पालने की लागत जहां बढ़ी वहीं इससे होने वाली आमदनी घट गई। पशुपालकों को अब इस कानून को लेकर राज्य सरकार का रुख स्पष्ट होने का इंतजार है।


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Content Editor

rajesh kumar

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