अब उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच इस मामले को लेकर ठनी
punjabkesari.in Thursday, Feb 16, 2023 - 09:21 PM (IST)

नई दिल्लीः दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन के खिलाफ मामला समेत सात मामलों में उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा अभियोजन की मंजूरी देने से कथित आरोपी ‘मुक्त' हो सकते हैं क्योंकि वह दिल्ली को मंजूरी देने वाले प्राधिकार नहीं हैं। दिल्ली सरकार के सूत्रों ने बृहस्पतिवार को यह दावा किया। सूत्रों ने दावा किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 196 के तहत अभियोजन के लिए वैध मंजूरी जारी करने की कार्यकारी शक्तियां पूरी तरह से निर्वाचित सरकार के पास निहित हैं।
एक सूत्र ने दावा किया, ‘‘...उपराज्यपाल वी के सक्सेना के इस कदम ने इस तरह की मंजूरी को अमान्य बना दिया है, जिससे आरोपी बच निकलने में सक्षम हो गए हैं।'' फिलहाल, इन दावों पर उपराज्यपाल के कार्यालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। सीआरपीसी के तहत दर्ज सात मामलों में हुसैन के खिलाफ 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के साथ-साथ सेना के खिलाफ कथित ट्वीट के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पूर्व छात्र नेता शेहला राशिद से जुड़ा मामला शामिल है।
धारा के तहत राष्ट्र के खिलाफ किए गए अपराधों जैसे अभद्र भाषा, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, घृणा अपराध, राजद्रोह, राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ना, शत्रुता को बढ़ावा देने के मामलों में कोई भी अदालत ऐसे मामलों का संज्ञान ‘‘राज्य सरकार'' की मंजूरी के बाद ही ले सकती है। पिछले महीने एक बयान में सरकार ने आरोप लगाया था कि उपराज्यपाल ने कुछ मामलों में ‘मंजूरी' दी, जबकि वह मंजूरी देने वाले प्राधिकार नहीं हैं। बयान में कहा गया था, ‘‘इसलिए, पिछले कुछ महीनों में ऐसे सभी आपराधिक मामलों में, अभियोजन पक्ष के लिए दी गई मंजूरी अमान्य है। जब आरोपी अदालतों में इस बिंदु को उठाएंगे, तो उन्हें रिहा कर दिया जाएगा।''
सूत्र ने कहा, ‘‘यह तीन दशकों से अधिक समय से दिल्ली में एक स्थापित कानून और प्रथा थी और पिछले सभी उपराज्यपालों द्वारा इसका पालन किया गया था कि सीआरपीसी की धारा 196 के तहत अभियोजन स्वीकृति ‘हस्तांतरित विषय' हैं जो निर्वाचित सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।'' सूत्रों ने दावा किया इसका मतलब यह है कि प्रभारी मंत्री सक्षम प्राधिकार हैं और इन सभी मामलों में मंत्री की मंजूरी ली जानी थी।
सूत्र ने कहा कि ‘‘मंत्री की मंजूरी के बाद, यह तय करने के लिए फाइल उपराज्यपाल को भेजी जाएगी कि क्या वह मंत्री के फैसले से अलग राय रखते हैं और क्या वह इसे राष्ट्रपति के पास भेजना चाहेंगे।'' सूत्र ने कहा, ‘‘हालांकि, इस मामले को पिछले साल 15 दिसंबर को मुख्य सचिव द्वारा नए सिरे से राय के लिए दिल्ली सरकार के कानून विभाग को भेजा गया था।'' सूत्रों ने दावा किया इसके बाद, कानून विभाग ने 3 जनवरी को अपनी राय दी, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इस कानून में ‘‘राज्य सरकार'' का मतलब दिल्ली में चुनी हुई सरकार है।
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