मौलाना आजाद : वह सिपाही, जिसने तिरंगे के नीचे एकता और शिक्षा का सपना बुना
punjabkesari.in Wednesday, Nov 12, 2025 - 11:06 AM (IST)
नवम्बर को मौलाना अबुल कलाम आजाद 11 की जयंती थी - भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी, चिंतक और देश के पहले शिक्षा मंत्री। यह दिन केवल एक महापुरुष को याद करने का अवसर नहीं, बल्कि उस विचारधारा को दोहराने का भी दिन है, जिसने भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया भाईचारा, एकता और शिक्षा के माध्यम से।
मौलाना आजाद का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जीवंत अध्याय है। वह न केवल एक धर्मगुरु थे, बल्कि विचारों से आधुनिक भारत के सच्चे निर्माता थे। जब अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई पूरे देश में चरम पर थी, तब मौलाना आजाद ने कलम और शब्दों को हथियार बनाकर लोगों के दिलों में आजादी की लौ जलाई। उनके साप्ताहिक पत्र' अल-हिलाल' और' अल-बलाग' अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला देते थे।
विभाजन की राजनीति के खिलाफ सबसे बुलंद आवाज : मौलाना आजाद का सबसे बड़ा योगदान था, भारत की एकता की रक्षा। जब मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग देश को धर्म के आधार पर बांटने की साजिश कर रही थी, तब मौलाना आजाद ने दृढ़ता से उसका विरोध किया। वह कहते थे, "धर्म के आधार पर देश का बंटवारा इस धरती की आत्मा को तोड़ देगा।" उन्होंने हर मंच से यह संदेश दिया कि हिंदू और मुसलमान एक ही मिट्टी के पुत्र हैं, उनके बीच विभाजन असंभव है।
आदिल आज़मी
उनका दृष्टिकोण केवल धार्मिक सद्भाव तक सीमित नहीं था, बल्कि वह एक राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि भी थी कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है। वह मानते थे कि आजादी का अर्थ तभी पूरा होगा, जब देश के हर नागरिक को समान अवसर और शिक्षा मिले।
पहले शिक्षा मंत्री के रूप में दूरदृष्टिः स्वतंत्र भारत
के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में मौलाना आजाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी। उन्होंने भारतीय संस्कृति और आधुनिक विज्ञान के संतुलन पर आधारित शिक्षा नीति को आगे बढ़ाया। उनके कार्यकाल में यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यू.जी.सी.), आई.आई.टी. खड़गपुर, साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी जैसी संस्थाओं की स्थापना हुई। उन्होंने यह विश्वास जताया कि शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का आधार है। उनके प्रयासों से ही भारत में उच्च शिक्षा और तकनीकी संस्थानों की मजबूत नींव रखी गई, जिसने आगे चलकर देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर किया।
मौलाना आजाद की विरासत :
आज जब समाज में विभाजन की आवाजें सुनाई देती हैं, तब मौलाना आजाद की शिक्षाएं पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक लगती हैं। उन्होंने अपने जीवन से सिखाया कि भारत की असली ताकत उसकी गंगा-जमुनी तहजीब में है। मौलाना आजाद न केवल स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा थे, बल्कि उस भारत के निर्माता भी थे, जो सभी को साथ लेकर चलता है। उनकी जयंती पर हमें यही संकल्प लेना चाहिए कि भाईचारे, एकता और शिक्षा के मार्ग पर चलना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि है।
निभाना भी तो नहीं आया
नहीं कि अपना जमाना भी तो नहीं आया, हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया। जला के रख लिया हाथों के साथ दामन तक, तुम्हें चराग बुझाना भी तो नहीं आया। नए मकान बनाए तो फासलों की तरह, हमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया। वो पूछता था मिरी आंख भीगने का सबब, मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया 'वसीम' देखना मुड़-मुड़ के वो उसी की तरफ, किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया।
- वसीम बरेलवी
