भारत ही नहीं यूरोपीय देशों के किसान भी सड़कों पर, पोलैंड और जर्मनी की सीमा पर लगाया जाम, पुलिस पर फैंकी बोतलें

Wednesday, Feb 28, 2024 - 08:45 AM (IST)

नेशनल डेस्क: किसान आंदोलन की मार भारत में भाजपा की केंद्र सरकार ही नहीं झेल रही है बल्कि यूरोप के कई देशों की सरकारों को किसानों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। किसानों ने मांगों को लेकर बीते सोमवार को पोलैंड और जर्मनी के बीच सीमा को अवरुद्ध कर दिया और ब्रुसेल्स में पुलिस पर बोतलें फेंकीं। किसान सस्ते सुपरमार्केट कीमतों पर कार्रवाई की मांग करने के लिए मैड्रिड में एकत्र हुए थे।

ब्रुसेल्स रैली के दौरान पुलिस ने बोतलें और अंडे फैंकने वाले प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार की। कहा जा रहा है कि फ्रांस, पोलैंड, पुर्तगाल और रोमानिया जैसे देशों में किसानों के बीच आय का अंतर एक बड़ी चिंता का विषय है। सस्ते आयात से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए वहां के किसानों को बढ़ती लागत का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है। वे सरकार से अधिक वित्तीय सहायता चाहते हैं और बाढ़ या सूखे जैसी चीजों से होने वाले नुकसान के लिए शीघ्र मुआवजा चाहते हैं।



900 ट्रैक्टरों बेल्जियम में किए कई हिस्से जाम
खबर है कि लगभग 900 ट्रैक्टरों के जरिए किसानों ने बेल्जियम की राजधानी के कुछ हिस्सों को जाम कर दिया। मैड्रिड में एक विरोध प्रदर्शन में पूरे स्पेन के किसानों ने सीटियां और ड्रम बजाए। वे यूरोपीय संघ से नियमों को ढीला करने और सब्सिडी और अन्य कार्यक्रमों की अपनी सामान्य कृषि नीति (सी.ए.पी.) में कुछ बदलाव करने की मांग कर रहे हैं। यूरोपीय संघ के कृषि मंत्रियों ने लालफीताशाही को कम करने और किसानों की मदद करने के लिए और अधिक प्रयास करने का वादा किया है।  आंदोलन में पोलैंड, ग्रीस, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, रोमानिया, इटली, बेल्जियम, पुर्तगाल और लिथुआनिया सहित कई देश शामिल हैं।

किसानों का दी है मामूली राहत
बताया जा रहा है कि 27 देशों वाले यूरोपीय संघ ने अपने 2040 के जलवायु रोडमैप से कृषि उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को हटाते हुए, अपनी प्रमुख ग्रीन डील पर्यावरण नीतियों के कुछ हिस्सों को पहले ही कमजोर कर दिया है, लेकिन किसान और अधिक की मांग कर रहे हैं। कृषि संगठन ला वाया कैम्पेसिना के सामान्य समन्वयक मॉर्गन ओडी के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि  ब्रुसेल्स में किसानों को आंदोलन करने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा क्यों कि यूरोपीय संघ हमारी मांगों को नहीं सुन रहा है।



यूक्रेन से सस्ते आयात का विरोध
उन्होंने कहा कि भोजन का उत्पादन करते हैं और हम जीविकोपार्जन नहीं करते हैं। किसान यूक्रेन से सस्ते आयात का विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि यह इसका असर लोकल स्तर पर उगाई जाने वाली चीजों पर पड़ रहा है। रूस के आक्रमण के बाद यूक्रेनी आयात पर कोटा और फीस हटाने के यूरोपीय संघ के फैसले ने इस समस्या को और भी बदतर बना दिया है। पोलैंड जैसे देशों में, किसान अपना गुस्सा दिखाने और अपनी आजीविका की रक्षा के लिए यूक्रेनी सीमा पर ट्रैफिक रोक रहे हैं। किसान अपनी सब्सिडी देर से मिलने, हाई टैक्स का भुगतान करने और यूरोपीय संघ के सख्त पर्यावरण नियमों से नाखुश हैं। उनका कहना है कि इन नियमों के कारण उनके लिए खेती करना और पैसा कमाना कठिन हो गया है।

Mahima

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