''न कोई नया केस दर्ज होगा, न अदालतें पारित कर सकेंगी आदेश'', प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट

punjabkesari.in Thursday, Dec 12, 2024 - 04:40 PM (IST)

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए देश की सभी अदालतों को 1991 के कानून के तहत धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण सहित राहत मांगने वाले किसी भी मुकदमे पर विचार करने और कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने यह निर्देश पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित याचिकाओं और प्रतिवाद याचिकाओं पर दिया।

'न नया केस दर्ज होगा, न अदालतें दे सकेंगी आदेश'
1991 का कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन पर रोक लगाता है तथा किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को उसी रूप में बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा वह 15 अगस्त, 1947 को था। उल्लेखनीय है कि पीठ ने कहा कि उसके अगले आदेश तक कोई नया मुकदमा दायर या पंजीकृत नहीं किया जाएगा तथा लंबित मामलों में अदालतें उसके अगले आदेश तक कोई भी “प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश” देने से बचेंगी।

पीठ ने कहा, "हम 1991 के अधिनियम की शक्तियों, स्वरूप और दायरे की जांच कर रहे हैं।" साथ ही, यह भी कहा कि अन्य सभी अदालतों से इस मामले में हाथ न डालने को कहना उचित होगा।हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए कई वकीलों ने इस आदेश का विरोध करते हुए कहा कि उन्हें सुने बिना यह आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए।

चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करे केंद्र 
पीठ ने केंद्र से इन याचिकाओं और प्रतिवादों पर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा तथा केंद्र द्वारा जवाब दाखिल करने के बाद अन्य पक्षों को अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया।पीठ दलीलें पूरी होने के बाद सुनवाई की अनुमति देगी।

इन याचिकाओं को किया स्वीकार 
इस बीच, न्यायालय ने कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की मांग करने वाली मुस्लिम संस्थाओं सहित विभिन्न पक्षों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। शीर्ष अदालत में छह याचिकाएं विचाराधीन हैं, जिनमें से एक अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने प्रार्थना की है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द कर दिया जाए। प्रस्तुत विभिन्न कारणों में से एक यह तर्क था कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छीन लेते हैं।


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Content Editor

rajesh kumar

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