नीतीश को और बड़ा बनाएगा दहेज का हथियार

Saturday, Oct 07, 2017 - 11:45 AM (IST)

शराबबंदी के बाद नीतीश कुमार ने एक दूसरे बड़े सामाजिक मुहीम के लिए बिगुल फूंक दिया है। इस बार उन्होंने दहेज, बाल विवाह के खिलाफ एक राज्यव्यापी अभियान की शुरुआत 2 अक्तूबर गांधी जयंती के दिन से की है। कुमार के शुरुआती संकेतों के अनुसार इसके खिलाफ  कड़े कानून बनाने की पहल की जा रही है।

प्रस्तावित कानून में दहेज वाली शादियों से जुड़े सभी लोगों को जेल भेजने का प्रावधान हो सकता है। शादी में वर-वधु पक्ष दोनों के अलावा इससे जुड़े सभी लोगों को कानूनी मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी शादियों में मदद देने वाले सभी लोगों  के खिलाफ  भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इससे पहले नीतीश कुमार ने शराबबंदी के खिलाफ  भी इसी तरह का कठोर कानून बनाया था। नि:संदेह उसका सकारात्मक असर भी हुआ। इस बार चुनौती कहीं ज्यादा कठिन है क्योंकि दहेज लेने और देने का काम समाज के बहुत बड़े वर्ग में होता आ रहा है। कठोर कानून की आड़ में पुलिसिया तंत्र के दुरुपयोग की आशंका सहयोगी बीजेपी के वरिष्ठ  नेता सीपी ठाकुर ने भी जताई है। कभी-कभी व्यापक सामाजिक बदलाव के कानूनों का विपरीत असर भी होता है। इमरजेंसी के दौरान इसी तरह के कई एक सामाजिक सरोकार के फैसले असरदार साबित नहीं हो सके।

नीतीश ने इस सामाजिक प्रयास की शुरुआत अपने दल से की है। अपने पार्टी के लोगों को इस तरह की शादियों से अपने आप को अलग रखने का फ रमान जारी किया है। अब देखना है की  हाई प्रोफाईल शादियों में मंत्री और राजनेता शामिल होते हैं या नहीं। क्या समाज पहले के कानूनों की तरह इसे भी हलके से लेगा या राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति समाज को बदलने के लिए मजबूर कर देगा। यह तो महीने भर बाद आने वाले विवाह शुभ लगन में ही पता चलेगा।

नीतीश के सहयोगियों ने इस मुहिम को राजनीति से अलग रखकर एक बड़े सामाजिक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है, पर राजनीति  के जानकार अच्छी तरह जानते हैं की नीतीश जैसे परिपक्व नेता कोई भी बड़ा फैसला बिना राजनीतिक नफा-नुकसान के नहीं ले सकते हैं।

नीतीश ने बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए भी देश में एक अलग ब्रांड बनाया है। वर्तमान राजनीति में सामाजिक मुद्दों को सियासत की मुख्य धारा में लाने वाले नेता के रूप में अपनी पहचान बनायी है। जाति के आधार पर बटे समाज को बड़े सामाजिक बदलाव के लिए तैयार करना शायद नीतीश कुमार को एक नई राजनीतिक जमीं दे, यह कहना भी जल्दबाजी होगी, पर नि:संदेह व्यापक राजनीतिक स्वीकार्यता तो बहुत हद तक बनना निश्चित है। बिहार के पिछड़ेपन का कारण आर्थिक से ज्यादा सामाजिक रहा है। तमाम सोशल इंडिकेटर्स में राज्य आज भी सबसे नीचे रहता आया है। देश में सबसे ज्यादा बाल विवाह इसी राज्य में होते हैं। आज भी करीब 39.1 प्रतिशत लोगों का बाल विवाह होता है। 

शराबबंदी की सफ लता का मूल कारण महिलाओं का मजबूत समर्थन था। अब देखना है कि इन मुद्दों पर राज्य की महिलाओं की भूमिका कैसी रहती है क्योंकि दहेज के मामलों में घर की महिलाएं ही ज्यादा दोषी देखी जाती हैं। इन सारे सामाजिक बदलाव के प्रयासों का सबसे बड़ा फायदा राज्य की महिलाओं को मिलेगा, चाहे वो शराबबंदी हो, बाल विवाह हो, या दहेज प्रथा हो। कुमार ने पंचायत में 50 फीसदी रिजर्वेशन, 35 प्रतिशत कुछ सरकारी नौकरियों में आरक्षण और लड़कियों के लिए साइकिल योजना का फायदा  चुनाव में वोटों में परिणत होते देखा है। यह और बात है कि इन सारे प्रयासों के बाद भी 2014 के चुनाव में नीतीश की करारी हर हुई थी। 

फि लहाल, सामाजिक मुद्दों को आगे लाकर नीतीश ने बिहार की राजनीति में गेम चेंजर की भूमिका बखूबी निभाई है। इन तमाम मुद्दों पर कुमार के राजनीतिक विरोधी भी किनारे पड़ते दिखाई देते हैं। कोई भी दल खुलकर इन मुद्दों पर सरकार की आलोचना नहीं कर सकता है। क्या राजनीति में सामाजिक मुद्दों पर सियासत करने वाले राजनेता के तौर पर नीतीश एक नए राजनीतक एजेंडे के साथ अपनी नई राजनीतिक जमीं तैयार करने में सफल होंगे, इसका पता तो आने वाले चुनाव में ही लगेगा जो अभी काफी दूर है। (-अजय कुमार)

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