गडकरी क्यों खेल रहे गठबंधन का खेल ?

punjabkesari.in Thursday, Feb 21, 2019 - 02:38 PM (IST)

नई दिल्ली(विशेष): केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कोई जनाधार नहीं। आर.एस.एस. दृढ़ता से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ है। फिर ऐसी स्थिति में नागपुर के बिजनैसमैन और राजनेता नितिन गडकरी गठबंधन बनाने का खेल क्यों खेल रहे हैं? गडकरी के बयानों ने मोदी और शाह के साथ उनका सीधा विवाद खड़ा कर दिया है। इन अटकलों का बाजार गर्म हो गया है कि गडकरी की नजर अब 2019 के चुनावों के बाद प्रधानमंत्री के पद पर है। 

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राजनीति में शुरू के दिनों से ही नितिन जयराम गडकरी ने अपने गृहनगर नागपुर में राजनीतिक संस्कृति का आधार बना दिया था। नागपुर में यह केवल रेलवे पुल ही है जो न केवल शहर को दो भागों में बांटता है, बल्कि इससे 2 अलग सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाएं भी बंटी हुई हैं। पुल के पार नया नागपुर है जहां मैट्रो का निर्माण हो रहा है। यहां मध्य और उच्च श्रेणी के लोग रह रहे हैं। गडकरी पुल के दूसरी तरफ रहते हैं, जो पुराना नगर कहलाता है और जिसे महल भी कहा जाता है। महल नागपुर का ही हिस्सा है, जहां आर.एस.एस. ने 1925 में अपनी पहली शाखा का आयोजन किया था और जिससे इस आंदोलन की शुरूआत हुई। 

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मोदी भी एक स्वयंसेवक के रूप में काम करते हुए 2014 में प्रधानमंत्री पद तक पहुंच गए। उनका रेशमी बाग में आर.एस.एस. कैंप्स से काफी करीबी संबंध है जहां भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आर.एस.एस. के कार्यक्रम के मुख्यातिथि थे। यह बात किसी से छिपी नहीं कि गडकरी की मुखर्जी के साथ मित्रता के चलते ही वह प्रणव मुखर्जी को आर.एस.एस. के विशेष कार्यक्रम में ले आए थे। अप्रैल 2014 में पुराने नगर और नए शहर दोनों ने गडकरी को खुलकर वोट दिए और वह 2,85,000 मतों से विजयी रहे। यह पहला सीधा चुनाव था जो गडकरी ने अपने 4 दशकों के  लंबे राजनीतिक जीवन में इतने बड़े वोट बैंक के साथ जीता। भाजपा 282 सीटों पर विजयी हुई थी।गडकरी यह चुनाव बिना मोदी की रैली के जीते थे।

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5 साल बाद ये अटकलें लगने लगी हैं कि गडकरी साहिब 2019 के चुनावों में प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। नागपुर में राजनीतिक तौर पर सक्रिय प्रत्येक व्यक्ति यही पश्र पूछता है, ‘‘बन रहा है क्या पी.एम. (क्या वह प्रधानमंत्री बन रहे हैं)?’’ यह बात एक स्थानीय कांग्रेसी नेता ने पूछी जिसने आगामी चुनाव में गडकरी के खिलाफ कांग्रेस की टिकट की मांग की है। नागपुर स्थित एक उद्योगपति और आर.एस.एस. पदाधिकारी ने अपना नाम नहीं बताते हुए यह बात की कि गडकरी के प्रधानमंत्री बनने की काफी अटकलबाजी चल रही है।

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हालांकि भारतीय जनता पार्टी वर्तमान में अकेली बड़ी पार्टी है मगर 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत और उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बाद 2019 में केंद्र में त्रिशंकु सरकार बनने के आसार बन रहे हैं। यह अनिश्चितता है जिसने मोदी के विकल्प के रूप में गडकरी के लिए जगह बनाई है। उनके मित्रों और प्रशंसकों व आर.एस.एस.-भाजपा पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एन.सी.पी.) ने भी ऐसा कहा है। गडकरी को संघ की सपोर्ट के मुद्दे पर आर.एस.एस. नेताओं ने इसे मिथक बताया है। वहीं कुछ अन्य संघ नेताओं का कहना है कि गडकरी जानते हैं कि वह अब पसंदीदा उम्मीदवार नहीं हैं फिर भी वह अप्रत्याशित प्रकृति और आश्चर्य में विश्वास रखते हैं। एक राष्ट्रीय संघ नेता जोकि गडकरी के काफी करीबी हैं, ने कहा कि मोहन भागवत सहित पूरा संघ नेतृत्व 2019 के चुनावों को लेकर नरेन्द्र मोदी के साथ है। यही नहीं संघ सहित विश्व हिन्दू परिषद भी पूरी तरह मोदी के साथ है। 

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गडकरी  ने यह भी कहा कि गडकरी स्वयं भी जानते हैं कि हम उनकी मदद नहीं कर सकते हैं लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि फिर संघ नेतृत्व उन्हें ऐसे बयानों से रोकता क्यों नहीं तो उन्होंने कहा कि यह मेरा काम नहीं है।  गीता प्रैस एंड द मेकिंग ऑफ ङ्क्षहदू इंडिया के पत्रकार अक्षय मुकुल ने कहा कि उन्हें लगता है कि संघ गडकरी को अपना मानता है, नागपुर का कोई भी व्यक्ति जिस पर उसे गर्व है। उन्होंने कहा कि वह पूरी तरह से सहमत हैं कि गडकरी को संघ का समर्थन नहीं मिलेगा। उन्हें कहीं ऐसा कोई कारण नजर नहीं आ रहा कि संघ को मोदी और शाह से कोई शिकायत होगी। पिछले 5 साल से संगठन के लिए अच्छे रहेहैं।  

पिक्चर अभी बाकी है
गडकरी जोकि 2012 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं मगर इसके बावजूद उनके पास अभी भी राष्ट्रीय उपस्थिति का अभाव है। फिर शीर्ष पद के लिए गडकरी की संभावनाओं को ईंधन क्यों दिया जा रहा है? सीधे तौर पर कहें तो यह विस्तारक पारिस्थितिकी तंत्र और समर्थन-आधार गडकरी ने व्यक्तिगत रूप से आर.एस.एस., भाजपा, उद्योग, कृषि और यहां तक कि मीडिया में वर्षों से बनाया है। उन्हें उम्मीद है कि संघों और गठबंधनों का यह ढांचा चुनाव के बाद काम आएगा अगर उन्हें समर्थन की जरूरत पड़े। तथ्य यह है कि महाराष्ट्र परे है और विदर्भ में उनके पास कोई राजनीतिक आधार नहीं है। महाराष्ट्र जो लोकसभा में 48 सांसदों को भेजता है, उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा दल है। कांग्रेस ने एन.सी.पी. के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन लगभग कर दिया है और भाजपा-शिवसेना के बीच में गठबंधन हो गया है। मई 2018 में शरद पवार नागपुर में गडकरी के जन्मदिन के जश्न में मुख्य अतिथि थे। एक मैगा इवैंट जिसमें नागपुर में पूर्व कांग्रेस सांसद विलास मुत्तेमवार शामिल थे, का कहना है कि गडकरी का यह आत्म-प्रचार का पहला बड़ा प्रयासथा। 

एन.सी.पी. ने महाराष्ट्र में भाजपा को समर्थन देने के लिए की थी अपनी पेशकश
गडकरी-पवार की दोस्ती का हालिया संदर्भ है। 2014 में एन.सी.पी. ने महाराष्ट्र में भाजपा को समर्थन देने के लिए अपनी पेशकश की थी (यदि गडकरी को मुख्यमंत्री बनाया जाता तो) लेकिन देवेंद्र फडऩवीस जो न्यू नागपुर के एक युवा राजनेता थे, को मोदी का समर्थन मिला।  एन.सी.पी. के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘‘राकांपा जाहिर तौर पर पवार साहब को प्रधानमंत्री बनाना पसंद करेगी और हमारी दूसरी पसंद नितिन हैं। भाजपा से हमारी पहली पसंद अब भी नितिन हैं।’’ लेकिन उन्होंने इस सवाल का जवाब देने से इन्कार कर दिया कि क्या गडकरी को प्रधानमंत्री के रूप में उभरने के लिए राकांपा भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बदल जाएगी? उन्होंने कहा, ‘‘यह एक लंबा शॉट है।’’  


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Anil dev

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