In JDU on Article 370, there was a lot of cash

punjabkesari.in Friday, Aug 09, 2019 - 01:42 PM (IST)

एनडीए में रहकर भाजपा के हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा के विरोध पर जनता दल युनाइटेड में खलबली तेज हो रही है। पार्टी के राज्यसभा सदस्य आरसीपी सिंह ने यह कहकर सबको चौंका दिया है कि कश्मीर के विशेषाधिकार को खत्म करने को लेकर अनुच्छेद 370 में फेरबदल अब कानून बन चुका है। इसलिए अब उसके विरोध को कोई मतलब नहीं है। सबको उसका सम्मान करना चाहिए। इसके पहले पार्टी के अन्य नेता अजय आलोक ने नीतीश कुमार से अनुरोध किया कि जनभावना को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर पार्टी के रुख पर पुनर्विचार करें। ये दोनों बयान पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी के पूर्व के बयान के खिलाफ है। 

त्यागी ने कहा था कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया और जॉर्ज फर्नांडीज जैसे नेता अनुच्छेद 370 में किसी तरह के फेरबदल के खिलाफ थे इसलिए पार्टी ने संसद में इसका विरोध किया। इस तरह के परस्पर विरोधी बयान पार्टी की दो धाराओं के बीच संघर्ष है या फिर पार्टी की रणनीति का हिस्सा, इसे समझने के लिए पार्टी के हाल के दिनों  के दो-तीन फैसलों पर गौर करना जरूरी है। अनुच्छेद 370 में फेरबदल पर जदयू ने संसद के दोनों सदनों में सरकार का विरोध किया और मतदान के समय सदन का बहिष्कार कर दिया। तीन तलाक पर भी जदयू ने भाजपा का साथ नहीं दिया। जदयू-भाजपा के बीच तल्खी दूसरी बार मोदी सरकार के गठन के समय ही आ गई थी। मोदी अपनी दूसरी सरकार में जदयू से केवल एक मंत्री को शामिल करना चाहते थे, लेकिन नीतीश ने इस प्रतीकात्मक भागीदारी से इनकार कर दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 5 लोकसभा सीट जदयू को दी। विधानसभा के 2020 में होने वाले चुनावमें भाजपा के निशाने पर जदयू हो सकता है। उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं की छोटी पार्टियों को जोड़कर भाजपा अब जदयू को चुनौती दे सकती है। 

अब नीतीश एक नए समीकरण की तलाश में दिखाई दे रहे हैं। भाजपा से करीबी के बाद मुस्लिम मतदाताओं ने उनसे दूरी बना ली थी। हालांकि नीतीश ने कभी भी भाजपा के हिंदुत्व एजेंडा का साथ नहीं दिया। साथ ही वह मुस्लिम विरोधी भी नहीं हैं। लेकिन बिहार की एक हकीकत यह भी है कि मुसलमान लंबे समय से लालू यादव के साथ हैं। अब जबकि जेल में होने के कारण लालू बिहार के राजनीतिक परिदृश्य से गायब हैं और उनके बेटे के नेतृत्व में उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल 2019 के लोकसभा चुनाव में कोई कामयाबी नहीं दिखा सकी, बिहार के मुसलमान भी नया राजनीतिक ठौर तलाश कर रहे हैं। धर्मनिरपेक्ष छवि के कारण नीतीश उनकी पसंद हो सकते हैं। माना जा रहा है कि नीतीश इसी राजनीतिक सामाजिक गठबंधन की जमीन तलाशने में जुटे हैं। वैसे भी अपने समाजवादी अतीत के कारण नीतीश के लिए भाजपा के उग्र हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा के साथ खड़ा होना मुश्किल है। भाजपा बिहार में बति पिछड़ा और अति दलित अधार में सेंध लगा चुकी है। ऐसे में अगर मुसलमानों साथ मिलता है तो नीतीश फिर से एक राजनीतिक ताकत खड़ी कर सकते हैं। नीतीश को सवर्णों के एक तबके का समर्थन भी मिलता रहा है। मुस्लिमों के मामलों पर भाजपा का विरोध करने से मुसलमानों में नीतीश की पकड़ बढ़ सकती है। 

इसके जरिए आरजेडी और कांगे्रस भी फिर एक बार उनके साथ आने के लिए मजबूर हो सकती है। देश के बाकी हिस्सों की तरह ही बिहार में भी अनुच्छेद 370 को लेकर मोदी सरकार को व्यापक समर्थन दिखाई दे रहा है। जदयू के कुछ नेता इससे चिंतित हैं, यह उनकी प्रतिक्रिया से साफ जाहिर है, लेकिन नीतीश के सामने दूरगामी राजनीतिक लक्ष्य बिल्कुल साफ है।

-शैलेश


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