कांग्रेस के भावी अध्यक्ष इन ''नवरत्नों'' के सहारे पार्टी को ''दुख भरे दिनों'' से बाहर ले जाएंगे

Tuesday, Dec 05, 2017 - 04:40 PM (IST)

नई दिल्लीः राहुल गांधी कांग्रेस के अगले अध्यक्ष होने जा रहे हैं लेकिन पार्टी की कमान उनके हाथों में एेसे समय में आ रही रही है, जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। अगर नेहरू-गांधी परिवार की पीढ़ी के इतिहास की बात करें तो जब-जब इस खानदान के व्यक्ति के हाथ पार्टी की कमान आई है तो उसने पार्टी को आगे बढ़ाने का ही काम किया है। एेसे में अब राहुल के सामने इस रिकॉर्ड को बनाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती होगी। इस परिस्थतियों में देश की सबसे पुरानी पार्टी के नए मुखिया चाहेंगे कि वे इन लोगों को अपने नवरत्नों शामिल करके पार्टी के खोए दिन वापस ला सकें। 

प्रियंका गांधी
राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद उनकी सबसे बड़ी शुभचिंतक उनकी छोटी बहन प्रियंका गांधी होंगी। हालांकि अभी वह सक्रिय राजनीति में नहीं हैं लेकिन नाजुक मौकों पर उनके लिए मददगार बन सकती हैं। जानकारों की मानें तो पर्दे के पीछे रणनीति बनाने और सलाहकार के रूप में भूमिका रहेंगी। 

सैम पित्रोदा
सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा यानी सैम पित्रोदा भी राहुल के नवरत्नों में शामिल होने की पूरी संभावना है। वैसे तो पित्रोदा राहुल के पिता राजीव गांधी के बेहद करीबी रहे हैं और राजीव तमाम बड़े फैसलों में उन्ही का बात बताया जाता रहा है। लेकिन राजीव गांधी के बाद गांधी परिवार पित्रोदा पर भरपूर विश्वास करता रहा है। इसके चलते इस बार के गुजरात चुनावों में पार्टी के लिए घोषणा तैयार कराने और उनके लिए खास रणनीति बनाने में उनका ही हाथ बताया जाता है। इसके अलावा पिछले दिनों अमरीका में राहुल के सफल कार्यक्रमों का श्रेय भी पित्रोदा को ही जाता है।

सचिन पायलट
इनका नाम देश के सबसे संजीदा राजनेताओं में शीर्ष पर लिया जाता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेश पायलट के सुपुत्र पहली दफा 15वीं लोकसभा में अजमेर के सांसद रहे थे लेकिन 2014 के चुनाव में 'मोदी लहर' के चलते हार का सामना करना पड़ा। हालांकि सचिन फिलहाल राजस्थान में पार्टी के राज्य प्रमुख हैं और उनकी राहुल के साथ अच्छी ट्यूनिंग भी है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया
जिस तरह से राहुल राजनीतिक वंशवाद से आगे आए हैं उसी तरह से सिंधिया खानदान का यह चिराग भी आगे आया है। 2014 में 'मोदी लहर' के बीच मध्य प्रदेश के गुना संसदीय क्षेत्र से वह जीत हासिल की और लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे। मध्य प्रदेश की राजनीति में बीजेपी राज के दौरान अपनी अहमियत कई बार साबित की है। हाल के दिनों में उन्होंने खुद को अपने राज्य में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पहचान भी बनाई है। एेसे में राहुल गांधी के साथ हर पल रहने वाले ज्योतिरादित्य उनके लिए सबसे बड़े संकटमोचक बन सकते हैं। 

शशि थुरूर
अंतरराष्ट्रीय मामलों के बड़े जानकार शशि राहुल के नवरत्नों में शामिल किए जा सकते हैं। उनके पास अंतरराष्ट्रीय स्तर की जितनी सूझबूझ है उतनी शायद उनकी पार्टी में किसी और नेता के पास नहीं होगी। लंबे समय तक वह संयुक्त राष्ट्र से जुड़े रहे हैं और बतौर डिप्लोमैट काफी सफल भी रहे हैं। इसके अलावा वे कांग्रेस के उन चुनिंदा सांसदों में एक हैं, जिन्होंने 2014 में 'मोदी लहर' के बीच खुद का वजूद बचाए रखा और लोकसभा में पहुंचने में कामयाबी हासिल की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार विदेश दौरे को लेकर घेरने के वास्ते वह राहुल के लिए मददगार साबित रहे हैं।

रणदीप सुरजेवाला
कांग्रेस के प्रवक्ता और हरियाणा से विधायक रणदीप मौजूदा समय वह केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। वह कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख के तौर कार्यरत हैं और बीजेपी पर लगातार हमला करने के कारण राहुल के करीब होते जा रहे हैं। एेसे में राहुल गांधी के लिए भरोसेमंद साथी साबित हो सकते हैं। 

कनिष्क सिंह
पूर्व नौकरशाह और राज्यपाल रहे शैलेंद्र कुमार सिंह के बेटे हैं। पेशे से ये एक कंप्यूटर इंजीनियर और एमबीए डिग्री होल्डर हैं लेकिन 2003 में शीला दीक्षित के चुनावी अभियान का हिस्सा बने। इसके बाद वह 2004 में अमेठी में राहुल के चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला और उन्हें जीत दिलाई। कनिष्क ने अमेठी में लोगों की बात सुनने और उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनवाया है, जिसका काफी फायदा मिला। नित नए प्रयोग के कारण वह राहुल के करीब आते गए। आज राहुल के सबसे बड़े करीबियों में से एक है। 

करन सिंह
राजनीतिक में वक्त का तकाजा ये कहता है कि युवा जोश के साथ-साथ अनुभव की भी दरकार होती है। ऐसे में अनुभवी राजनेता और हिंदू धर्म के प्रकांड विद्धान और राज्यसभा सांसद करन सिंह राहुल के लिए दो मायनों में बेहद उपयोगी हो सकते हैं। उनके धर्म को लेकर जो सवाल उठते हैं। एेसे परिस्थतियों से निपटने के लिए करन सिंह की सलाह बड़ा काम करती रहेगी। वहीं, उनका विशाल राजनीतिक अनुभव जो नए अध्यक्ष के लिए बेहद जरूरी है, जो बड़े फैसले लेने में काफी करगर साबित होगा। 

कोप्पूला राजू
राजनीति में दलित कार्ड हमेशा ट्रंप कार्ड जैसा रहा है और हर पार्टी इस कार्ड के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। ऐसे में नौकरशाह से राजनीति में कदम रखने वाले राजू राहुल के लिए बड़े उपयोगी साबित हो सकते हैं। फिलहाल वो इस समय कांग्रेस की अनुसूचित जाति विंग के प्रमुख हैं और पार्टी के दलित कार्ड की रुपरेखा तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका है।

 

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