स्वामी विवेकानंद का शिकागो का वो मशहूर भाषण, जिसे सुन दुनिया हो गई थी मुरीद

punjabkesari.in Saturday, Sep 11, 2021 - 11:57 AM (IST)

नई दिल्ली: स्वामी विवेकानंद का नाम लेते ही शरीर और मन दोनों में स्फूर्ति का संचार होता है। मन श्रद्धा से झुक जाता है। स्वामी विवेकानंद ने अमरीका के शिकागो में 11 सितंबर, 1893 को आयोजित विश्व धर्म  संसद में जो भाषण दिया था उसकी प्रतिध्वनि युगों-युगों तक सुनाई देती रहेगी। आज के दिन जब स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषण की शुरुआत 'मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों' कहकर की तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। 

स्वामी विवेकानंद का भाषण
आपने जिस सौहार्द और स्नेहपूर्णता के साथ हम लोगों का स्वागत किया है, उससे मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया। दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से मैं आपको धन्यवाद देता हूं, मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी सम्प्रदायों व मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं. मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने संसार को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम लोग सब धर्र्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। स्वामी विवेकानंद का यह भाषण ऐतिहासिक साबित हुआ था।
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स्वामी विवेकानंद का संघर्ष
स्वामी जी शुरुआत में शिकागो में भाषण देने नहीं जाना चाहते थे लेकिन 25 जुलाई 1893 में उनका जहाज शिकागो पहुंचा। उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण देने के लिए जो कष्ट उठाए वह किसी साधारण किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। स्वामी जी ने खुद लिखा कि 'जब उनका जहाज शिकागो पहुंचा था तो वहां इतनी ठंड थी कि उन्होंने लिखा है, ‘मैं हडि्डयों तक जम गया था'।

उन्होंने आगे लिखा कि 'मुंबई से रवाना होते हुए उनके दोस्तों ने जो कपड़े दिए थे वो नॉर्थवेस्ट अमेरिका की कड़ाके की ठंड के लायक नहीं थे'। शायद मेरे दोस्तों को ठंड का अनुमान नहीं था। वह विदेशी धरती पर एक दम अकेले थे। विश्व धर्म सम्मेलन के पांच हफ्ते पहले वह गलती से पहुंच गए थे। शिकागो काफी महंगा शहर था। उनके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे और जितने पैसे थे वह तेजी से खत्म हो गए थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इतने संघर्ष के बाद भी उन्होंने वहां सभागार में लोगों को संबोधित किया।
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स्वामी जी के अनमोल वचन
-उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए।

-उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व  नहीं हो , न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।

-ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं, वो हमीं हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है।

-किसी की निंदा न करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए।

-कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल  हो या अन्य निर्बल हैं।

-जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।

-उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसीसांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।

-हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।


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Content Writer

Anil dev

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