Kargil Vijay Diwas: इस परमवीर ने कहा था, ...मैं मौत को भी मार डालूंगा

punjabkesari.in Monday, Jul 26, 2021 - 01:46 PM (IST)

नई दिल्ली: 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भारत ने पकिस्तान द्वारा छेड़े छद्म युद्ध का अंत हुआ था। घोषित रूप से भारत की इस युद्ध में जीत हुई थी। इस युद्ध में एक ऐसा भी हीरो था जिसको याद करके आज भी हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। इस शख्स का नाम था मनोज कुमार पांडेय। कारगिल युद्ध में असीम वीरता का प्रदर्शन करन के कारण कैप्टन मनोज को भारत का सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया। 

PunjabKesari

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ जन्म
मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रुधा गांव में हुआ था। मनोज का गाव नेपाल की सीमा के पास था। मनोज के पिता का नाम गोपीचन्द्र पांडेय तथा माता का नाम मोहिनी था। मनोज की शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई जहां से उन्होंने अनुशासन और देशप्रेम का पाठ सीखा। इंटर की पढ़ाई पूरी करन के बाद मनोज ने प्रतियोगी परीक्षा पास करके पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया। ट्रेनिंग करने के बाद वह 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने। 

PunjabKesari

डायरी में लिखा करते थे अपने विचार
कारगिल युद्ध के समय तनाव भरी स्थिति को देखते हुए सभी सैनिकों की आधिकारिक छुट्टियां रद कर दी गईं ​थीं। महज 24 साल के कैप्टन मनोज पांडेय को ऑपरेशन विजय के दौरान जुबर टॉप पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई थी। हाड़ कंपाने वाली ठंड और थका देने वाले युद्ध के बावजूद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की हिम्मत ने जवाब नहीं दिया। युद्ध के बीच भी वह अपने विचार अपनी डायरी में लिखा करते थे। उनके विचारों में अपने देश के लिए प्यार साफ दिखता था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था अगर मौत मेरा शौर्य साबित होने से पहले मुझ पर हमला ​करती है तो मैं अपनी मौत को ही मार डालूंगा। 
 

PunjabKesari

दुश्मन के सैनिकों पर चीते की तरह टूट पड़े

तीन जुलाई 1999 का वो ऐतिहासिक दिन जब खालुबर चोटी को दुश्मनों से आजाद करवाने का जिम्मा कैप्टन मनोज पांडेय को दिया गया था। उन्हें दुश्मनों को दायीं तरफ से घेरना था। जबकि बाकी टुकड़ी बायीं तरफ से दुश्मन को घेरने वाली थी। वह दुश्मन के सैनिकों पर चीते की तरह टूट पड़े और उन्हें अपनी खुखुरी से फाड़कर रख दिया। उनकी खुखुरी ने चार सैनिकों की जान ली। ये लड़ाई हाथों से लड़ी गई ​थी। 

PunjabKesari

बुरी तरह घायल होकर भी आगे बढ़ा परमवीर
मनोज ने बुरी तरह घायल होने के बावजूद हार नहीं मानी और अपनी पलटन को लिए आगे बढ़ते रहे। इस वीर ने चौथे और अंतिम बंकर पर भी फतह हासिल की और तिरंगा लहरा दिया। लेकिन यहीं पर मनोज की सांसों की डोर टूट गई। गोलियां लगने से जख्मी हुए कैप्टन मनोज पांडेय शहीद हो गए। लेकिन जाते-जाते मनोज ने नेपाली भाषा में आखिरी शब्द कहे थे, 'ना छोडऩु', जिसका मतलब होता है किसी को भी छोडऩा नहीं! जब कैप्टन मनोज पांडेय का पार्थिव शरीर लखनऊ पहुंचा था तब पूरा लखनऊ सड़कों पर उमड़ पड़ा था। भारत सरकार ने मैदान-ए-जंग में मनोज की बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया। हमने कारगिल के युद्ध को तो जीत लिया। लेकिन उसे जीतने की कोशिश में हमने कई बहादुर सैनिकों जैसे सौरभ कालिया, विजयंत थापर, पदमपाणि आचार्य, मनोज पांडेय, अनुज नायर और विक्रम बत्रा को खो दिया।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anil dev

Recommended News

Related News