गुजरात चुनाव: सौराष्ट्र के राजकोट की चार सीटों पर क्या कामयाब हो पाएगी भाजपा की नई रणनीति !

Saturday, Nov 26, 2022 - 04:16 PM (IST)

नेशनल डेस्क: गुजरात के सौराष्ट्र में सत्तारुढ़ भाजपा का गढ़ रहे राजकोट में भाजपा की प्रतिष्ठा इस बार दाव पर लगी हुई है। हालांकि आम आदमी पार्टी (आप) के सियासी अखाड़े में आने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय होने के भाजपा ऐसा मान कर चल रही है कि इसका सीधा फायदा उसे ही होगा। संभावित सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए राजकोट शहर की चारों सीटों पर भाजपा ने अपनी रणनीति इस बार पूरी तरह बदल दी है। चारों सीटों पर भाजपा ने नए चेहरे जनता के सामने खड़े कर दिए हैं। बहरहाल भाजपा की यह रणनीति कितनी कामयाब होगी ये तो चुनावी परिणाम ही बताएंगे।

जहां पूर्व मुख्यमंत्री और राजकोट (पश्चिम) के मौजूदा विधायक विजय रूपाणी चुनाव से बाहर कर दिया गया है वहीं भाजपा ने राजकोट (पूर्वी) के मौजूदा विधायक और परिवहन राज्य मंत्री अरविंद रैयानी, राजकोट (दक्षिण) के विधायक गोविंद पटेल और राजकोट (ग्रामीण) विधायक लखाभाई सगाथिया को भी टिकट नहीं दिया है। चारों सीटों पर स्थापित नेताओं की जगह नए चेहरों ने ले ली है। भाजपा ने प्रतिष्ठित राजकोट (पश्चिम) सीट से राजकोट की डिप्टी मेयर दर्शिता शाह, राजकोट (पूर्व) से पूर्व मेयर उदय कांगड़, राजकोट (दक्षिण) से उद्योगपति रमेश तिलारा और राजकोट (ग्रामीण) से पूर्व विधायक भानु बाबरिया को जंग के मैदान में उतारा है।

सबसे दिलचस्प होने वाला चुनाव राजकोट (पश्चिम) का चुनाव है, जो भाजपा की एक तरह की विरासत है। 2001 में विधायक वजुभाई वाला ने नरेंद्र मोदी के लिए अपना पहला विधानसभा (विस) चुनाव लड़ने के लिए यह सीट खाली कर दी थी। मोदी ने यहां से विधानसभा की शुरुआत की थी। हालांकि इस बार भाजपा को अपने गढ़ में भी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। महंगाई, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), कई पेपर लीक और खराब सड़कें लोगों के दिमाग पर गहरी छाप छोड़ रही हैं। एक मीडिया रिपोर्ट में स्थानीय दुकानदार ने बता कि वह भाजपा का कट्टर समर्थक है, लेकिन इस बार बदलाव चाहता है। वह बताता है कि महंगाई हमें परेशान कर रही है और कोविड-19 के बाद से कारोबार भी नीचे है। अगर शहर के सुनारों की बात करें तो वे अपने व्यवसाय पर जीएसटी को एक असहनीय दर्द बताते हैं। वे कहते हैं कि कोविड -19 के बाद बाजार नीचे है। उसके ऊपर जीएसटी लगाया गया है, हम सभी को चार्टर्ड अकाउंटेंट को 5,000 रुपये प्रति माह पर हायर करना पड़ता है।

पारंपरिक भाजपा मतदाता का कहना है कि वह किसी अन्य पार्टी को वोट नहीं दे सकता है। कुछ कट्टर भाजपा समर्थक कहते हैं कि इस बार मेरी योजना उपरोक्त में से कोई नहीं यानी नोटा बटन दबाने की है। हैरानी की बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिले थे। कांग्रेस को भरोसे की कमी का सामना करना पड़ रहा है। शादी के मंडप लगाने का काम करने वाले एक कारोबारी कहते हैं कि 2017 में लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया था लेकिन इतने सारे विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। इस बात का कोई भरोसा नहीं है कि कांग्रेस को वोट देने से आपका वोट बर्बाद नहीं होगा। इसलिए मैंने यह तय नहीं किया है कि मैं किसे वोट दूंगा।

आम आदमी पार्टी की एक सीमित अपील है और यह निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों तक ही सीमित है। ऑटो रिक्शा चालक खुलकर पार्टी का समर्थन करते हैं और कहते हैं कि दिल्ली में "आप" के काम से मासिक आय बढ़ाने में मदद मिली है। देवपाड़ा इलाके में ऑटो एसोसिएशन पुराने ऑटो को हटाने का विरोध कर रहा है। एक ऑटो चालक सचिन भाई कहते हैं कि हम "आप" का समर्थन कर रहे हैं। संघ ने खुले तौर पर कहा है कि भाजपा हमारे हितों के खिलाफ काम कर रही है। इसलिए हमें किसी अन्य पार्टी के उपयुक्त उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए। भाजपा ने हमारे पुराने ऑटो को नए के साथ बदलने का फैसला किया है। जबकि पुराने की कीमत हमें 1.5 लाख रुपये दी जा रही है, ये 3 लाख रुपये की लागत से दोगुनी होगी। 
 

Anil dev

Advertising