WHO की डराने वाली रिपोर्ट आई सामने, दुनिया का हर आठवां शख्स डिप्रेशन का शिकार

Tuesday, Jun 21, 2022 - 11:42 AM (IST)

नेशनल डेस्क: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक वर्तमान में दुनिया का हर आठवां व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानसिक विकार से ग्रसित हैं। आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग एक अरब लोग किसी न किसी रूप में मानसिक विकार से पीड़ित हैं। इसमें सात पीड़ितों में से एक किशोर शामिल है। कोरोना महामारी से के बाद मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है। 

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत की 6-7 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानसिक विकारों का सामना कर रही है। कोरोना महामारी के बाद देश में मानसिक रूप से अस्वस्थ्य लोगो की संख्या तेजी से बढ़ी है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कम जागरूकता इस समस्या का प्रमुख कारण है। साल 2018 में जारी लांसेट मेन्टल हेल्थ की रिपोर्ट की मानें तो भारत में 80 प्रतिशत मानसिक रोगियों को उपचार ही नहीं मिलता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर कम खर्च करते हैं देश
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर दुनिया की सेहत पहले से ही सही नहीं थी मगर कोरोना महामारी के पहले वर्ष में ये स्थित बद से बदतर हो गई। लोगों के अवसाद और चिंता जैसी सामान्य स्थितियों की दर में 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन देश अपने स्वास्थ्य देखभाल बजट का केवल 2 प्रतिशत से भी कम मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं। नतीजतन, जरूरतमंद लोगों के केवल एक छोटे से हिस्से का ही प्रभावी, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच हो पाती है।

बीमारियों के कारण लोग कर रहे आत्महत्या
डब्ल्यूएचओ के पिछले साल के अनुमानों के अनुसार दुनिया भर में आत्महत्या मौत के प्रमुख कारणों में से एक हो चुका है। हर साल, एचआईवी, मलेरिया या स्तन कैंसर या युद्ध और हत्या से अधिक लोग आत्महत्या के परिणामस्वरूप मरते हैं। अकेले साल 2019 में आत्महत्या से सात लाख से अधिक लोग मरें। यानी प्रत्येक 100 मौतों में से एक मौंतों का कारण आत्महत्या है। मानसिक स्वास्थ्य की बदतर हालात के बीच बीते दो सालों में इस संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है।

क्या कहते हैं मनोविज्ञान विशेषज्ञ
साल 2019 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत को 2012 से 2030 के बीच मानसिक स्वास्थ्य की खराब स्थिति के कारण 1.03 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान उठाना होगा। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इससे आने वाले दशकों में अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंच सकता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग प्रोफेसर डॉ. राकेश पांडेय भारत में मानसिक अस्वस्थता को लेकर आम लोगों में जागरूकता का बेहद अभाव है। इसे सामाजिक तौर पर कलंक के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास जाने में शर्म और हिचकिचाहट महसूस होती है, जिससे समस्याएं जटिल हो जाती है। यदि समय रहते विकार की पहचान कर इलाज शुरू किया जाए तो काफी हद तक बेहतर परिणाम मिलता है। 

Anil dev

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