मनमोहन सिंह बोले- कोरोना ने किया अर्थव्यवस्था को तबाह, आने वाला वक्त 1991 के संकट से ज्यादा कठिन

Friday, Jul 23, 2021 - 07:09 PM (IST)

नेशनल डेस्क: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि तीन दशक पहले देश के समक्ष जो आर्थिक संकट था उसके कारण शुरू हुई उदारीकरण की प्रक्रिया के बाद देश ने गौरवशाली आर्थिक प्रगति हासिल की लेकिन आने वाले वक्त में ज्यादा गंभीर है इसलिए यह वक्त आनंद और उल्लास का नहीं बल्कि सामने खड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए आत्मचिंतन का है। डॉ. सिंह ने देश में तीन दशक पहले शुरू किए गए आर्थिक सुधारों के 30 वर्ष पूरे होने की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को यहां जारी एक बयान में कहा ‘‘तीस साल पहले 1991 में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में देश ने अर्थव्यवस्था में सुधारों की महत्वपूर्ण शुरुआत कर नयी आर्थिक नीति आरंभ की। उसके बाद की सरकारों ने लगातार देश को तीन खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाने के लिए जो राह तैयार की गयी उसका निरंतर अनुसरण किया है।''

उन्होंने कहा कि लगातार आगे बढ़ रही हमारी अर्थव्यवस्था को कोविड-19 महामारी ने तबाह किया है और इससे हमारे करोड़ों देशवासियों को भारी नुकसान हुआ है। इसके कारण देश स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ गया है और असंख्य लोगों के समक्ष रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि इन आर्थिक सुधारों का सबसे बड़ा फायदा हुआ है कि इस अवधि में देश के लगभग 30 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का मौका मिला और करोड़ों युवाओं के लिए नौकरियों के नये अवसर मिले। दुनिया की कई प्रमुख कंपनियों ने भारत का रुख किया जिसके कारण देश को आर्थिक प्रगति की राह पर रफ्तार मिली और देश कई क्षेत्रों में वैश्विक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है। 

डॉ सिंह ने कहा कि सामने खड़ी चुनौतियों को देखेते हुए यह आर्थिक सुधारों से मिली उपलब्घियों पर हर्ष तथा उल्लास मनाने की बजाय आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा ‘‘यह आनंद और उल्लास का नहीं बल्कि आत्मनिरीक्षण और चिंतन करने का समय है। वर्ष 1991 के संकट की तुलना में आगे की राह और भी कठिन है। एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्राथमिकता हर देशवासी के लिए एक स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना है।'' उन्होंने कहा कि वर्ष 1991 में वित्त मंत्री के रूप में अपना बजट भाषण समाप्त करने से पहले मैंने विक्टर ह्यूगो को उद्धृत कर कहा था, ‘‘पृथ्वी पर ऐसी कोई ताकत नहीं है जो उस विचार को अवरुद्ध करे जिसके साकार होने का समय आ गया है।'' तीस साल बाद एक राष्ट्र के रूप में हमें रॉबटर् फ्रॉस्ट की कविता की इन पंक्तियों को याद रखना चाहिए ‘‘लेकिन मुझे अपने वादे को निभाना है और सोने से पहले मुझे बहुत दूर जाना है।'' 

Anil dev

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