कांटों का ताज रहा उद्धव का दो साल का कार्यकाल, अब बीएमसी चुनाव बनी बड़ी चुनौती

Tuesday, Nov 30, 2021 - 10:48 AM (IST)

नेशनल डेस्क: महाराष्ट्र में शिवसेना वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए)  सरकार ने कई राजनीतिक विकट परिस्थितियों का समना करते हुए दो साल पूरे कर लिए हैं। दो वर्ष पहले जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बिना किसी प्रशासनिक अनुभव के सत्ता संभाली तो उनके आलोचकों और करीबी सहयोगियों को भी यह उम्मीद नहीं थी कि वह एक शासन और प्रशासन की चुनौतियों का सामना करते हुए एक मजबूत शासक के रुप में उभरेंगे। उनकी सत्ता के दो साल पूरे होने पर उनके आलोचक और समर्थक इस बात से सहमत दिखे कि उद्धव ने कैसे समझदारी से चुनौतियों का सामना करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने न केवल कोविड -19 जैसे विशाल संकट का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया, बल्कि अब तक महा विकास अघाड़ी सरकार को भाजपा के कथित प्रयासों से गिरने से भी बचाया। अब उनके सामने तत्काल चुनौती आगामी बीएमसी चुनावों में सत्ता बरकरार रखने की है।

कोविड महामारी में कुशलतापूर्वक प्रबंधन
मुंबई विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर सुरेंद्र जोंधले का कहना है कि उद्धव ने कोविड की स्थिति से अपने कुशल संचालन से कई लोगों को चौंका दिया है। महामारी के दौरान उन्होंने कभी भी उग्र हिंदुत्व या भावुक मुद्दों को नहीं उठाया, जिसके लिए शिवसेना जानी जाती है। उन्होंने सुशासन पर ध्यान केंद्रित किया। राज्य के कोविड कार्यक्रम में उनका संबोधन मध्यम वर्ग के बीच गहरी छाप छोड़ गया। जोंधले केहते हैं कि उद्धव ने अलग-अलग विचारधारा वाले एमवीए के तीनों भागीदारों के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखने में भी अपनी क्षमता दिखाई है। उन्होंने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, अजित पवार, बालासाहेब थोराट, छगन भुजबल और जयंत पाटिल जैसे बड़े नेताओं के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं। उनके प्रशासनिक अनुभव की कमी कभी मुद्दा नहीं बनी।

नगर निगम चुनाव में होगी वर्चस्व की जंग
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा ने पिछले दो वर्षों में एमवीए सरकार को गिराने या नुकसान पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ा है, जबकि इसके सभी प्रयास विफल हो गए हैं और इसका श्रेय उद्धव को जाता है। उद्धव ने न केवल एक मुख्यमंत्री के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है, बल्कि महाराष्ट्र से आगे पार्टी के विजय अभियान का नेतृत्व भी किया है और दादरा नगर हवेली लोकसभा सीट पर पहली बार जीत हासिल की है। जानकारों का कहना है कि आगामी बीएमसी, नासिक, नवी मुंबई और पुणे नगर निगम चुनाव उद्धव की अगली बड़ी राजनीतिक परीक्षा होगी। बीएमसी शिवसेना की आत्मा है। भाजपा जो पिछली बार एक मामूली अंतर से बस से चूक गई थी, नकदी-समृद्ध निगम को अपने सहयोगी-प्रतिद्वंद्वी से छीनने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। यह चुनाव इस बात की भी परीक्षा लेगा कि क्या शिवसेना के मूल हिंदुत्व और मराठी मतदाता अभी भी पार्टी के साथ हैं या भाजपा ने उन्हें बहला कर अपने पक्ष में कर लिया है।

कम करके आंका था उद्धव का नेतृत्व
एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रताप असाले ने कहा कि उद्धव ने कोविड -19 सहित कई स्थितियों का कुशलता से प्रबंधन किया, लेकिन अमरावती दंगा और महाराष्ट्र राज्य परिवहन कर्मचारियों के आंदोलन को संभालने में सक्षम नहीं रहे हैं। हालांकि, राज्य ने विरोध करने वाले कर्मचारियों के साथ दुश्मन के रूप में व्यवहार नहीं किया है। उद्धव सरकार का यह दृष्टिकोण एक प्रमुख प्लस पॉइंट है जिसने हितधारकों के साथ संचार को खुला रखा है। उन्होंने कहा कि हालांकि विपक्ष और यहां तक कि कैबिनेट सहयोगियों ने भी उद्धव के नेतृत्व को कम करके आंका था। गौरतलब है कि भाजपा ने बीते रविवार को कार्यालय में दो साल पूरे होने पर महा विकास अघाड़ी (एमवीए) शासन पर प्रहार किया। इसे राज्य में सबसे भ्रष्ट, अवसरवादी, जनविरोधी और बेकार सरकार कहा। यहां तक कि भाजपा ने उन्हें एक्सीडेंटल सीएम बताया।

Anil dev

Advertising