इंदिरा गांधी को बचाने के लिए चढ़ाया गया था 80 बोतल खून, पढ़ें आखिरी पलों की कहानी

Friday, Nov 19, 2021 - 03:19 PM (IST)

नेशनल डेस्कः कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर शुक्रवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी और देश के प्रति उनके योगदान को याद किया। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ‘शक्ति स्थल’ पहुंचकर इंदिरा गांधी की समाधि पर पुष्प अर्पित किए।पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की चुनिंदा ताकतवर हस्तियों में शुमार किया जाता था।  स्वतंत्र भारत के इतिहास में चंद लोग ऐसे हुए हैं, जिन्होंने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और उनके व्यक्तित्व की मिसालें दी गईं। इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी भी एक ऐसा ही नाम है, जिन्हें उनके निर्भीक फैसलों और दृढ़निश्चय के चलते ‘लौह महिला' कहा जाता है। जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के यहां 19 नवंबर,1917 को जन्मी कन्या को उसके दादा मोतीलाल नेहरू ने इंदिरा नाम दिया और पिता ने उसके सलोने रूप के कारण उसमें प्रियदर्शिनी भी जोड़ दिया। फौलादी हौसले वाली इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार और कुल चार बार देश की बागडोर संभाली और वह देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। 



भारत की आयर लेडी के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए वर्ष 1984 का दौर राजनीतिक दृष्टि से बेहद उतार चढ़ाव से भरा था। पंजाब में सिख कट्टरपंथियों के चलते तनाव चरम पर था। सिखों के लिए पवित्र धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर में चरमपंथियों ने डेरा जमाया हुआ था। इसे बचाने के लिए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चलाया गया। इससे सिखों में इंदिरा के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया था। उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिलने लगीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी परवाह न करते हुए अपने रोजमर्रा के कार्यों में जुटी रही।




इंदिरा गांधी के बारे में कहा जाता है कि वह एक मजूबत इरादों वाली महिला थीं यही कारण था कि सुरक्षा एजेंसियों की सलाह के बाद भी उन्होंने अपने सिख अंगरक्षकों को नहीं हटाया। 30 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा ने भुवनेश्वर में एक एतिहासिक भाषण दिया था। कहा जाता है कि उनके तेवर उस दिन बदल गए थे। लिखे भाषण से अलग उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा “मैं आज यहां हूँ कल शायद न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी साँस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।”

भाषण देने के बाद इंदिरा राजभवन लौट गईं। सोनिया गांधी के मुताबिक उस रात वह बहुत कम सो पाई थीं। 31 अक्टूबर, 1984 तकरीबन सुबह साढ़े सात बजे तक इंदिरा गांधी तैयार हो चुकी थीं। उस दिन काले बॉर्डर वाली केसरिया रंग की साड़ी पहनी थीं। उनका पहला अपोइंटमेंट उनके ऊपर डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले पीटर उस्तीनोव के साथ था। इसके बाद दोपहर में उनको ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री जेम्स कैलेघन से मिलना था। साथ ही मिजोरम की एक नेता के साथ भी उनकी मीटिंग थी। रात में वो ब्रिटेन की राजकुमारी ऐन के साथ डिनर करने वाली थीं। खैर, नाश्ता कर वो करीब 9 बजकर 10 मिनट पर बाहर आईं। उस दिन धूप चटकदार थी। उनको धूप से बचाने के लिए सिपाही नारायण सिंह काला छाता लेकर उनके साथ चल रहे थे। इस दिन उनके साथ आरके धवन थे।


 

वह आरके से पूरे दिन की प्लानिंग के बारे में डिस्कस कर रहे थे। तभी अचानक वहां तैनात सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह अपनी रिवाल्वर निकालकर इंदिरा पर फायरिंग करना शुरू कर दिया। उसकी पहली गोली उनके पेट में लगी। इसके बाद बेअंत ने इंदिरा पर दो गोलियाँ और फायर की जो उनके सीने के साथ कमर में जा लगी। वहीं पर सतवंत ऑटोमैटिक कारबाइन के साथ कुछ फुट की दूरी पर खड़ा था। वो दहशत में था। तभी उसका साथी बेअंत उसे चिल्लाकर कहता गोली चलाओ। सतवंत होश में आता है और 25 गोलियों से इंदिरा के जिस्म को छलनी कर दी।

 

एम्बुलेंस का चालकर था नदारद
इंदिरा का शरीर खून से लथपथ था। सुरक्षाकर्मी सतवंत और बेअंत को पकड़ चुके थे। वहां एम्बुलेंस तो खड़ी थी मगर चालक नदारद था। ऐसे में इंदिरा के सलाहकार माखनलाल ने कार निकालने को कहा। इंदिरा को जमीन से उठाकर सफ़ेद अम्बेसडर की पिछली सीट पर आरके धवन और सुरक्षाकर्मी दिनेश रखते हैं। तभी सोनिया नगे पैर गउन में मम्मी-मम्मी चिल्लाते भागते आईं। उसी हालत में वो इंदिरा के सिर को अपनी गोद में रखकर बैठ गईं। कार तेज रफ्तार से एम्स की तरफ भाग रही थी। सोनिया का गाउन इंदिरा के खून से भीग चुका था। 9 बजकर 32 मिनट पर कार एम्स पहुंची।
 

वहां कार रूकती है आसपास एक भी स्ट्रैचर नहीं थे। किसी तरह पहिये वाली स्ट्रैचर से उन्हें अस्पताल के अंदर लाया गया। इसमें 3 मिनट का वक्त गुजर चुका था। डॉक्टर इंदिरा को इस हालत में देखकर हैरान थे। मिनटों में वहां सूचना पर डॉक्टर गुलेरिया, एस बालाराम और एमएम कपूर पहुंच गए। अस्पताल के बाहर उनके समर्थकों का हुजूम उनके जीवन की प्रार्थना कर रहा था। इंदिरा के दिल की मामूली गतिविधि दिखाई दे रही थी। उनकी आंखों की पुतलियां फैल चुकी थीं, डॉक्टर के अनुसार उनके दिमाग को काफी नुकसान हुआ था। तब एक डॉक्टर ने उनके मुंह के जरिये उनकी साँस की नली में एक ट्यूब डाली ताकि उनको ऑक्सीजन पहुंच सके और उनको किसी तरह जीवित रखा जाये। 

4 घंटे तक वह अस्पताल के ऑपरेशन रूम में थीं। उनको ओ निगेटिव(O Negative, 80 Unit) के 80 बोतल खून चढ़ चुके थे। हालांकि डॉक्टरों के अनुसार उन्हें गोली मारे जाने के बाद ही उनकी जान जा चुकी थी। गोलियों से उनकी बड़ी आंत में दर्जनों छेद हो चुके थे। छोटी आंत भी क्षत विक्षत हो गई थीं। बहरहाल उनकी मौत की  पुष्टि के लिए डॉक्टर गुलेरिया ने ईसीजी किया। उनकी आत्मा उनका शरीर छोड़ चुकी थीं।  

इसके बाद भी उनकी मौत की पुष्टि कुछ देर के लिए रोकी गई। फिर उन पर हुए हमले के लगभग 4 घंटे बाद 2 बजकर 23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित किया गया। हालांकि सरकारी प्रचार माध्यमों से शाम 6 बजे उनकी मौत की घोषणा की गई। इस तरह 80 यूनिट खून भी इंदिरा गांधी के काम न आ सका।

Anil dev

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