लाल किले का वारिस होने का महिला ने किया दावा, जज ने खारिज की याचिका, दिया ऐसा जवाब...पढ़कर हंस पड़ेंगे आप

Wednesday, Dec 22, 2021 - 10:39 AM (IST)

 नेशनल डेस्क: दिल्ली हाईकोर्ट ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की कथित वंशज की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने लाल किला पर दावा ठोका था। सुल्ताना बेगम ने वकील विवेक मोरे के माध्यम से दायर अपनी याचिका में दावा किया था कि वह बहादुर शाह जफर द्वितीय की पौत्र वधु हैं।  67 वर्षीय सुल्ताना बेगम कोलकाता में रहती है। उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से हर महीने 6000 रुपए की पेंशन मिलती है। यह पैंशन उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शुरू करवाई थी। हाईकोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद अब यह महिला सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।

बहादुर शाह जफर के वंशज 150 साल बाद कोर्ट में
याचिका में सुल्ताना बेगम ने कहा था कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे उसकी संपत्ति से वंचित कर दिया था। साथ ही कहा था कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को देश-निकाला दे दिया था और इसके बाद लाल किला को भी अपने कब्जे में ले लिया था। इस याचिका की सुनवाई कर रहीं जस्टिस रेखा पल्ली ने पूछा कि अदालत का रुख करने में बहादुर शाह जफर के वंशजों को 150 साल कैसे लग गए? जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि मेरा इतिहास ज्ञान काफी कमजोर है, लेकिन आपका दावा है कि 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने आपके साथ अन्याय किया था। फिर भी 150 वर्षों से अधिक की देरी क्यों है? इतने साल आपने कहां लगा दिए?

दावे का समर्थन में कोई दस्तावेज नहीं
कोर्ट ने आगे टिप्पणी की करते हुए कहा कि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है कि याचिकाकर्ता का अंतिम मुगल सम्राट से संबंध था। कोर्ट ने कहा कि आपने उत्तराधिकार की वंशावली को दर्शाने के लिए कोई भी चार्ट पेश नहीं किया। सभी को ये पता है कि बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने देश से बाहर निकाल दिया था। लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने कोई याचिका नहीं डाली तो क्या आप ऐसा कर सकती हैं? याचिकाकर्ता के वकील ने बेगम को अनपढ़ महिला बताते हुए देरी को सही ठहराने की कोशिश की। हालांकि हाईकोर्ट ने उस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि समय पर कदम क्यों नहीं उठाए गए, इसका कोई औचित्य नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अत्यधिक देरी को आधार बनाते हुए लाल किले पर दावा ठोकने वाली इस याचिका को रद्द कर दिया।

Anil dev

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