वामपंथी संगठन किसान आंदोलन को भटकाकर अपना एजेंडा साधना चाहते हैं: संबित पात्रा

Wednesday, Dec 23, 2020 - 06:36 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारतीय जनता पार्टी ने आरोप लगाया है कि कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन की आड़ में वामपंथी संगठन अपने राष्ट्रविरोधी हित साधना चाहते हैं। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि लोकतंत्र में किसानों को अपनी मांगों को लेकर संघर्ष करने का अधिकार है लेकर कुछ राष्ट्रविरोधी वामपंथी संगठन किसान बनकर आंदोलन में घुस गए हैं जिनसे देश को सावधान रहने की जरूरत है। यह पूरे किसान आंदोलन को भटकाकर अपना एजेंडा साधना चाहते हैं और किसानों को गुमराह करने की कोशिश में लगे हैं।

 

पात्रा ने 13 दिसंबर को एक अंग्रेज़ी अखबार में छपी खबर का हवाला देते हुए कहा कि वाम समर्थित एक तथाकथित किसान संगठन ने कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर को पत्र लिखकर किसान नेताओं समेत जेल में बंद तथाकथिक बुद्धिजीवियों और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग रखी। इनमें देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में बंद उमर खालिद, वार वरा राव और पीडीएफआई जैसे प्रतिबंधित माओवादी संस्थाओं के नेताओं के नाम शामिल हैं जिनका किसान आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि केरल की वामपंथी सरकार में किसानों को उनके उत्पाद का समय पर भुगतान नहीं होता जबकि कृषि सुधार कानूनों में तीन दिनों के भीतर भुगतान की बात कही गई है। उन्होने आरोप लगाया कि केरल सरकार इन कानूनों को इसलिए रद्द करवाना चाहती है क्योंकि वामपंथी दलों के कार्यकर्ता निजी खरीदार बनकर किसानों का हक छीन रहे हैं। 

 

 पात्रा ने कहा कि 25 साल तक त्रिपुरा में वामपंथ की सरकार रही थी लेकिन इस दौरान राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी) नहीं था। 2018 में जब त्रिपुरा में भाजपा की सरकार आई तो एमएसपी लागू हुआ। पूर्व की वाम दल सरकार के दौरान राज्य में किसान को चावल के 10 से 12 रुपए प्रति किलो दाम मिलते थे जो अब 18 रुपए है। 2017-2018 में राज्य में कृषि विकास दर 6.4 प्रतिशत था जबकि भाजपा सरकार के दो सालों में यह 13.5 है। जहां भी वामपंथ सरकार रही वहां किसानों पर अत्याचार हुए और अब ये वामपंथी नेता किसानों के हितैषी बन रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल में पिछली वामपंथ सरकार और मौजूदा तृणमूल कांग्रेस का शासन किसानों के लिए घातक रहा है क्योंकि राज्य में कृषि उत्पाद बाज़ार समिति (एपीएमसी) कानून किसानों से पैसा उगाहने के लिए लाया गया था। 

पश्चिम बंगाल में किसानों को मंडियों तक पहुंचने से पहले अवैध तरीके से नाकाबंदी करके टोल वसूला जाता है। 2009 में वामपंथ की सरकार ने एपीएमसी में संशोधन करके निजी एजेंसियों और कंपनियों को कृषि उत्पाद बाज़ार में आने की छूट दी थी। अब वामदलों का कृषि सुधारों का विरोध उनके दोगलेपन को दर्शाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री केन्द्र की किसान सम्मान निधि योजना का पैसा सीधे किसानों के खातों में जमा करवाने की बजाए राज्य सरकार के खातों में डालने की मांग कर रही हैं ताकि किसानों के हक के पैसों से वह अपना चुनावी कोष इक्ट्टा कर सके। 

Anil dev

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