Ambedkar Jayanti 2022: आंबेडकर यूं ही नहीं कहलाए 'संविधान निर्माता', ये बातें साबित करती हैं कि उनकी भूमिका कितनी अहम थी

Thursday, Apr 14, 2022 - 12:57 PM (IST)

नई दिल्ली: आज बाबा साहेब की 131वीं जयंती मनाई जा रही है। बाबा साहेब के विचार हमेशा इंसान को समाज के प्रति प्रेरित करते हैं। बी.आर. अम्बेडकर, जिन्हें बाबासाहेब अम्बेडकर के नाम से भी जाना जाता है। वह एक अर्थशास्त्री, राजनेता और समाज सुधारक थें, जिन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, जिन्हें अछूत माना जाता था (उन्हें अभी भी देश के कुछ हिस्सों में अछूत माना जाता है)। भारत के संविधान के एक प्रमुख वास्तुकार, अम्बेडकर ने महिलाओं के अधिकारों और मजदूरों के अधिकारों की भी वकालत की। इसी भारतीय संविधान के निर्माता के तौर पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मशहूर हैं। बाबा साहेब अंबेडकर की संविधान के निर्माण में भूमिका अतुल्य है। कई लोगों ने इस बाबत तमाम दलीलें दीं लेकिन डाॅ. अंबेडकर के योगदान और भूमिका को भारतीय संविधान में नकारा नहीं जा सकता है। 

389 लोगों की मदद से तैयार हुआ था विश्व का सबसे लंबा संविधान
 विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान ‘भारतीय संविधान’ 26 नंवबर 1949 को पारित हुआ और 26 जनवरी 1950 को प्रभावी हुआ। भारतीय संविधान के जनक  डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों के कारण ही यह ऐसे रूप में सामने आया, जिसे न केवल भारत में सबने सराहा बल्कि विश्व में कई अन्य देशों ने भी इसे अपनाया। भारत के संविधान के प्रति हमारी आस्था, उसके बारे में जानना और उसका पूर्ण रूप से अनुपालन करना हम भारतीयों का प्रथम कर्तव्य है।

22 भागों में विभजित है भारत का संविधान 

  • भारतीय संविधान दुनिया का न सिर्फ सबसे लंबा हस्तलिखित दस्तावेज है, बल्कि इसके निर्माताओं ने कई देशों की उन अच्छाइयों को भी इसके भीतर समेटा, जिससे भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में मजबूत बन सके। 
  • यह 22 भागों में विभजित है, इसमे 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं। 
  • भारतीय संविधान की दो प्रतियां हिंदी और अंग्रेजी में हाथ से लिखी गईं।
  • इस संविधान को तैयार करने में 2 साल, 11 माह और 18 दिन का समय लगा। 
  • इसमें कुल शब्दों की संख्या करीब 1,45,000 थी।
  • संविधान लागू होने के करीब 70 साल बाद इसमें 108 संशोधन हो चुके हैं।
  • संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे। 

मूल अधिकार और मूल कर्तव्य

  • संविधान में देश के नागरिकों के लिए मूल अधिकारों की विस्तृत व्याख्या (अनुच्छेद 12-35) की गई है, जिन्हें किसी भी कानून द्वारा छीना या कमजोर नहीं किया जा सकता।
  • इसी तरह, अनुच्छेद 51ए में नागरिकों के 11 कर्तव्यों का प्रावधान है।
  • शुरुआत में धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान का हिस्सा नहीं था। 42वें संशोधन द्वारा इसे संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया।

भारतीय संविधान के विदेशी स्त्रोत

  • भारत के संविधान को उधार का थैला भी कहा जाता है। इसमें कई अहम चीजों को अन्य संविधानों से लिया गया है।
  • आजादी, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों को फ्रांस के संविधान से लिया गया है। 
  • 5 वर्षीय योजना का आइडिया यूएसएसआर से लिया गया था। सामाजिक-आर्थिक अधिकार का सिद्धांत आयरलैंड से लिया गया।
  • सबसे अहम, जिस कानून पर सुप्रीम कोर्ट काम करता है, वह जापान से लिया गया। ऐसी कई और चीजें हैं जो अन्य देशों के संविधान से ली गई हैं।
  • संघात्‍मक विशेषताएं, अवशिष्‍ट शक्तियां केंद्र के पास, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और उच्चतम न्यायालय का परामर्श न्याय निर्णयन कनाडा से लिया गया है। 
  • संविधान संशोधन की प्रक्रिया प्रावधान, राज्यसभा में सदस्यों का निर्वाचन दक्षिण अफ्रीका के संविधान से लिया गया है।


अंबेडकर जी के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें 

जन्म और पढ़ाई 
-बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू, मध्यप्रदेश के एक गांव में हुआ था। बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले आंबेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की थी। इतना ही नहीं बाबा साहेब को स्कूल में काफी भेदभाव झेलना पड़ा था। 

-स्वतंत्र भारत के पहले कानून और न्याय मंत्री के रूप में मान्यता प्राप्त, भारतीय गणराज्य की संपूर्ण अवधारणा के निर्माण में अम्बेडकर जी का योगदान बहुत बड़ा है। अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

- उन्होंने भारत के राज्य को पुरातन मान्यताओं और विचारों से मुक्त करने के लिए अर्थशास्त्र में अपनी मजबूत पकड़ का इस्तेमाल किया। उन्होंने अछूतों के लिए अलग निर्वाचक मंडल बनाने की अवधारणा का विरोध किया और सभी के लिए समान अधिकारों की वकालत की।

-दलित समाज के उत्थान और उन्हें जागरुक करने में डॉ. भीमराव आंबेडकर का योगदान अतुल्य है। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का जीवन संघर्ष और सफलता की ऐसी अद्भुत मिसाल है, जो शायद ही कहीं और देखने को मिले। 

समान अधिकारों की वकालत 
अंबेडकर एक समझदार छात्र और कानून और अर्थशास्त्र के व्यवसायी थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने भारत के राज्य को पुरातन मान्यताओं और विचारों से मुक्त करने के लिए अर्थशास्त्र में अपनी मजबूत पकड़ का इस्तेमाल किया। उन्होंने अछूतों के लिए अलग निर्वाचक मंडल बनाने की अवधारणा का विरोध किया और सभी के लिए समान अधिकारों की वकालत की।

ये है अंबेडकर जी के विचार
# "मैं उसी धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए। जब तक आप सामाजिक रूप से स्वतंत्र नहीं हैं, कानून जो भी आपको स्वतंत्रता देता है वह आपके लिए बेमानी है।"



#बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। 
#अंबेडकर ने मनुष्य नश्वर बताते हुए उसके विचारों को भी नश्वर बताया। वे कहते थे एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।

Anil dev

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