माल्या को इस छोटी-सी गलती ने कर दिया बर्बाद, पढ़ें क्या है कहानी
Thursday, Sep 13, 2018 - 04:42 PM (IST)
नई दिल्लीः मोदी सरकार के लिए गले का फांस बन चुके भगोड़े विजय माल्या के बयान के बाद भारतीय राजनीति में घमासान मचा हुआ है। विजय माल्या ने बुधवार को कहा था कि वह भारत से भागने से पहले वित्त मंत्री से मिला था। कभी भारत के मशहूर कारोबारियों में शुमार विजय माल्या के बर्बादी की कहानी पूरी तरह फिल्मी है। कहा जाता है कि फिल्मी घराने से लेकर कॉरपोरेट लॉबी और खेल जगत में भी माल्या का सिक्का चलता था। जानें, आखिर किस गलती की वजह से माल्या का सब कुछ बर्बाद हो गया।
2005 में शुरू हुई थी किंगफिशर एयरलाइन्स
प्रीमियम सेवाओं के लिए जानी जाने वाली किंगफिशर एयरलाइन्स की स्थापना वर्ष 2003 में हुई थी। इसका स्वामित्व विजय माल्या की अगुआई वाले यूनाइटेड ब्रेवरीज ग्रुप के पास था। 2005 में इसका कमर्शियल ऑपरेशन शुरू हुआ। कुछ समय के भीतर ही यह एविएशन सेक्टर की बड़ी कंपनी बन गई। उस दौर में प्रीमियम सेवाओं में इसका कोई जोड़ नहीं था। ऐसे में, कंपनी ने देश की एक लो कॉस्ट (किफायती) एविएशन कंपनी खरीदने की कोशिशें शुरू कर दी। यह कोशिश 2007 में जाकर कामयाब हुई, लेकिन इस तरह उन्होंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की ओर कदम बढ़ा दिए।
2007 में खरीदी थी एयर डेक्कन
2007 में माल्या ने देश की पहली लो कॉस्ट एविएशन कंपनी एयर डेक्कन का अधिग्रहण किया और इसके लिए 30 करोड़ डॉलर की भारी रकम खर्च की, जो उस समय लगभग 1,200 करोड़ रुपए (2007 में 1 डॉलर लगभग 40 रुपए के बराबर था) के बराबर थी। इस सौदे से माल्या को फायदा भी हुआ और 2011 में किंगफिशर देश की दूसरी बड़ी एविएशन कंपनी बन गई। हालांकि, कंपनी एयर डेक्कन को खरीदने के पीछे के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई और उसकी ऊंची कॉस्ट की समस्या जस की तस बनी रही।
इस तरह फेल हो गई माल्या की योजना
माल्या भले ही एयर डेक्कन को खरीदने में कामयाब रहे, लेकिन उनकी इसके माध्यम से किंगफिशर को मजबूती देने की स्ट्रैटजी बुरी तरह फेल हो गई। बाद में माल्या ने दोनों एयरलाइन्स का विलय कर दिया और फिर एयर डेक्कन का नाम बदलकर किंगफिशर रेड हो गया, जो प्रीमियम सेवाओं के साथ ही लो कॉस्ट सेवाएं भी देने लगी। इस प्रकार कंपनी एक ही ब्रांड किंगफिशर के अंतर्गत लो कॉस्ट और प्रीमियम सेवाएं देने लगी। भारत में लो कॉस्ट एविएशन मॉडल को लाने वाले और एयर डेक्कन के संस्थापक कैप्टन गोपीनाथ ने एक मीडिया रिपोर्ट में कहा था, "माल्या का एक ब्रांड का फैसला संभावित तौर पर अच्छा था, लेकिन उन्हें सभी घरेलू सेवाओं को लो कॉस्ट और अंतरराष्ट्रीय सेवाओं को प्रीमियम रखना चाहिए था।" गोपीनाथ के मुताबिक, एक ब्रांड की दोनों सेवाओं में ज्यादा अंतर भी नहीं था, बस तभी से समस्याएं पैदा होने लगीं।
लो कॉस्ट सर्विस की ओर जाने लगे लोग
गोपीनाथ के मुताबिक, इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से किंगफिशर की दोनों सर्विसेस के बीच अपने मौजूदा कस्टमर बेस को छीनने के लिए होड़ होने लगी। इससे किंगफिशर पर दोहरी मार पड़ी। पहली, किंगफिशर के इकोनॉमी पैसेंजर्स ने किंगफिशर रेड की ओर देखना शुरू कर दिया, जहां सुविधाएं काफी हद तक समान थीं, लेकिन कॉस्ट कम थी। जब माल्या ने किंगफिशर रेड के किराए बढ़ाने का फैसला किया तो कस्टमर इंडिगो या स्पाइसजेट जैसी लो कॉस्ट एयरलाइन्स की ओर रुख करने लगे।
आखिरकार बंद हो गई किंगफिशर
गोपीनाथ के मुताबिक, माल्या ने एक और गलत फैसला लिया। उन्होंने कहा, "माल्या ने एयर डेक्कन के साथ गोद लिया हुए बेटे की तरह व्यवहार किया। विलय के बाद माल्या को उम्मीद थी कि एयर डेक्कन के कस्टमर किंगफिशर की ओर रुख करेंगे, लेकिन इसका उलटा होने लगा। आखिर में एयर डेक्कन (किंगफिशर रेड) के कस्टमर दूसरी लो कॉस्ट एयरलाइन्स की ओर रुख करने लगे।" इस प्रकार अक्टूबर 2012 में किंगफिशर एयरलाइन्स बंद हो गई। इसका असर माल्या के कारोबारी साम्राज्य पर भी पड़ा, जो अब लगभग खत्म होने के कगार पर है।