Exclusive: ऐसे तो फिर सत्ता में आ जाएंगे PM मोदी!

Thursday, Jul 13, 2017 - 01:58 PM (IST)

जालंधर पाहवा): वर्ष 2014 में जब देश में आम चुनाव हुए तो भाजपा ने देश की सत्ता से कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को बाहर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पार्टी ने इस चुनाव से करीब 2 वर्ष पहले ही देश भर में अभियान आरंभ कर दिया था जिसकी वजह से पार्टी देश में अपने पक्ष में लहर चलाने में सफल रही। अब देश में अगले लोकसभा चुनाव होने में मात्र 2 वर्ष के करीब का समय रह गया है लेकिन जिस तरह से विपक्ष बिखरा हुआ है, उससे साफ लग रहा है कि कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों ने फिलहाल आगे के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई है।
 

कांग्रेस नहीं हैं अगले लोकसभा चुनावों के लिए अभी भी तैयार 
संभव है कि इस प्रकार की रणनीति पार्टी अंदर खाते बना रही हो जिसका खुलासा न हो पा रहा हो लेकिन राष्ट्रपति चुनावों में यह बात खुल कर सामने आ गई है कि विपक्ष में एकजुटता नाम की कोई बात नहीं है। वैसे यह वह समय था जब विपक्ष चाहता तो वह एकजुटता दिखा सकता था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हालत यह हो गई कि देश में जब सबसे बड़े पद के लिए चुनाव हो रहा है तो विपक्ष के अंदर ऐसी खलबली मची की सब कुछ बिखर गया। इस स्थिति में यह बात साफ हो गई कि देश में कांग्रेस तथा उसके सहयोगी दल अगले लोकसभा चुनावों के लिए अभी भी तैयार नहीं हैं। जो माहौल विपक्ष में चल रहा है उससे तो यही लग रहा है कि देश में वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी सफलता हासिल कर सकती है। वैसे इस बात का एहसास उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद विपक्ष को हो भी चुका है। 

नीतीश हो गए कांग्रेस से खफा
विपक्ष के ही एक हिस्सेदार व जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला इस बात को खुद स्वीकार भी कर चुके हैं कि विपक्ष को अब 2019 नहीं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी करनी चाहिए। कुछ ऐसे ही सुर बिहार के सीएम नीतीश कुमार के भी हैं। नीतीश ने साफ कहा है कि अगर कांग्रेस को इसी अंदाज में विपक्ष को एकजुट करना है तो फिर 2019 भूल जाना चाहिए। अंदर की बात यह भी है कि कांग्रेस ने यह तय किया था कि राष्ट्रपति पद पर जो भी उम्मीदवार होगा वह कोई गैर कांग्रेस नेता होगा। लेकिन मीरा कुमार की उम्मीदवारी की घोषणा से नीतीश कुमार कांग्रेस से खफा हो गए। सूत्रों के अनुसार रामनीथ कोविंद को समर्थन करने से पहले ही कांग्रेस और नितीश में खड़क चुकी थी। 

नीतीश ने की थी राष्ट्रपति पद के लिए सांझा उम्मीदवार देने की पहल
जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति पद के लिए सांझा उम्मीदवार देने की पहल नीतीश कुमार ने ही की थी। कई शुरुआती बैठकों में वे शामिल भी रहे। उनकी सलाह यह थी कि किसी गैर कांग्रेसी व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए। गोपाल कृष्ण गांधी का नाम इसी प्रक्रिया के तहत आया था। कांग्रेस अंदरखाते तैयार नहीं थी तथा वह अपने किसी नेता को मैदान में उतारना चाहती थी। असलियत यह है कि कांग्रेस हो या भाजपा, राष्ट्रीय दल होने का फायदा ये लोग उठाते रहे हैं तथा सहयोगी दलों को दबाने की कोशिश होती रही है लेकिन अब सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना ही होगा चाहे वह राष्ट्रीय स्तर का हो या फिर राज्य स्तर का। 

मोदी सरकार के अागे फेल हुए सारे विपक्ष 
खास बात यह है कि अब तक विपक्ष एक एजेंडा बना कर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ किसी भी मोर्चे पर खुद को ऊपर नहीं रख पाया। इस मामले में जी.एस.टी. सबसे बड़ा उदाहरण है।  जी.एस.टी. को लेकर कांग्रेस व पूरा विपक्ष जो चाहता था, वह नहीं कर पाया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से अलग लाइन ली जो साफ करता है कि कांग्रेस पर दबाव बनाने की एक राजनीति है।  कांग्रेस ने जीएसटी पर संसद के विशेष सत्र का बहिष्कार किया, लेकिन नीतीश की जदयू, पवार की राकांपा और मुलायम की सपा ने इसमें हिस्सा लिया। ऐसे में यह बात साफ है कि फिलहाल विपक्ष केंद्र की सरकार को अगले चुनावों में हटाने की हालत में नहीं दिख रहा है।


 

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