2019 में ‘रोजगार संकट’ बनेगा पी.एम. मोदी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा!

Tuesday, Aug 15, 2017 - 10:41 AM (IST)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपराजय माने जा रहे हैं। ज्यादातर लोगों को लगता है कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव जीतकर दोबारा सरकार बना लेंगे। वह लोकप्रिय हैं। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया है कि वह देश के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार पर प्रहार किया है। उनका सरकार और पार्टी पर जबरदस्त नियंत्रण है। सरकार का आधा कार्यकाल बीत जाने के बाद भी उनका विजयरथ लगातार आगे बढ़ रहा है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के सामने एक चुनौती है जिसे वह 2019 तक शायद पटखनी नहीं दे पाएंगे। उनके मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन ने आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के दूसरे संस्करण में इस चुनौती की ओर इशारा किया है। यह चुनौती है विश्वसनीय रोजगार के आंकड़ों का अभाव।

इकोनॉमिक सर्वे 2016-17 के सैकेंड एडिशन में सुब्रह्मण्यन ने लिखा कि रोजगार एवं बेरोजगारी के आकलन के पैमाने पर कुछ समय से बहस चल रही है। हाल के वर्षों में रोजगार को लेकर विश्वसनीय पैमाने के अभाव ने इसके आकलन को बाधित किया है। इसके मद्देनजर सरकार को उचित नीतिगत कदम उठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा जान पड़ता है कि पी.एम. मोदी के कार्यकाल में रोजगार की स्थिति बदतर हुई है। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक नौकरी के लिए तैयार हो रहे लोगों की तुलना में कम नौकरियां पैदा हो रही हैं। हालांकि सरकार के कई लोगों का मानना है कि बड़ी आबादी एंटरप्रिन्योर बन रही है। यानी बड़ी संख्या में लोग जॉब नहीं कर खुद का बिजनैस खड़ा कर रहे हैं। दरअसल, सरकार ने एंटरप्रिन्योरशिप को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास से लेकर कारोबारी ऋ ण तक से संबंधित कई योजनाएं शुरू की हैं लेकिन ज्यादातर अनुमानों में बेरोजगारी आज देश की बड़ी समस्या बन चुकी है। 

सरकार के पास विश्वसनीय आंकड़े नहीं 
विश्वसनीय रोजगार आंकड़ों के अभाव में मोदी सरकार शायद नौकरियां पैदा करने की दिशा में और कदम नहीं उठा पाए। सरकार चाहे तो रोजगार संकट के प्रति आसानी से आंखें मूंदे रह सकती है लेकिन उसे इसका खमियाजा 2019 के आम चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। चूंकि पी.एम. मोदी युवा मतदाताओं पर ज्यादा दांव लगाते हैं। इसलिए रोजगार संकट और स्पष्ट पैमाने के अभाव से सरकार को अपना सबसे महत्वपूर्ण वोट बैंक खोना पड़ सकता है। सर्वे में जॉब डाटा के दर्जनों मौजूदा सरकारी स्रोतों की सूची दी गई है लेकिन उनकी सीमाएं भी बताई गई हैं। इनमें आंशिक कवरेज, अपर्याप्त सैंपल साइज, कम फ्रि क्वैंसी, दोहरी गिनती, वैचारिक मतभेद और पारिभाषिक मुद्दे आदि शामिल हैं। अरविंद सुब्रह्मण्यन ने एक इंटरव्यू में कहा हमारे पास बढिय़ा विश्वसनीय टिकाऊ आंकड़े नहीं हैं जिनकी बदौलत हम थोड़े विश्वास के साथ कह सकें कि रोजगार के मौके बढ़े हैं या घटे हैं। मुझे उम्मीद है कि जब हम इम्प्लॉयमैंट डाटा में सुधार कर लेंगे तो हम इन चीजों को अच्छी तरह अंजाम दे पाएंगे।

नए सिरे से सर्वे करवा रही सरकार
सरकार नए सिरे से इम्प्लॉयमैंट सर्वे करवा रही है जो पहुंच और गहराई के मामलें में अद्वितीय है। इसके तहत हर 3 महीने में 7,500 गांवों और 5,000 शहरी ब्लॉकों के 10,000 से ज्यादा परिवारों से सवाल पूछे जा रहे हैं ताकि समय-समय पर ज्यादा से ज्यादा सही जानकारी प्राप्त हो सके। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक इस सर्वेक्षण का पहला आंकड़ा अगले साल दिसम्बर में आने की उम्मीद है। सरकार ने कागजों की जगह सीधे टैबलैट्स पर डाटा फीड करने के लिए 700 रिसर्चरों को ट्रेङ्क्षनग दी है। 
ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा करना नरेंद्र मोदी के चुनावी वायदों में शामिल था। अगले चुनाव में उन्हें इस पर जवाब देना होगा। लेकिन अगर सरकार को यह ही नहीं पता हो कि बेरोजगारी कितनी है और न ही ज्यादा नौकरियां पैदा करने के लिए पर्याप्त कदम भी नहीं उठा रही हो तो मोदी अपराजय नहीं रह पाएंगे।

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