पद्म विभूषण से सम्मानित नानाजी ने ठुकरा दिया था मंत्री पद

Wednesday, Oct 11, 2017 - 03:54 PM (IST)

नई दिल्ली: नानाजी देशमुख की आज जयंती है। वे युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं जिन्होंने अपना जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया लेकिन राजनीतिक पदों से हमेशा दूर रहे। पटना के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जेपी पर हमला हुआ। उनके बगल में नानाजी देशमुख खड़े थे। नानाजी ने अपने हाथों पर मृत्यु के रूप में आए प्रहार को झेल लिया। हाथ की हड्डियां टूट गई। वो ऐसी घटना थी कि देश का ध्यान नानाजी देशमुख की तरफ गया। इन दोनों महापुरुषों ने अपने जीवनकाल में देश के संकल्प के लिए स्वयं को सौंप दिया। इन दोनों के जीवन का पल-पल मातृभूमि के लिए, देशवासियों के कल्याण के लिए था और आजीवन इसमें जुटे रहे।

ठुकरा दिया था मंत्री पद
नानाजी देशमुख को मंत्री पद के लिए मोराराजी की सरकार में आमंत्रित किया गया लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया। नानाजी ग्राम सेवा में लगे रहने वाले कार्यकर्त्ता थे। नानाजी ने भारत के कई गावों में सामाजिक पुनर्गठन कार्यक्रम चलाया था जिसके तहत गावों के उद्धार के लिए काम किया गया। यही वजह है कि नानाजी की छवि नेता ही नहीं, बल्कि एक समाजसेवी की भी थी।

शुरू किया देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर
1950 में नानाजी ने ही देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर गोरखपुर में शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने चित्रकूट में दीनदयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट की भी शुरुआत की। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में दिए योगदान के लिए उन्हें 1999 में राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया। उन्हें पद्म विभूषण अवार्ड से भारत सरकार ने सम्मानित किया था। मृत्यु के पश्चात उनकी मर्जी के अनुसार उनका शव एम्स में डोनेट किया गया था।

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