...जब राजेन्द्र प्रसाद के नौकर ने नहीं करने दिया था गांधी को घर में प्रवेश

Wednesday, Apr 12, 2017 - 10:46 AM (IST)

पटना: मोहन दास कर्मचंद गांधी 10 अप्रैल, 1917 को चम्पारण जाते हुए पटना रेलवे स्टेशन पर रुके। उनके साथ चम्पारण के किसान राज कुमार शुक्ला भी थे। गांधी ने लम्बा कुर्ता, धोती पहन रखी थी और पगड़ी बांधी हुई थी। वह जब हावड़ा-दिल्ली ट्रेन से उतरे तो वह इस बात को लेकर परेशान हुए कि वह कहां जाएंगे क्योंकि उनकी पटना की यह पहली यात्रा थी और यहां किसी को जानते भी नहीं थे। कोई रास्ता न दिखाई दिया तो शुक्ला ने उनको एक प्रसिद्ध ‘वकील साहब’ (एडवोकेट) के पास ले जाने की पेशकश की। उन्होंने एक तांगा किराए पर लिया जिसने एक बड़े मकान के प्रवेश द्वार पर उनको उतार दिया। यह मकान राजेन्द्र प्रसाद का था। मगर वह घर पर नहीं थे। उनके नौकर ने बताया कि साहब बाहर गए हुए हैं। 

प्रसाद के मुंशी ने उनको बताया कि वकील साहब ‘पुरी’ गए हुए हैं। गांधी ने बताया, ‘‘मैं वहां बाहर बरामदे में बैठ गया। मगर नौकर ने मुझे कुएं से पानी लाने के लिए अनुमति नहीं दी। न ही घर में जाने दिया। शुक्ला ने जोर दिया कि उन्हें टॉयलेट जाने की अनुमति दी जाए मगर उनको कहा गया कि वह बाहर के टायलेट का इस्तेमाल करें। इससे मुझे गुस्सा नहीं आया क्योंकि नौकर अपना धर्म निभा रहा था। वह अपने मास्टर के प्रति अपनी ड्यूटी दे रहा था। शुक्ला इस बात को लेकर काफी परेशान हुए कि गांधी के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है। मगर उसके पास और कोई विकल्प नहीं था। गांधी को अचानक लंदन में मिले एक क्लासमेट की याद आई जिसने बताया था कि वह पटना में रहता है। उसका नाम मझरूल हक था जो मुम्बई में 1915 में उनसे मिला था, तब वह मुस्लिम लीग का प्रधान था। हक ने उनको निमंत्रण दिया था कि जब भी वह पटना आएं तो उसके घर जरूर आएं। 

हक को याद करते हुए गांधी ने एक कागज पर कुछ पंक्तियां लिखीं और शुक्ला से कहा कि इसे हक को दे देना। जैसे ही हक को उक्त कागज मिला तो उन्होंने अपने ड्राइवर को कार चलाने को कहा और वह राजेन्द्र प्रसाद के घर पहुंच गए और अपने मित्र को अपने घर ले आए। गांधी ने हक को बताया कि वह किसानों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए चम्पारण जा रहे हैं जो इंडिगो प्लांट लगने से परेशान हैं। हक को इस संबंध में कानूनी स्थिति बारे कोई जानकारी नहीं थी लेकिन वह जानते
 

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