नागपुर में बोले मोहन भागवत: ''कितने बलिदान हुए, मुंडों के ढेर लगे लेकिन धर्म नहीं छोड़ा''
punjabkesari.in Wednesday, Aug 06, 2025 - 02:58 PM (IST)

नेशनल डेस्क : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को नागपुर में "धर्म जागरण न्यास" के प्रांतीय कार्यालय के उद्घाटन कार्यक्रम में धर्म को लेकर अपने गहरे और व्यापक विचार साझा किए। उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्म केवल भगवान की उपासना तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को धारण करने वाली शक्ति है। उनका संबोधन धर्म के वास्तविक स्वरूप, उसके सामाजिक संदर्भ और वैश्विक उपयोगिता को लेकर केंद्रित रहा।
धर्म समाज के लिए होता है
भागवत ने कहा, “धर्म कार्य केवल भगवान के लिए नहीं होता, धर्म का कार्य समाज के लिए होता है। धर्म ठीक रहेगा तो समाज ठीक रहेगा, समाज में शांति रहेगी, कलह नहीं होंगे, विषमता नहीं रहेगी। सही धर्म का अर्थ समझकर यदि समाज चले, तो भला ही होगा।”
उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से बताया कि भारत का इतिहास धर्म के लिए दिए गए बलिदानों से भरा पड़ा है। “मुंडों के ढेर लग गए, यज्ञोपवित मनों से तौले गए, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा गया,” उन्होंने कहा। अपने संबोधन में उन्होंने धर्म को वैज्ञानिक सत्य से तुलना करते हुए कहा, “भारत के लोग जिसे धर्म कहते हैं, वह कैसा है? वह सत्य है। जैसे गुरुत्वाकर्षण है – आप उसे मानो या न मानो, वह अपना कार्य करेगा। धर्म भी ऐसा ही है।”
भागवत ने कहा कि धर्म का पालन व्यक्ति को सही मार्ग पर बनाए रखता है, भले ही जीवन में ऐसे प्रसंग आएं, जब सही मार्ग ज्ञात होने पर भी मनुष्य उससे भटक जाए।
"धर्म यानी कर्तव्य – मातृत्व से राजधर्म तक"
उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि कर्तव्य है। उन्होंने कहा, “मातृत्व धर्म, पितृ धर्म, मित्र धर्म, पुत्र धर्म, प्रजा धर्म, राजधर्म – ये सभी धर्म के अंग हैं। जो इन्हें निभाता है, वही सच्चा धार्मिक है। ”भागवत ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भी यह बात दोहराई कि हमारे समाज में सामान्य लोगों तक ने धर्म के लिए बलिदान दिए हैं। उन्होंने ‘छावा’ फिल्म का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें दिखाए गए आदर्श हमारे समाज के ही हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में विविधता के बावजूद सभी लोग एक हैं। यह एकता का ही आविष्कार है, जो बिना किसी विशेष गुण के, अपने आप को सजाकर प्रस्तुत करती है। “हम अलग-अलग दिखते हैं, लेकिन होते नहीं हैं। यह धर्म अपनापन सिखाता है और विविधताओं को पूर्ण रूप से स्वीकार करता है,” उन्होंने कहा।
एकता के लिए एक जैसा होना जरूरी नहीं
भागवत ने वैश्विक एकता के दृष्टिकोण पर टिप्पणी करते हुए कहा, “दुनिया में कुछ विचार हैं, जो कहते हैं कि अगर सबको एक होना है, तो एक जैसा बनना पड़ेगा। हम कहते हैं, ऐसा नहीं है। एकता के लिए एक जैसा होना आवश्यक नहीं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि हर व्यक्ति को उसका रास्ता उसकी स्थिति के अनुसार मिलता है, और इसीलिए रास्तों को लेकर झगड़ा नहीं होना चाहिए। “दूसरे के रास्ते को जबरन बदलने की कोशिश मत करो। इतना पवित्र धर्म है हमारा,” उन्होंने जोर दिया।
हिंदू धर्म नहीं, यह मानव धर्म है
भागवत ने जोर देकर कहा कि हिंदू धर्म दरअसल मानव धर्म है, जिसे हिंदुओं ने पहले समझा और उसे आचरण में उतारा। उन्होंने कहा, “यह सृष्टि धर्म है, विश्व धर्म है, मानव धर्म है। यह किसी की बपौती नहीं है, बल्कि सारी दुनिया के लिए आवश्यक है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि दुनिया संघर्षों, पर्यावरण संकट और विघटन का सामना कर रही है, क्योंकि उसे यह नहीं मालूम कि विविधता को कैसे संभालना है। “हमारे धर्म ने यह करके दिखाया है, और यही दुनिया को सीखना है,” उन्होंने कहा।
धर्म जागरण ही भारत की जिम्मेदारी है
भागवत ने जोर देते हुए कहा कि भारत को ऐसा मॉडल प्रस्तुत करना है जिसमें यह प्रत्यक्ष दिखे कि धर्मानुसार जीवन जीकर व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सब अच्छा कर सकते हैं। “ग्रंथों और अनुमानों की बात नहीं, प्रत्यक्ष आचरण की आवश्यकता है। जब जीवन में धर्म उतरेगा, तभी धर्म जागरण होगा और दुनिया सीखेगी,” उन्होंने कहा।
उन्होंने कहा कि “हम अपने आप को इस धर्म का मानते हैं, इसलिए धर्म जागरण का काम करते हैं। निष्ठा और श्रद्धा बनी रहे, इसके लिए साथ बनाना पड़ेगा, साथी बनकर कार्य करना पड़ेगा।”