मोदी का महामंथन, 19 राज्यों के सीएम और डिप्टी सीएम से की मुलाकात

Wednesday, Feb 28, 2018 - 09:09 PM (IST)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी  नेतृत्व ने पार्टी शासित 19 राज्यों में आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और हर घर को बिजली पहुंचाने के लिए सौभाग्य योजना के क्रियान्यन के लिए मुख्यमंत्रियों एवं उपमुख्यमंत्रियों को जी जान से जुटने का बुधवार को आह्वान किया और देश में संसद से लेकर पंचायत तक  सारे चुनाव एक साथ कराने के लिए जनजागृति अभियान चलाने का निर्देश दिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री परिषद की बैठक हुई जिसमें असम, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, मणिपुर, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री तथा जम्मू कश्मीर, बिहार, उत्तरप्रदेश एवं गुजरात के उपमुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल हुए। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर अस्वस्थ होने के कारण नहीं आ सके। केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज, भाजपा के संगठन महासचिव रामलाल, महासचिव भूपेन्द्र यादव भी उपस्थित थे।
बैठक में प्रारंभिक चर्चा के बाद यादव और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बैठक में सुशासन के फल को जनता के बीच प्रभावी ढंग से पहुंचाने के उपायों पर चर्चा हुई जिसमें केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की सामाजिक कल्याण की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ साथ लोकतंत्र की मजबूती के लिए लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने के बारे में भी विचार विमर्श किया गया। 

मोदी के 14 सीएम पर एक नजर

पेमा खांडू (अरुणाचल प्रदेश)
कुल लोकसभा सीटेंः 02
भाजपा जीती: 01

ताकतः 38 वर्षीय पेमा खांडू यंग सीएम हैं। खांडू राजनीति में अपने विवेकपूर्ण व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। उन्होने अपने राज्य में कई कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू की हैं।

चुनौतियां: खांडू 33 सत्तापक्ष विधायकों के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए और भाजपा के साथ सरकार बनाई। अब खांडू के सामने इस सरकार को बनाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती है।


सर्बानंद सोनोवाल (असम)
कुल लोकसभा सीटें: 14
भाजपा जीती: 07

ताकतः 55 वर्षीय सोनोवाल के पास छात्र राजनीति का भी व्यापक अनुभव है। वे असम गण परिषद के स्टूडेंट विंग ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और पूर्वोत्तर के राज्यों में असर रखने वाले नॉर्थ इस्ट स्टुडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रह चुके हैं। असम में बांग्लादेश के नागरियों का अवैध स्थानांतरण के खिलाफ उन्होंने हमेसा कड़ा रुख अपनाया। इससे असम के हिंदुओं से भाजपा को समर्थन देने में मदद मिली, इनका राज्य में 62% हिस्सा है। बांग्लादेश से अवैध आप्रवासन के खिलाफ उनका मजबूत रुख, असम की हिंदुओं से भाजपा को समर्थन देने में मदद मिली है, इनकी राज्य में आबादी लगभग 62% है।

चुनौतियां: सोनोवाल इस महीने निवेशकों के शिखर सम्मेलन के दौरान 70,000 करोड़ रुपए के निवेश को सुरक्षित रखने के बावजूद वह रोजगार पैदा नहीं कर पाए हैं। वहीं नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर को अद्यतन करने की समस्या अभी खत्म नहीं हुई है।

रमन सिंह (छत्तीसगढ़)
कुल लोकसभा सीटेंः 11
भाजपा जीतीः 10

ताकतः रमन सिंह भाजपा में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्यमंत्री हैं। इन्होंने माओवादियों के साथ निपुणतापूर्वक निपटा और अनुसूचित जनजातियों के वर्चस्व वाले इलाकों पर कांग्रेस का नियंत्रण तोड़ने में कामयाब रहे। उनकी कल्याण योजनाएं काफी हिट हैं।

चुनौतियां: उनके कुछ मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री के रूप में 14 वर्षों के एक निर्बाध कार्यकाल के दौरान उन्हें अपने विरोधियों का सामना करना पड़ा। राज्य में भाजपा और कांग्रेस के मतों के बीच का अंतर सीमांत है।



मनोहर पार्रिकर( गोवा)
कुल लोकसभा सीटेंः 2
भाजपा जीतीः 2

ताकतः  भारत के किसी राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले वह पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने आईआईटी से स्नातक किया है। उनको आरएसएस से लेकर गोवा के ईसाइयों तक का समर्थन है। भाजपा को गोवा की सत्ता में लाने का श्रेय उनको ही जाता है। अन्य दलों को भाजपा के साथ मिलकर काम करवाने की उनमें कुशलता है।

चुनौतियां: राज्य में विवादास्पद मुद्दों को लेकर कई हिंदू संगठनों और आरएसएस के बीच उनको तालमेल बनाना पड़ता है। हाल ही में उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा है जिसके कारण राज्य में अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।


विजय रुपानी (गुजरात)
कुल लोकसभा सीटें: 26
भाजपा जीती: 26

ताकत: रूपानी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि गुजरात मोदी और शाह का गृह राज्य है। पिछले साल दिसंबर में भाजपा ने लगातार पांचवीं बार राज्य में अपनी जीत दर्ज करवाई। गुजरात में भाजपा काफी मजबूत स्थिति में है। रूपानी को ऐसे शख्स के रूप में जाना जाता है जो सभी के साथ आम सहमति से प्रबंधन करता है। इससे भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि उनको शाह का समर्थन प्राप्त है।

चुनौतियां: रूपानी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां किसानों और पाटीदारों को लेकर है। रूपानी को इन मुद्दों का सामना करना होगा। उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल के साथ भी उनके मन-मुटाव की खबरे आई थीं जो कि पार्टी की कमजोर नींव की ओर इशारा करती है।


मनोहर लाल खट्टर (हरियाणा)
कुल लोकसभा सीटें: 10
भाजपा जीती: 07

ताकत: खट्टर पूर्व आरएसएस नेता हैं और उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीबी माना जाता है। खट्टर गैर-जाट हैं, उन्होंने हरियाणा में भाजपा को अन्य दलों के मुकाबले काफी मजबूत करने में मदद की। INLD और कांग्रेस दोनों का ही हमेशा हरियाणा में दबदबा रहा है। उसने खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं को लेकर कोई आरोप नहीं रहा।

चुनौतियां: जाट आंदोलन और डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरुमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के दौरान हुई हिंसा के दौरान उनपर कानून व्यवस्ता अच्छे से नहीं बनाए रखने को लेकर कई तरह के सवाल उठे। एक प्रशासक के रूप में खट्टर की छवि अलग ही है।


जयराम ठाकुर (हिमाचल प्रदेश)
कुल लोकसभा सीटें: 04
भाजपा जीती: 04

ताकत: जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश के 13वें मुख्यमंत्री हैं। ठाकुर ने लगातार पांच चुनाव जीते हैं। जयराम राजपूत नेता हैं और उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस का करीबी समझा जाता है। उनकी सबसे बडी ताकत यह है कि वे एक संगठनात्मक नेता और सभी को साथ लेकर चलते हैं।

चुनौतियां: राज्य की राजकोषीय स्थिति को प्रबंधित करना, रोजगार और पार्टी के दिग्गजों को खुश रखना उनके लिए बड़ी चुनौतियां हैं। महत्वपूर्ण नियुक्तियों और शासन मुद्दों में उनके करीब सहयोगियों की भूमिका को लेकर सियासत गर्माई है।


रघुवर दास (झारखंड)
कुल लोकसभा सीटें: 14
भाजपा जीती: 12

ताकत: रघुवर दास झारखंड के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री हैं। उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह भरोसेमंद माना जाता है। वे गरीब और आदिवासी आबादी के उद्देश्य से कल्याणकारी योजनाओं की एक श्रृंखला शुरू करने के अलावा राज्य में निवेश लाने में कामयाब रहे।

चुनौतियां: आदिवासी नेताओं का भाजपा के साथ पिछले काफी लंबे समय से विवाद चल रहा है। नई अधिवास नीति और राज्य के कई अन्य मुद्दे भाजपा के लिए आगामी चुनावी में परेशानी खड़े कर सकते हैं।



शिवराज सिंह चौहान (मध्यप्रदेश)
कुल लोकसभा सीटें: 29
भाजपा जीती: 27

ताकत: चौहान सरकार और भाजपा को राज्य में स्थानीय तौर पर कैसे मजबूत रखना है जानते हैं। वे अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं, यह उनकी सबसे बड़ी ताकत है और अन्य समुदाय के लोगों के साथ तालमेल बिठाना जानते हैं।

चुनौतियां: चौहान इन दिनों राज्य में आक्रामक कांग्रेस का सामना कर रहे हैं जो उनके लिए चिंता का कारण है। वे 12 साल से सीएम पद पर रहे हैं, अब उन्हें सत्ता विरोधियों से निपटना होगा। राज्य में बढ़ रहा कृषि संकट और व्यापम घोटाला आगामी चुनाव में उनके लिए परेशानियां खड़ी कर सकता है।

 


देवेंद्र फडणवीस (महाराष्ट्र)
कुल लोकसभा सीटें: 48
भाजपा जीती: 23

ताकत: 47 वर्षीय देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। वे आरएसएस के आंखों के तारे हैं। फडनवीस एक साफ छवि और विवादों से दूर रहने वाले नेता हैं। शिवसेना का साछ छूटने के बाद भी भाजपा ने फडणवीस के नेतृत्व में नगर निगम निकाय चुनावों में जीत हासिल की।

चुनौतियां: राज्य के स्थापित नेता भाजपा की कार्यप्रणाली की शैली से खुश नहीं हैं, इनमें से एक शिवसेना भी है जिसने हाल ही में आगामी चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की है। माना जा रहा है कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी अगले आम चुनावों में एकजुट हो सकते हैं।


एन. बिरेन सिंह (मणिपुर)
कुल लोकसभा सीटेंः 02
भाजपा जीती: 00

ताकत:  राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल खिलाड़ी रह चुके पूर्व कांग्रेसी नेता एन. बिरेन सिंह   एक अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं। 2016 में वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। बहुमत कम होने के बावजूद वे राज्य में सरकार बनाने में कामयाब रहे। उनको भाजपा के राम माधव और हिमांता बिस्वा सरमा इस दौरान काफी समर्थन मिला।

चुनौतियां: रोजगार सृजन, राज्य के राजस्व में वृद्धि और आर्थिक अवरुद्ध से निपटना उनके लिए मुख्य चुनौतियां हैं। इतना ही नहीं उन्हें नागा शांति समझौते के साथ-साथ मणिपुर के हितों के लिए भी काम करना होगा।

वसुंधरा राजे (राजस्थान)
कुल लोकसभा सीटें: 25
भाजपा जीती: 25

ताकत: वसुन्धरा राजे सिंधिया राजस्थान की पहली और एकमात्र महिला मुख्यमंत्री हैं।   
राजे को जाति तटस्थ नेता और एक कार्यपालक के रूप में देखा जाता है। उनके पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं और स्थानीय भाजपा नेताओं के साथ रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं हैं जिस वजह से उनको चुनावों में परेशानी हो सकती है।

चुनौतियां: उन्होंने हमेशा ही अपने विरोधी सशक्तीकरण का मजबूती से सामना किया। हाल ही में उनके नेतृत्व में भाजपा दो लोकसभा सीट और एक विधानसभा सीट के लिए हुए उप-चुनाव हार गई।


त्रिवेन्द्र सिंह रावत (उत्तराखंड)
कुल लोकसभा सीटें: 05
भाजपा जीती: 05

ताकत: रावत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं और उत्तराखंड में भी उन्होंने इसका काफी प्रचार प्रसार किया। वे राज्य के अकेले सबसे बड़े ठाकुर समुदाय से आते हैं इसे राज्य में भाजपा के किसी भी गुट का हिस्सा नहीं माना जाता है। वे एक साफ छवि के नेता और और उनकी सबसे बड़ी ताकत है कि उनके पीछे मोदी और शाह का सपोर्ट है।

चुनौतियां: रावत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि उन्हें राज्य इकाई में गुटबाजी से वफादारी से निपटना होगा। बैठे विधायकों और कुछ मंत्रियों ने खुलेआम उनके खिलाफ आरक्षण की आवाज उठाई है। वहीं कांग्रेस भी एक बार फिर राज्य में पुनर्मूल्यांकन कर रही है।


योगी आदित्यनाथ (उत्तर प्रदेश)
कुल लोकसभा सीटें: 80
भाजपा जीती: 71

ताकत:  गोरखपुर के प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर के महंत योगी आदित्यनाथ ने अचानक यूपी के सीएम के पदभार को संभाल कर सभी को चकित कर दिया था। उन्होंने 19 मार्च 2017 को प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत के बाद यहां के 21वें मुख्यमन्त्री पद की शपथ ली। वे यूपी में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्रियों में से एक है, जिनको यूपी में आरएसएस के समर्थक के रूप में भी देखा जाता है।

चुनौतियां: उन्होंने उत्तर प्रदेश में पुलिस के मुठभेड़ की आलोचना की। वे उच्च जाति से संबंधित हैं लेकिन उन्हें राज्य में पिछड़े वर्गों को भी खुश रखना होगा जोकि भाजपा के हित में है। बता दें कि योगी की जीत के पीछे सबसे बड़ा हाथ पिछड़े वर्ग के लोगों का ही है क्योंकि 2014 और 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को सबसे ज्यादा वोट इसी समुदाय ने दिए हैं।

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